नानक वाणी 12, Who is the perfect master । जतु सतु संजमु साचु द्रिडाइआ । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं

गुरु नानक साहब की वाणी / 12

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी  ''जतु सतु संजमु साचु द्रिडाइआ,...'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ने लिखा है। यहां उसी के बारे में बताया जाएगा।

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  में बताया गया है कि- संत सदगुरु कौन है ? सच्चा सतगुरु कोन है? Who is Sadhguru ? Sadguru कौन हो सकता है? Sadhguru Intro. SACHA SATGURU KAUN ? पूर्ण संत की पहचान क्या है ?  के बारे में जानकारी  के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- भारत में सच्चा सतगुरु कौन है? पूर्ण सतगुरु कौन है? पूर्ण गुरु कौन है? विश्व में सच्चा संत कौन है? विश्व में सच्चा गुरु कौन हैं? आदि बातों को जानने के पहले आइए ! भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें। 

इस भजन के पहले वाले भजन ''अलख अपार अगम अगोचरि...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

सतगुरु बाबा नानक के शब्दों में पूर्ण एवं सच्चा सतगुरु कौन है?
पूर्ण एवं सच्चा सतगुरु कौन है?


Who is the perfect master

भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " यतिपन , सत्यता एवं शम - दम यथार्थ रूप में दृढ़ करके जो सत्यशब्द के रस में डूबे रहते हैं , वे उस रंग में सदा लीन मेरे दयालु गुरु हैं । वे दिन - रात एक परम प्रभु परमात्मा में लो लगाये हुए उस सत्य पुरुष का दर्शन करके उसका विश्वास किए हुए है ।।१।। ....  "   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी

 ॥ मूल पद्य ॥

जतु सतु संजमु साचु द्रिडाइआ , साच सबदि रसि लीणा । मेरा गुरु दइआल , सदा रंग लीणा । अहिनिसि रहै एक लिव लागी , साचे देखि पतीणा ॥१ ॥ रहाउ ।। रहै गगन - पुरि द्रिसटि समैसरि , अनहद सबदि रंगीणा ॥२ ॥ सतु बंधि कुपीन भरि पुरि लीणा , जिहवाँ रंगि रसीणा ॥३ ॥ मिलै गुर साचे जिन रचु राचे , किरतु बीचारि पतीणा ॥४ ॥ एक महि सरब सरब महि एका , एह सतिगुर देखि दिखाई ॥५ ॥ जिनि कीए खंड मण्डल ब्रह्मण्डा , सो प्रभु लखनु न जाई ॥६ ॥ दीपक ते दीपक परगासिया , त्रिभवण जोति दिखाई ॥७ ॥ साचै तखति सच महली बैठे , निरभउ ताड़ी लाई ।।८।। मोहि गइआ वैरागी जोगी , घटि घटि किंगुरी वाई॥९॥ नानक सरणि प्रभू की छुटे , सतिगुर सच सखाई।।१० ।।  

शब्दार्थ - जत - यतिपन । सतु - सचाई । संजमु - परहेजगार पतीणा - विश्वास किया । समैसरि - एक ही तरह , थिर । कुपीन - कौपीन, लँगोटी । रचु राचे - बना दिया ।



भावार्थ- 
सतगुरु बाबा नानक साहब की बाणी के टीकाकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज।
टीका-सद्गुरु महर्षि मेंहीं
  यतिपन , सत्यता एवं शम - दम यथार्थ रूप में दृढ़ करके जो सत्यशब्द के रस में डूबे रहते हैं , वे उस रंग में सदा लीन मेरे दयालु गुरु हैं । वे दिन - रात एक परम प्रभु परमात्मा में लो लगाये हुए उस सत्य पुरुष का दर्शन करके उसका विश्वास किए हुए है ।।१।। वे गगनपुर में दृष्टि को एक ही तरह वा थिर करके अनहद शब्द में अपने को  रँगकर रखते हैं ॥२ ॥ वे पूर्ण रूप से सचाई का कौपीन बाँधते हैं । भजन में डूबे और जिह्वा से हरि - रंग - रस को ग्रहण किये रहते हैं अर्थात् हरि - भक्ति - संबंधी बातों का वर्णन करते रहते हैं ॥३ ॥ जिन्होंने अपने को सुधारा और बनाया है , जिनके यश को विचारकर विश्वास किया जाय , ऐसे सच्चे गुरु मिलें । सारी सृष्टि उस एक ( परमात्मा ) में है और वह एक ( परमात्मा ) सबमें है , यह सद्गुरु ने देखकर (👨 यह देखना नेत्र इन्द्रिय का नहीं है , नेत्रादि इन्द्रियों से ऊपर उठकर कैवल्य दशा में स्थित चेतन आत्मा का यह देखना होता है ।) दिखलाया है । जिस प्रभु ने ब्रह्माण्ड के खण्ड और मण्डल बनाए हैं , वह प्रभु देखने में नहीं आता है अर्थात् वह नेत्र का विषय नहीं है । दीपक से दीपक जलाया , उस ज्योति से त्रयलोक दरसता है अर्थात् ज्ञानवान साधनशील ज्योति - मण्डल पर आरूढ़ पुरुष - रूप दीपक के सत्संग से जो अपने को भी वैसा दीपक बनाता है , उसको त्रयलोक दरसता है अर्थात ज्ञानवान साधनशील ज्योति-मंडल पर आरूढ़ पुरुष-रूप दीपक के सत्संग से जो अपने को वैसा दीपक बनाता है, उसको त्रैलोक दरसता है।वह सत्य की चौकी पर सत्य के महल में निर्भय ध्यान लगाता है । वह विरक्त योगी घट - घट में बजनेवाले मजीरे की ध्वनि से मोहित हो जाता है । गुरु नानक साहब कहते हैं कि प्रभु परमात्मा की शरण यदि छूटे , तो सद्गुरु सच्चे मित्र हैं अर्थात् ये न छूटने पावें ।। इति।।

इस भजन के बाद वाले भजन  ''अउहठि हसत मड़ी घरु छाइआ,....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  संत सदगुरु कौन है ? सच्चा सतगुरु कोन है? Who is Sadhguru ? Sadguru कौन हो सकता है? Sadhguru Intro. SACHA SATGURU KAUN ? पूर्ण संत की पहचान क्या है ? आदि बातें।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
 


नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक (पुस्तक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कृत)
संतवाणी-सटीक
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