नानक वाणी 30, kis gupha mein hai aanand ka akshay bhandaar ।। इस गुफा महि ।। भजन भावार्थ सहित

गुरु नानक साहब की वाणी / 30

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी। जिसे पूज्यपाद  छोटेलाल दास जी महाराज ने लिखा है। 

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  में बताया गया है किशरीर रूपी गुफा में क्या-क्या है? आनंद का अक्षय भंडार किस गुफा में है? गुफा में छिपने और प्रगट होने वाले कौन है? क्या सुनने से अहंकार का नाश हो जाता है? गुरु का शब्द क्या है? व्रज-कपाट को कौन खोल सकता है? व्रज-कपाट क्या है? व्रज-कपाट खुलने पर क्या मिलता है? परमात्मा का नाम कहां मिलता है? गुरु कृपा की आवश्यकता क्यों है? संत सतगुरु किसे मिलता है ?  इन बातों की जानकारी  के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे किसोनभंडार का रहस्य, सोने की गुफा कहां स्थित है, भंडार का अर्थ, सोने की गुफा कहानी, भंडार in English, भंडार किसे कहते हैं, भंडार का अर्थ, सोनभंडार का रहस्य, भंडार in English, शब्द भंडार,भंडार किसे कहते हैं, आनंद खजाना कितना है, दुनिया का आनंद भंडार, विश्व का अक्षय भंडार, भारत का अक्षय भंडार,  आदि बातें। इन बातों को जानने के पहले, आइए !  सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें। 


इस भजन के पहले वाले भजन ''करमु होवै सतिगुरू मिलाए ,......'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं


अक्षय खजाने का राज बताते सद्गगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज
अक्षय खजाने का राज बताते बाबा नानक


In which cave is the inexhaustible store of pleasure

सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि- "What is there in a body cave?  In which cave is the Akshaya Bhandar of Anand?  Who is going to hide and appear in the cave?  Does listening ego destroy them?  What is Guru's word?  Who can open Vraj-kapat?  What is Vraj Kapat?  What is found when Vraj-Kapat is opened?  Where do you find the divine name?  Why is Guru Kripa required?  Who meets the saint Satguru?... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए गुरु वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें- 


 रागु माझ , महला ३ ॥ ( शब्द २ 


इस गुफा महि अखुट भंडारा । तिसु बिचि बसै हरि अलख अपारा । आपे गुपतु परगट है आपे , गुर सबदि आप वंजावणिआ ॥ हउ वारी जीउ वारी , अंम्रित नामु मंनि वसावणिआ । अंम्रित नामु महा रसु मीठा , गुरमती अंम्रितु पिआवणिआ ॥रहाउ ॥ हउमैं मारि बजर कपाट खुलाइआ । नाम अमोलकु गुर परसादी पाइआ । बिनु सबदै नामु न पाए कोई , गुर किरपा मंनि वसावणिआ ॥२ ॥ गुर गिआन अंजन सचुनेत्री पाइआ , अंतरि चानणु अगिआनु अंधेरु गवाइआ । जोती जोति मिली मनु मानिआ , हरि दरि सोभा पावणिआ ॥३ ॥ सरीरहु भालणि को बाहरि जाए । नामुन लहै बहुतु बेगारिदुखु पाए । मनमुख अंधे सूझै नाहीं फिरि घरि आइ गुरमुखि वथु पावणिआ ॥४ ॥ गुर परसादी सचा हरि पाए । मनि तनि वेखै हठमैं मैल जाए । वैसि सुथानी सद हरिगुण गावै , सचै सबदि समावणिआ ॥५ ।। नउ दरि ठाके धावतु रहाए । दसवै निज घरि वासा पाए । उथै अनहद सबद बजहि दिन राती , गुरमति शबदु सुणावणिआ ॥६ ॥ बिनु शबदै अंतरि आनेरा । न बसतु लहै न चूकै फेरा । सतिगुर हथि कुंजी होरतुदरु खुलै नाहीं , गुर पूरै भागि मिलावणिआ ॥७ ॥ गुपतु परगटु सभनी थाई । गुर परसादी मिली सोझी पाई । नानक नाम सलाहि सदा तूं , गुरमुखि मंनि वसावणिआ ॥८॥२४॥२५ ॥ 

शब्दार्थ - अखुट - अघट , नहीं घटनेवाला , अक्षय । वंजावणिआ बजाया है या गँवाया । भालणि को देखने के लिए । बेगारि - बिना मजदूरी के । वधु - वस्तु । वेखै देखता है । वैसि - बैठकर । सुथानी - सुंदर स्थान पर । सद - सदा । ठाके ठहरा रहने पर । उथै - उठता है , उत्पन्न होता है । आनेरा अँधेरा । चूकै नष्ट होता है । फेरा - आवागमन का चक्र । होरतु और से । थाई - ठाईं , स्थान । सलाहि सराहना कर , स्तुति कर , साधन कर । 


