गुरु नानक साहब की वाणी / 24
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- साधु - संतों की संगति में ऋद्धि - सिद्धियाँ मिलती हैं और बुद्धि - ज्ञान बढ़ते हैं । शब्द - ध्यान में जब किसी को पाँच मंडलों के पाँच केन्द्रीय नाद मिलते हैं , तब वह मुक्त हो जाता है । जिसको पाँच केन्द्रीय शब्द मिलते हैं , वही प्रभु को पाता है । इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- साधु संगति में ऋद्धि-सिद्धि, संगति पर दोहा, कुसंग से संबंधित दोहे, संगत से गुण होत है, ऋद्धि-सिद्धि का अर्थ, रिद्धि सिद्धि मीनिंग, रिद्धि सिद्धि वृद्धि होती,रिद्धि सिद्धि क्या है,रिद्धि सिद्धि कैसे प्राप्त करें रिद्धि सिद्धि कैसे प्राप्त होती है, रिद्धि सिद्धि कैसे होती है, रिद्धि सिद्धि कैसे प्राप्त की जाती है, रिद्धि सिद्धि कैसे आती है, रिद्धि सिद्धि कैसे लिखा जाता है, रिद्धि सिद्धि कैसे बनाएं, रिद्धि सिद्धि कैसे प्राप्त होगी, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''शब्द तत्तु बीर्ज संसार,..'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति पर चर्चा करते बाबा नानक |
How to get Riddhi Siddhi
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " साधु - संतों की संगति में ऋद्धि - सिद्धियाँ मिलती हैं और बुद्धि - ज्ञान बढ़ते हैं । शब्द - ध्यान में जब किसी को पाँच मंडलों के पाँच केन्द्रीय नाद मिलते हैं , तब वह मुक्त हो जाता है । जिसको पाँच केन्द्रीय शब्द मिलते हैं , वही प्रभु को पाता है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि गुरु के मिलने पर परमात्म - प्राप्तिरूप कार्य सम्पन्न हो जाता है।.... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
साध संगति महि ऋद्धि सिद्धी बुद्धि ज्ञानु । पंच मिलै तब मुक्त ध्यानु ॥ पंच मिलै पावहि प्रभु सोय । नानक गुर मिलिऔ कार्य सिद्ध होय ॥३५ ।। पंच मिलहि परवार सधार । मूल ध्यान धर ओअंकार । सतिगुर मिलै भउभंजन गाइौ । नानक अनहद शब्द समाइऔ ॥ शब्द पछान मिलै गुर ज्ञानु । नानक तारू थाहि पछानु ॥३८ ॥ सचु अस्थिरु पंच सागर मझारे । अदल करै अपने वीचारे । पंचा का जो जाने भेउ । ओह अलष निरंजन करता देठ ॥ सो अगम निगम का जाणै जाणु । नानक घटि घटि पुरुष सुजानु ।।४८ ॥
शब्दार्थ - ऋद्धि सिद्धी - ऋद्धि - सिद्धि , समृद्धि - सम्पन्नता ( वृद्धि ) और सफलता । ( अलौकिक शक्ति को भी सिद्धि कहते हैं , जो आठ प्रकार की होती है - अणिमा , महिमा , गरिमा , लघिमा , प्राप्ति , प्राकाम्य , ईशित्व और वशित्व । ) पंच - पाँच केन्द्रीय शब्द । परवार - परिवार , सब सृष्टियाँ । ( सब सृष्टियाँ परमात्मा के परिवार हैं । ) सधार - साधार , आधार - सहित , सबके आधारभूत परमात्मा के सहित । भउ भंजन संसार ( जन्म - मरण ) को नष्ट करनेवाला । पछान - पहचान करो । तारू - तालु , ब्रह्मांड । थाहि - ताहि , उसको अथवा अंत में , पार में । सचु सत्य , परम तत्त्व , परमात्मा । अस्थिरु - स्थिर , अटल , परमात्मा । पंच सागर - पाँच समद्र , सृष्टि के पाँच मंडल - स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्या मझारे मध्य में , बीच में । अदल - हुक्म , आज्ञा , शासन । भेउ - भेव , भेद , रहस्य । ओह वह । अलष - अलख , स्थूल या सूक्ष्म दृष्टि से नहीं देखनेयोग्य । निरंजन माया - रहित । देउ - देव , परम देव परमात्मा । अगम आगम , शास्त्र । निगम - वेद । जाणु - ज्ञान । पुरुष सुजानु - विज्ञानी परम पुरुष परमात्मा ।
