P77, What is Sankirtan technique? "भजो सत्तनाम सत्तनाम सत्तनाम ए।...." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित।
महर्षि मेंहीं पदावली / 77
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 77वां पद्य "भजो सत्तनाम सत्तनाम सत्तनाम ए।...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
इस Santmat संकीर्तन भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "भजो सत्तनाम सत्तनाम सत्तनाम ए।..." में बताया गया है कि- सही मायने में नाम संकीर्तन क्या है और इसके क्या फायदे हैं? नाम संकीर्तन का सही तरीका क्या है? नाम संकीर्तन कैसे करें जिससे तुरंत आध्यात्मिक लाभ हो और साधना में प्रगति हो जाए।sat saheb, सतलोक का नजारा, सतलोक के नजारे, सतनाम,सतनाम संकीर्तन,Meaning of संकीर्तन in Hindi,सतनाम संकीर्तन अर्थ सहित,जपो सतनाम भजो सतनाम,भजो मन सतनाम के,हरिनाम संकीर्तन,नाम संकीर्तन - हरी नाम की महिमा,राम नाम संकीर्तन,नाम संकीर्तन यस्य,संकीर्तन यज्ञ,दत्त नाम संकीर्तन,संकीर्तन भजन,संकीर्तन का अर्थ, पर भी कुछ-न-कुछ जानकारी दी गई है।
नाम संकीर्तन की जानकारी देते सदगुरु
What is Sankirtan technique?
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "हे भाई! सत्तनाम (ध्वन्यात्मक सारशब्द) का ध्यान करने का यत्न करो। इस सत्तनाम के आधार पर ही यह सारा संसार टिका हुआ है। ऐसा संतों के विचार से जानने में आता है।....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
पदावली भजन 77 और शब्दार्थ, भावार्थ। नाम संकीर्तन।
पदावली भजन 77 का भावार्थ और टिप्पणी। नाम संकीर्तन महिमा।
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 77वां पद्य "भजो सत्तनाम सत्तनाम सत्तनाम ए।...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
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नाम संकीर्तन की जानकारी देते सदगुरु |
What is Sankirtan technique?
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "हे भाई! सत्तनाम (ध्वन्यात्मक सारशब्द) का ध्यान करने का यत्न करो। इस सत्तनाम के आधार पर ही यह सारा संसार टिका हुआ है। ऐसा संतों के विचार से जानने में आता है।....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
पदावली भजन 77 और शब्दार्थ, भावार्थ। नाम संकीर्तन। |
पदावली भजन 77 का भावार्थ और टिप्पणी। नाम संकीर्तन महिमा। |
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महत्वपूर्ण नोट-
* सतनाम के प्रमाण के लिए कबीर पंथी शब्दावली (पृष्ठ नं. 266.267) से सभार
अक्षर आदि जगतमें, जाका सब विस्तार।सतगुरु दया सो पाइये, सतनाम निजसार।।112।। सतगुरुकी परतीति करि, जो सतनाम समाय। हंस जाय सतलोक को, यमको अमल मिटाय।।117।।
* यदि गुरु मर्यादा में रहते हुए सत्यनाम जपते-2 भक्त प्राण त्याग देता है, सारनाम प्राप्त नहीं हो पाता, उसको भी सांसारिक सुख सुविधाएँ, स्वर्ग प्राप्ति और लगातार कई मनुष्य जन्म भी मिल सकता हैं और यदि पूर्ण संत न मिले तो फिर चैरासी लाख योनियों व नरक में चला जाता है। यदि अपना व्यवहार ठीक रखते हुए गुरु जी को साहेब का रूप समझ कर आदर करते हुए सतनाम प्राप्त कर लेता है। वह प्राणी जीवन भर मन्त्र का जाप करता हुआ तथा गुरु वचन में चलता रहेगा। फिर गुरु जी सारनाम देगें। वह सत्यलोक अवश्य जाएगा। जो कोई गुरु वचन नहीं मानेगा। अर्थात् झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार का त्याग नहीं करेगा। नाम लेकर भी अपनी चलाएगा, वह गुरु निन्दा करके नरक में जाएगा और गुरु द्रोही हो जाएगा। गुरु द्रोही को कई युगों तक मानव शरीर नहीं मिलता। वह चैरासी लाख जूनियों में भ्रमता रहता है।
* (कबीर पंथी शब्दावली के पृष्ठ नं. 279ए 294ए 305 व 498 से सभार)
सुकृत नाम अगुवा भये, सत्तनामकी डोर।
मूल शब्द पर बैठिके, निरखो वस्तू अंजोर।।
सत्तनाम है सबते न्यारा। निर्गुन सर्गुन शब्द पसारा।। निर्गुन बीज सर्गुन फल फूला। साखा ज्ञान नाम है मूला।।8।। दोहा - नाम सत्त संसार में, और सकल है पोच। कहना सुनना देखना, करना सोच असोच।।3।। सबही झूठ झूठ कर जाना। सत्तनाम को सत कर माना।। निस बासर इक पल नहिं न्यारा। जाने सतगुरु जानन हारा।।10।। अंस नामतें फिर फिर आवै। पूर्ण नाम परमपद पावै।। नहिं आवै नहिं जाय सो प्रानी। सत्यनामकी जेहि गति जानी।।12।। सत्तनाममें रहै समाई। जुग जुग राज करै अधिकाई।। सतलोकमें जाय समाना। सत पुरुषसों भया मिलाना।।13।। नाम दान अब लेय सुभागी। सतनाम पावै बड़ भागी। मन बचन कर्म चित्त निश्चय राखै। गुरुके शब्द अमीरस चाखै।।17।। झूठा जान जगत सुख भोगा। साँचा साधू नाम सँजोगा।। यह तन माटी इन्द्री छारी। सतनाम सांचा अधिकारी।।19।। नाम प्रताप जुगै जुग भाखाी। साध संत ले हिरदे राखी।। कहँ कबीर सुन धर्मनि नागर। सत्यनाम है जगत उजागर।।20।।
* ध्यान अभ्यास शुरू करने के पहले किसी सच्चे गुरु से दीक्षा लेना अति आवश्यक है। नहीं तो इसमें कई तरह के नुकसान हो सकते हैं?
