गुरु नानक साहब की वाणी / 23
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''शब्द तत्तु बीर्ज संसार,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी। जिसे पूज्यपाद छोटेलाल दास जी महाराज ने लिखा है।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- सार शब्द- ईश्वर की आवाज है। सार शब्द के श्रोत को ढूंढना नादानुसंधान कहलाता है। यह संसार का बीज है। यह सब सगुण शब्दों से भिन्न ढंग का और अपरम्पार ( अपार ) है। शब्द में सुरत को लगाने से अर्थात् सुरत - शब्द - योग करने से प्रकाश ( अंतर्योति , ब्रह्मज्योति ) प्रकट हो आता है । इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- गुरु नानक दी बानी, गुरु नानक देव जी दी बानी,गुरु नानक देव जी के भजन,गुरु नानक देव जी के भजन भावार्थ सहित, आदिनाद-ओंकार की महिमा, शब्द तत्तु बीर्ज संसार, सार शब्द का भेद, सारनाम क्या है, निःअक्षर क्या है,सारनाम मंत्र, सार शब्द' और उसकी धुन, सारशब्द क्या है, नि:अक्षर, सतनाम क्या है, सार अर्थ, क्षर अक्षर निःअक्षर, सोहंग क्या है? आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
Glory of adinad-onkar । शब्द तत्तु बीर्ज संसार
सुरत-शब्द-योग = ब्रह्माण्ड में होनेवाली अनहद ध्वनियों के बीच आदिनाद की परख करके उसमें सुरत को संलग्न करने का अभ्यास करना को कहते हैं, इसे ही नादानुसंधान भी कहा जाता है । इस शब्द की बड़ी महिमा है। सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " शब्दतत्त्व ( आदिनाद , ओंकार ) संसार का बीज है अर्थात् शब्दतत्त्व से ही संसार उत्पन्न हुआ है । वह शब्द उपमा - रहित अथवा सब सगुण शब्दों से भिन्न ढंग का और अपरम्पार ( अपार ) है।।२ ॥.... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी
॥ प्राण-संगली, भाग २, अध्याय ८ ॥
मूल पद्य ।।
शब्द तत्तु बीर्ज संसार । शब्द निरालमु अपर अपार ॥२ ॥ शब्द विचारि तरे बहु भेषा । नानक भेदु न शब्द अलेषा ॥५९ ॥ शब्दै सुरति भया प्रगासा । सभ को करै शब्द की आसा ॥ पंथी पंखी सिऊँ नित राता । नानक शब्दै शब्दु पछाता ॥६१ ॥ हाट बाट शब्द का खेलु । बिनु शब्दै क्यों होवै मेलु ॥ सारी स्त्रिष्टि शब्द कै पाछै । नानक शब्द घटै घटि आछै ॥६२ ॥
शब्दार्थ- तत्तु - तत्त्व । बीर्ज - वीर्य , बीज , कारण । निरालमु - निराला , उपमा - रहित , बेजोड़ । अपर - अपरम्पार , जिसका फैलाव बहुत अधिक हो । भेषा-भेषधारी , रूपधारी , शरीरधारी , प्राणी , मनुष्य । अलेषा - अलेख , जिसका लेखा नहीं है , अपार । पंखी - पक्षी । सिऊँ - सोऊ , वह भी । राता - लीन , स्त । पछाता - पहचाना जाता है । पाछै पीछे । आछे उपस्थित है , विद्यमान है ।
भावार्थ -
टीका- स्वामी लालदास जी |
शब्दतत्त्व ( आदिनाद , ओंकार ) संसार का बीज है अर्थात् शब्दतत्त्व से ही संसार उत्पन्न हुआ है । वह शब्द उपमा - रहित अथवा सब सगुण शब्दों से भिन्न ढंग का और अपरम्पार ( अपार ) है।।२ ॥ उस शब्द का विचार करके ( ध्यान करके ) बहुत - से शरीरधारी मनुष्य संसार - सागर से तर गये । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि वह शब्द भेद - रहित ( प्रकार - रहित अर्थात् एक - ही - एक ) है और बहुत अधिक फैलाव रखनेवाला है ।५ ९ ॥ शब्द में सुरत को लगाने से अर्थात् सुरत - शब्द - योग करने से प्रकाश ( अंतर्योति , ब्रह्मज्योति ) प्रकट हो आता है । सभी कोई शब्द की ही आशा करते हैं अर्थात् सभी कोई शब्द की आवश्यकता महसूस करते हैं । यहाँ तक कि जो मार्ग चलनेवाले पथिक हैं और जो आकाश में उड़नेवाले पक्षी हैं , वे भी नित शब्द में लीन रहते हैं ( वे भी सदा शब्द - व्यवहार करते हैं ) । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि अंदर में एक शब्द के द्वारा ऊपर के दूसरे शब्द की पहचान होती है ।६१ ॥ हाट ( बाजार ) हो या बाट ( रास्ता ) -सर्वत्र शब्द का ही खेल ( व्यवहार , उपयोग ) होता है । बिना शब्द के परमात्मा से कैसे मिलाप हो सकता है अथवा बिना शब्द के एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से या किसी पदार्थ का कैसे मिलाप ( परिचय ) हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता । सृष्टि के समस्त प्राणी शब्द के अनुयायी हैं ( शब्द का अनुसरण या व्यवहार करनेवाले हैं ) अथवा समस्त सृष्टि आदिशब्द के पीछे और उसी से उत्पन्न हुई है अथवा सारी सृष्टि शब्द का कार्य है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि वह आदिशब्द घट - घट में ( प्रत्येक शरीर में अथवा सृष्टि के कण - कण में ) विद्यमान है ।६२ ॥
टिप्पणी -१ . आदिशब्द परमात्मा से सृष्टि के पूर्व उत्पन्न हुआ है । इसीलिए उसका फैलाव प्रकृति - मंडलों से अधिक है । कई संतों की तरह सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ने भी आदिशब्द को अपार कहा है - ' धुन अनहत अपार , परम पुरुष को आकार । ' ( महर्षि मेंहीं -पदावली , ७७ वाँ पद्य ) संत चरणदासजी ने भी आदिशब्द को अनहद शब्द कहते हुए उसे अपार बताया है - ' अनहद शब्द अपार , दूर तूं दूर है । चेतन निर्मल शुद्ध , देह भरपूर है । ' इति।।
इस भजन के बाद वाले भजन ''साध संगति महि ऋद्धि सिद्धी बुद्धि ज्ञानु,,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सार शब्द- ईश्वर की आवाज है। सार शब्द के श्रोत को ढूंढना नादानुसंधान कहलाता है। यह संसार का बीज है। यह सब सगुण शब्दों से भिन्न ढंग का और अपरम्पार ( अपार ) है। शब्द में सुरत को लगाने से अर्थात् सुरत - शब्द - योग करने से प्रकाश ( अंतर्योति , ब्रह्मज्योति ) प्रकट हो आता है । । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सुधा सटीक |
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नानक वाणी 23, Glory of adinad-onkar । शब्द तत्तु बीर्ज संसार । भजन भावार्थ सहित -बाबा लालदास
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/07/2020
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