भावार्थ -
टीका- स्वामी लालदास जी |
साधु - संतों की संगति में ऋद्धि - सिद्धियाँ मिलती हैं और बुद्धि - ज्ञान बढ़ते हैं । शब्द - ध्यान में जब किसी को पाँच मंडलों के पाँच केन्द्रीय नाद मिलते हैं , तब वह मुक्त हो जाता है । जिसको पाँच केन्द्रीय शब्द मिलते हैं , वही प्रभु को पाता है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि गुरु के मिलने पर परमात्म - प्राप्तिरूप कार्य सम्पन्न हो जाता है।॥३५ ॥ पाँच नादों से सबके आधार ( परमात्मा ) -सहित परिवार ( समस्त सृष्टियाँ ) मिलते हैं अर्थात् पाँच नादों से सबके आधारस्वरूप परमात्मा के सहित समस्त सृष्टियों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है । मूल - ध्यान ( सर्वोत्तम ध्यान - शब्द - ध्यान ) में ओंकार को पकड़ो अथवा ओंकार का ध्यान सर्वोत्कृष्ट ध्यान है , वह करो । सद्गुरु मिलें , तो जन्म - मरण को मिटानेवाले उन सद्गुरु का गुण - गान करो । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि अनहद शब्द ( अनहत शब्द , अनाहत शब्द , ओंकार ) में समाकर ( लीन होकर ) रहो । गुरु - ज्ञान मिलने पर आदिशब्द की पहचान करो । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि उस आदिशब्द को तालु - स्थान ( ब्रह्मांड ) में पहचानो ॥३८ ॥ सत्य और अटल परमात्मा पंच समुद्रों ( सृष्टि के पाँच मंडलों ) पर अपने विचार से ( स्वतंत्र होकर ) हुक्म करता है ( शासन करता है ) । पंच केन्द्रीय नादों का जो रहस्य जानता है , वह अलख निरंजन सृष्टिकर्ता परम देव के समान हो जाता है । वह शास्त्रों और वेदों का ज्ञान जानने लगता है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि सुजान पुरुष ( अच्छे ज्ञानवाला परम पुरुष परमात्मा - विज्ञानी परम पुरुष परमात्मा ) घट - घट ( प्रत्येक शरीर अथवा सृष्टि के कण - कण ) में व्याप्त है ॥४८ ॥
टिप्पणी - आदिनाद ही परमात्मा से मिलाने में सक्षम है । अतएव आदिनाद का ध्यान सर्वोत्कृष्ट ध्यान है । मंडलब्राह्मणोपनिषद् में सृष्टि के पाँच परमाकाश ) कहे गये जान पड़ते हैं । मंडल ही पाँच आकाश ( आकाश , पराकाश , महाकाश , सूर्याकाश और परमाकाश) कह गए जान पड़ते हैं।
इस भजन के बाद वाले भजन ''ज्ञान खड़ग ले मनु सिउ लूझे,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि साधु - संतों की संगति में ऋद्धि - सिद्धियाँ मिलती हैं और बुद्धि - ज्ञान बढ़ते हैं । शब्द - ध्यान में जब किसी को पाँच मंडलों के पाँच केन्द्रीय नाद मिलते हैं , तब वह मुक्त हो जाता है । जिसको पाँच केन्द्रीय शब्द मिलते हैं , वही प्रभु को पाता है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी-सुधा सटीक |
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