गुरु नानक साहब की वाणी / 11
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''अलख अपार अगम अगोचरि,...'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। उसी के बारे मेंं यहां जानकारी दी जाएगी।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- धर्म के ग्रंथ वेद में ईश्वर को 'ब्रह्म' कहा गया है। ईश्वर या परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। वह ईश्वर क्या और भगवान कौन ? कहाँ हैं? कैसे मिलेंगे? ईश्वर किसे कहते हैं? ईश्वर की परिभाषा क्या है? ईश्वर के कितने नाम है? अध्यात्म के सबसे गहरे दो शब्द 'ईश्वर' और 'भगवान' के बारे में जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- भगवान और ईश्वर में क्या अंतर है? वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है? ईश्वर कितना नाम है? क्या ईश्वर सत्य है, ईश्वर का स्वरूप कैसा है, ईश्वर कौन है, सबसे बड़ा ईश्वर कौन है,ईश्वर एक है,ईश्वर का शाब्दिक अर्थ, ईश्वर और भगवान में अंतर, गीता के अनुसार ईश्वर की परिभाषा, आदि बातों को जानने के पहले आइए ! भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''अनहदो अनहदु बाजै...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
How is god । अलख अपार अगम अगोचरि
भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " परम प्रभु परमात्मा (ईश्वर) देखने की शक्ति से परे , असीम , मन और बुद्धि की पहुँच के परे , कुल - विहीन , काल और कर्म से रहित तथा भूल और मनोमय संकल्प से हीन है । उसकी स्थिति अवश्य है , उसके ऊपर अपने को न्योछावर करो । उसको रंग , रूप और रेखा नहीं है । सत्यशब्द उसका विभूति - रूप चिह्न है ।..... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
गुरु नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
अलख अपार अगम अगोचरि , ना तिसु काल न करमा । जाति अजाति अजोनी संभउ, ना तिसु भाउ न भरमा।रहाउ ।। साचे सचिआर विटहु कुरवाणु , ना तिसु रूप बरणु नहिं
रेखिआ , साचे सबदि नीसाणु ॥१ ॥
ना तिसु मातु पिता सुत बंधप , ना तिसु काम न नारी ।
अकुल निरंजन अपरपरंपरु , सगली जोति तुमारी ॥२ ॥
घट घट अन्तरि ब्रह्म लुकाइआ , घटि - घटि जोति सबाई । बजर कपाट मुकते गुरमती , निरभै ताड़ी लाई ॥३ ॥
जंत उपाई कालु सिरिजंता , बसगति जुगति सबाई ।
सतिगुरु सेवि पदारथु पावहि , छूटहि सबदु कमाई ॥४ ॥
सूचै भाडै साचु समावै , बिरले सूचाचारी ।
तंतै कउ परम तंतु मिलाइआ , नानक सरणि तुमारी ॥५ ॥
शब्दार्थ - अलख देखने के बाहर । अपार - असीम । अगम - मन और बुद्धि की गति से परे । अगोचरि - इन्द्रियों से परे । ना तिसु काल - कालातीत । अजोनी - अजन्मा । भाउ - संकल्प , ख्याला भरमा भूल । सचिआर - सत्य । विटहु उसके ऊपर । कुरवाणु न्योछावर । नीसाणु - चिह्न । अकुल - जिसका कुल नहीं । अपरपरंपरु - सबसे परे । सबाई - समाई । ताड़ी समाधि । बसगति - वश में आया । सूचै - पवित्र । भाडै बरतन , अन्तःकरण । सूचाचारी पवित्र आचरणवाला । ततै जीवात्मा , सुरत । परम तंतु - सारशब्द ।
पद्यार्थ -
टीकाकार -महर्षि मेंहीं |
परम प्रभु परमात्मा देखने की शक्ति से परे , असीम , मन और बुद्धि की पहुँच के परे , कुल - विहीन , काल और कर्म से रहित तथा भूल और मनोमय संकल्प से हीन है । उसकी स्थिति अवश्य है , उसके ऊपर अपने को न्योछावर करो । उसको रंग , रूप और रेखा नहीं है । सत्यशब्द उसका विभूति - रूप चिह्न है ॥१ ॥ उसको माता , पिता , बेटा , भाई , काम और स्त्री नहीं है । वह कुल - रहित , माया - रहित और सबके ऊपर है । सारा प्रकाश उसका ही है । ब्रह्म - पुरुष सब घटों में गुप्त है । उसकी ज्योति घट - घट में समाई हुई है । गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाला निडर ध्यान लगाकर वनकपाट ( अन्धकार ) को खोलकर उस ज्योति को देखता है।॥३ ॥ उस प्रभु ने जीवों को और समय को उत्पन्न किया तथा अपने वश में युक्ति से उन सबको रख लिया । सद्गुरु की सेवा करके उस प्रभु - रूप पदार्थ को गुरुमुख पाता है और शब्द - साधन का अभ्यास करके संसार से छूट जाता है।॥४ ॥ पवित्र अन्त : करणरूप बर्तन में सत्य समाता है और पवित्रता का आचरण करनेवाला बिरला होता है । गुरु नानक कहते हैं कि सुरत को सारशब्द में लीन करके , हे परम प्रभु ! वह तुम्हारी शरण में हो जाता है।।५ ।। इति।।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि धर्म के ग्रंथ वेद में ईश्वर को 'ब्रह्म' कहा गया है। ईश्वर या परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। वह ईश्वर क्या और भगवान कौन ? कहाँ हैं? कैसे मिलेंगे? ईश्वर किसे कहते हैं? ईश्वर की परिभाषा क्या है? ईश्वर के कितने नाम है? अध्यात्म के सबसे गहरे दो शब्द 'ईश्वर' और 'भगवान' के बारे में जानकारी। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 11, How is god । अलख अपार अगम अगोचरि । भजन भावार्थ सहित -सदगुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/25/2020
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