नानक वाणी 42 पंच शबद तह पूरन नाद || ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्यों की चर्चा

गुरु नानक साहब की वाणी / 42

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने लिखा है। 

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ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्यों
ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्यों

ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्य


प्रभु प्रेमियों सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  द्वारा कहते हैं किब्रह्मांड में होने वाले मुख्य नाद कितने हैं? अनहद नाद किस तरह बजता हैं? उस नाद को सुनने से कहां पहुंच जाते हैं?  वह स्थान कैसा है ? वहां किस तरह से बैठने का आसन है? वहां क्या करते हैं? वहां क्या खाते हैं और क्या बातचीत करते हैं? वहां के  साथी संगी कैसे होते हैं? वहां का आनंद कैसा है ? इत्यादि बातें  अगर आपको उपर्युक्त तो बातों के बारे में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त करना है तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-


॥ राग रामकली , महला ५ ॥ 

( शब्द ४ ) 

पंच शबद तह पूरन नाद । अनहद बाजे अचरज बिसमाद ॥ 
केल करहि संत हरि लोग । पार ब्रह्म पूरन निरजोग ॥ 
सूख सहज आनंद भवन । साध संगि बैस गुण गावह 
                      तह रोग सोग नहिं जनम मरन ॥ १ ॥ रहाउ ॥  ऊहा सिमरहि केवल नामु । बिरले पावहि उहू विस्स्राम ॥ 
भोजन भाउ कीरतन आधारु । निहचल आसन बेसुमारु ॥२ ॥
डिगि न डोलै कतहु न धावै । गुर प्रसादि को इहु महलु पावै ॥ 
भ्रम भै मोह न माइआ जाल । सुन समाधि प्रभू किरपाल ॥३ ॥ 
ता का अंतु न पारावारु । आपे गुपतु आप पासारु ॥ 
जाके अंतरि हरि हरि सुआदु । कहनु न जाइ नानक बिसमादु ॥४॥९ ॥२० ॥ 

शब्दार्थ

तह - तहाँ पूरन नाद पूरण नाद , सब इच्छाओं को पूरा करनेवाला नाद , अनाहत नाद । अचरज = आश्चर्यजनक । बिसमाद = विस्मयजनक , आश्चर्यजनक , अनुपम। केल = केलि , क्रीड़ा , आनंद। निरजोग = निर्योग , जो दो या दो से अधिक पदार्थों का मिश्रित या संयुक्त रूप नहीं है ; बेजोड़ , अकेला , एक - ही - एक । ऊहा - वह , वहाँ । बेसुमारु= बेशुमार , अनगिनत , अनंत ।   
( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए "संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें ) 
 

भावार्थ - वहाँ ( ब्रह्माण्ड में ) पाँच केन्द्रीय शब्द , पूरण नाद ( अनाहत नाद ) तथा अनहद नाद आश्चर्यजनक और अनुपम रूप से बजते हैं । निःशब्द परम पद में संत और हरि ( भगवन्त और परमात्मा ) या हरिरूप संत लोग क्रीड़ा करते हैं - आनंद करते हैं । परब्रह्म परमात्मा अपने आपमें पूर्ण और एक ही एक है ॥ १ ॥ 

उसके भवन ( धाम ) में सहज सुख और आनंद है । साधु - संत उसके साथ बैठकर उसके गुण गाते हैं ; वहाँ रोग - शोक और जन्म - मरण आदि द्वन्द्व भाव नहीं हैं ॥१ ॥ रहाउ ॥ 

वहाँ साधु - संत केवल हरि के नाम का सुमिरन करते हैं । बिरले ही लोग उस शांतिमय स्थान को पाते हैं । वहाँ प्रेम तथा गुणगान का भोजन और आधार है । वहाँ जो आसन ( रहने या बैठने की जगह ) है , वह अचल और अनंत है ॥ २ ॥ 

वह न कभी डिगता है , न डोलता है और न कभी कहीं दौड़कर तेजी से चलकर जाता ही है । गुरु की कृपा से ही कोई इस महल को पाता है । इस महल में न तो भ्रम भय है और न मोह - मायाजाल ही । कृपालु प्रभु शून्य - समाधि लगने पर ( तुरीयातीत पद में ) प्राप्त होता है ॥ ३ ॥ 

उसका अंत नहीं है - वारापार ( सीमा , आदि - अंत ) नहीं है । आप ही वह गुप्त ( छिपा हुआ , अव्यक्त ) है और आप ही वह प्रसार ( माया , सृष्टि ) के रूप में व्यक्त ( प्रकट ) है । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि जिनके हृदय में हरि और हरिनाम का स्वाद ( आनंद ) है , वे अनुपम हैं ; उनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता || ४ || ९ || २० || 


टिप्पणी

. अनाहत नाद पंच केन्द्रीय नादों में से एक है । इसका मंडल कैवल्य मंडल है । कैवल्य मंडल का केन्द्र स्वयं परमात्मा है । आंतरिक ध्वनियाँ छहो राग और छत्तीसो रागिनियों में निरंतर अपने आप ध्वनित होती रहती हैं , इसीलिए इन ध्वनियों को आश्चर्यजनक कहा गया है ।

२. ' पंच शब्द ह पूरन नाद । ' का अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है- ' वहाँ ( ब्रह्माण्ड में ) पंच केन्द्रीय शब्द भरपूर हो रहे हैं ।∆


आगे है-

भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ ।.... 


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संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न  चित्र की भांति प्रकाशित है-


नानक बानी 42

नानक वाणी 42अ


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई, वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति, ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत, ब्रह्मांड से रोग का नाश है, हमारे ब्रह्मांड का केंद्र है, ब्रह्मांड कैसे बना, ब्रह्माण्ड का चित्र, ब्रह्मांड में कितने सूर्य हैं, ब्रह्मांड से क्या तात्पर्य है, ब्रह्मांड कितना बड़ा है, ब्रह्मांड से पहले क्या था, ब्रह्माण्ड के रहस्य, ब्रह्माण्ड की रचना किसने की, ब्रह्मांड की संरचना,   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है। 




संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
संतवाणी-सुधा सटीक
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नानक वाणी 42 पंच शबद तह पूरन नाद || ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्यों की चर्चा नानक वाणी 42   पंच शबद तह पूरन नाद  ||  ब्रह्माण्ड के पांच केंद्रीय नादों के अद्भुत कार्यों की चर्चा Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/07/2021 Rating: 5

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