Tikakar Swami Lal Das Ji Maharaj
भावार्थकार- बाबा लालदास

भावार्थ - इस शरीररूपी गुफा में ज्ञान , शक्ति और आनंद का अक्षय भंडार है । इसके बीच अलख , अपार ( अनंत ) परमात्मा रहता है । वह स्वयं छिपा हुआ है और स्वयं प्रकट भी है । ( परमात्मा का मूल स्वरूप गुप्त है और सगुण - साकार रूप प्रकट है । ) गुरु के शब्द ( आदिनाद , अनाहत नाद ) को वह परमात्मा स्वयं बजाता है - ध्वनित करता है अथवा गुरु का शब्द ( उपदेश या अनाहत नाद ) उसके सुननेवाले का अहंकार नष्ट कर डालता है । अहंकार और हृदय को निछावर करके शिष्य अमृत नाम ( अनाहत नाद ) को मन में बसाता है अथवा अमृत नाम के ध्यान से मन को वशीभूत करता है । अमृत नाम सबसे अधिक आनंद देनेवाला मीठा पदार्थ है । गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाला शिष्य उस नामरूपी अमृत को पीता है ॥१ ॥ रहाउ ॥ अहंकार को गँवाकर वज्र - कपाट ( नयनाकाश के अंधकार - रूप कठोर किवाड़ ) को खोलता है और गुरु की कृपा से उस अनमोल नाम को प्राप्त करता है । अनहद नादों के बिना कोई वह अमृत नाम नहीं पाता ; गुरु - कृपा से ही कोई उस नाम को मन में बसा पाता है ॥२ ॥ गुरु के ज्ञानरूपी अंजन से कोई सच्चा नेत्र ( दिव्य दृष्टि ) प्राप्त करता है और अंतर के प्रकाश से अज्ञान - अंधकार को नष्ट करता है । परम ज्योति ( परमात्मा ) से ज्योति ( चेतन आत्मा ) के मिल जाने पर मन स्थिर हो जाता है और साधक हरि के द्वार ( दशम द्वार ) पर प्रतिष्ठित होकर शोभा पाने लगता है ॥३ ॥ परमात्मा को देखने ( अनुभूत करने ) के लिए शरीर से बाहर जो जाता है , वह परमात्मा का नाम नहीं पाता है और बिना मजदूरी के ( बिना किसी लाभ के ) ही बहुत दुःख पाता है । मनमुख ( निगुरे ) और अन्धे ( अज्ञानी ) को वह नाम सूझता नहीं है । जब वह गुरुमुख होकर बाहरी संसार से उलटकर शरीर के अंदर समाता है , तब वह शरीर के ही अंदर वस्तु ( आदिनाम ) को पाता है ॥४ ॥ गुरु की कृपा से कोई सत्य परमात्मा को पाता है । जब मणिरूपी परमात्मा को शरीर के अंदर देखता है , तब उसके अहंकार आदि दोष दूर हो जाते हैं ; अच्छे स्थान पर ( अंतराकाश में ) बैठकर वह सदा हरि के गुण गाता है और सारशब्द ( अनाहत नाद ) में समा जाता है ॥५ ॥ शरीर के नवो द्वारों में स्थित रहने पर मन चलायमान ( चंचल ) रहता है । दसवाँ द्वार मन का निज घर है । वहीं वह स्थिर होकर बासा पाता है । अंदर में अनहद ध्वनियाँ उठ रही -उत्पन्न हो रही हैं ; दिन - रात वे बजती रहती हैं । गुरुमुख उन ध्वनियों को सुन पाता है ॥६ ॥ बिना नाद के अंदर में अँधेरा छाया रहता है ; न वस्तु की प्राप्ति होती है और ने फेरा ( आवागमन का चक्र ) ही नष्ट होता है । सद्गुरु के हाथ में कुंजी है ; और किसी से द्वार नहीं खुलता है । पूरे सद्गुरु भाग्य से मिलते हैं।॥७ ॥ परमात्मा गुप्त और प्रकट रूप से सब जगहों में है ; गुरु की कृपा मिलने पर उस परमात्मा की सूझ ( ज्ञान ) प्राप्त होती है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि तू सदा नाम की साधना कर । गुरुमुख उस नाम से मन को वश करता है अथवा उस नाम को सदा मन में बसाता है ॥८ ॥

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इस भजन के बाद वाले भजन  ''गुर की सेवा करि पिरा....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि shareer roopee gupha mein kya-kya hai? aanand ka akshay bhandaar kis gupha mein hai? gupha mein chhipane aur pragat hone vaale kaun hai? kya sunane se ahankaar ka naash ho jaata hai? guru ka shabd kya hai? vraj-kapaat ko kaun khol sakata hai? vraj-kapaat kya hai? vraj-kapaat khulane par kya milata hai? paramaatma ka naam kahaan milata hai? guru krpa kee aavashyakata kyon hai? sant sataguru kise milata hai ?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



नानक वाणी भावार्थ सहित

संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
संतवाणी-सुधा सटीक
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नानक वाणी 30, kis gupha mein hai aanand ka akshay bhandaar ।। इस गुफा महि ।। भजन भावार्थ सहित नानक वाणी 30, kis gupha mein hai aanand ka akshay bhandaar ।।  इस गुफा महि ।। भजन भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/26/2021 Rating: 5

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