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 74 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आप ने जाना कि सही मायने में नाम संकीर्तन क्या है और इसके क्या फायदे हैं? नाम संकीर्तन का सही तरीका क्या है? नाम संकीर्तन कैसे करें जिससे तुरंत आध्यात्मिक लाभ हो और साधना में प्रगति हो जाए इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
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* सतनाम के प्रमाण के लिए कबीर पंथी शब्दावली (पृष्ठ नं. 266.267) से सभारअक्षर आदि जगतमें, जाका सब विस्तार।सतगुरु दया सो पाइये, सतनाम निजसार।।112।। सतगुरुकी परतीति करि, जो सतनाम समाय। हंस जाय सतलोक को, यमको अमल मिटाय।।117।।
* यदि गुरु मर्यादा में रहते हुए सत्यनाम जपते-2 भक्त प्राण त्याग देता है, सारनाम प्राप्त नहीं हो पाता, उसको भी सांसारिक सुख सुविधाएँ, स्वर्ग प्राप्ति और लगातार कई मनुष्य जन्म भी मिल सकता हैं और यदि पूर्ण संत न मिले तो फिर चैरासी लाख योनियों व नरक में चला जाता है। यदि अपना व्यवहार ठीक रखते हुए गुरु जी को साहेब का रूप समझ कर आदर करते हुए सतनाम प्राप्त कर लेता है। वह प्राणी जीवन भर मन्त्र का जाप करता हुआ तथा गुरु वचन में चलता रहेगा। फिर गुरु जी सारनाम देगें। वह सत्यलोक अवश्य जाएगा। जो कोई गुरु वचन नहीं मानेगा। अर्थात् झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार का त्याग नहीं करेगा। नाम लेकर भी अपनी चलाएगा, वह गुरु निन्दा करके नरक में जाएगा और गुरु द्रोही हो जाएगा। गुरु द्रोही को कई युगों तक मानव शरीर नहीं मिलता। वह चैरासी लाख जूनियों में भ्रमता रहता है।
* (कबीर पंथी शब्दावली के पृष्ठ नं. 279ए 294ए 305 व 498 से सभार)
सुकृत नाम अगुवा भये, सत्तनामकी डोर।
मूल शब्द पर बैठिके, निरखो वस्तू अंजोर।।
सत्तनाम है सबते न्यारा। निर्गुन सर्गुन शब्द पसारा।। निर्गुन बीज सर्गुन फल फूला। साखा ज्ञान नाम है मूला।।8।। दोहा - नाम सत्त संसार में, और सकल है पोच। कहना सुनना देखना, करना सोच असोच।।3।। सबही झूठ झूठ कर जाना। सत्तनाम को सत कर माना।। निस बासर इक पल नहिं न्यारा। जाने सतगुरु जानन हारा।।10।। अंस नामतें फिर फिर आवै। पूर्ण नाम परमपद पावै।। नहिं आवै नहिं जाय सो प्रानी। सत्यनामकी जेहि गति जानी।।12।। सत्तनाममें रहै समाई। जुग जुग राज करै अधिकाई।। सतलोकमें जाय समाना। सत पुरुषसों भया मिलाना।।13।। नाम दान अब लेय सुभागी। सतनाम पावै बड़ भागी। मन बचन कर्म चित्त निश्चय राखै। गुरुके शब्द अमीरस चाखै।।17।। झूठा जान जगत सुख भोगा। साँचा साधू नाम सँजोगा।। यह तन माटी इन्द्री छारी। सतनाम सांचा अधिकारी।।19।। नाम प्रताप जुगै जुग भाखाी। साध संत ले हिरदे राखी।। कहँ कबीर सुन धर्मनि नागर। सत्यनाम है जगत उजागर।।20।।
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Reviewed by सत्संग ध्यान
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1/11/2020
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