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नानक वाणी 43 भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ, भजन भावार्थ सहित || सुख-दुख का वास्तविक कारण

 गुरु नानक साहब की वाणी / 43

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने लिखा है। 

इस भजन के पहले वाले भजन ''पंच शबद तह पूरन नाद ।,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   👉 यहाँ दवाएँ.


नानक वाणी 43

सुख-दुख का वास्तविक कारण

प्रभु प्रेमियों सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) द्वारा कहते हैं कि- माया में फंसने का क्या कारण है? कर्मों का बंधन कैसे होता है? विषय सुख कैसा होता है? बिषयानंद में पड़कर आदमी कौन सा कर्तव्य भूलता है? परमात्मा कहां-कहां है और उसके भक्ति कहां करनी चाहिए? जीने का सच्चा मक़सद क्या है? परम रतन होते हुए भी व्यक्ति दुखी क्यों रहता है? इत्यादि बातें अगर आपको उपर्युक्त तो बातों के बारे में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त करना है तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-


॥ जैतसरी , महला ९ ॥ ( शब्द २ ) 

१ ॐ सतिगुर प्रसादि । 


भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ । जो जो करम कीउ लालच लगि , तिह तिह आपु बंधाइड ॥ रहाउ || समझ न परी बिखै रस रचिउ , जसु हरि को बिसराइउ ॥ संगि सुआमि सो जानिउ नाहिन , वनु खोजन कउ धाइउ ॥१ ॥ रतनु राम घट ही के भीतरि , ताको गिआनु न पाइउ ॥ जन नानक भगवन्त भजन बिनु , बिरथा जनमु गवाइउ ॥२॥१ ॥ 


शब्दार्थ - 

भूलिउ = भूल से , भूलकर , अज्ञानता से । उरझाइउ = उलझ गया , फँस गया । तिह - तिह - उस - उसमें , वहाँ - वहाँ । बिखै रस = विषयरूपी विष का आनंद । रचिउ = रच गया , अनुरक्त हो गया । जसु = यश , गुणगान। ( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए "संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें ) 


भावार्थ - 

अज्ञानता से मन माया में उलझ गया । उसने लालच में लगकर ( लालच के वशीभूत होकर ) जो - जो कर्म किया , उस उससे उसने अपने आप को बँधा लिया ॥ रहाउ ॥

विषय विष के समान है यह बात उसकी समझ में नहीं आयी ; वह उसके आनंद में अनुरक्त हो गया और परमात्मा का गुणगान भुला दिया । स्वामी ( परमात्मा ) साथ ही है - इस बात को उसने नहीं जाना । उस स्वामी ( परमात्मा ) को खोजने के लिए उसने जंगल की ओर ( शरीर के बाहर ) गमन किया ॥१ ॥ 

परमात्मारूपी रत्न अपने शरीर के ही भीतर है , उसका उसने ज्ञान नहीं पाया । भक्त नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि परमात्मा की भक्ति किये बिना जन्म ( जीवन ) को व्यर्थ ही गँवा दिया ॥ २ ॥ १ ॥ 

टिप्पणी - 

१. सब सिक्ख गुरुओं ने आदिगुरु नानकदेव के ही नाम पर पद रचना की है । ' महला १ ' अंतर्गत प्रथम गुरु नानकदेवजी की वाणी , ' महला २ ' के अंतर्गत गुरु अंगददेवजी की वाणी , ' महला ३ ' के अंतर्गत गुरु अमरदासजी की वाणी , ' महला ४ ' के अंतर्गत गुरु रामदासजी की वाणी , ' महला ५ ' के अंतर्गत गुरु अर्जुनदेवजी की वाणी और ' महला ९ ' के अंतर्गत गुरु तेगबहादुरजी की वाणी संगृहीत की गयी है । 

२. रामकली , भैरव , माझ , गोंड , गउड़ी , मारू , कल्याण , गुजरी , सोरठि , जैतसरी , धनासरी आदि में प्रत्येक राग का नाम है , जो पद्य के ऊपर दिया गया है । 

. ' आसा दी वार ' गुरु अंगददेवजी की और ' आनन्दु ' गुरु अमरदासजी की रचना का नाम है ।∆


आगे है-

१ ॐ वाह गुरुजी की फते ( श्री मुख वाक पातिशाही १० अकाल ऊसतत बिचों ) त्व प्रसादि । चउपई

प्रणवो         आदि     ऐकंकारा । 
जल थल महीअल कीउं पसारा ॥ 
आदि पुरुष अवगत  अविनासी । 
                लोक    चत्रुदस  जोति  प्रकासी ॥१ ॥ ...... 


इस भजन के बाद वाले भजन  ''प्रणवो  आदि     ऐकंकारा....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं


संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न  चित्र की भांति प्रकाशित है-

नानक वाणी 43   भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ,


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि   क्या दुख के बाद सुख आता है, जीवन में सबसे बड़ा सुख क्या है, जीवन में सुख और दुख, सुख दुख का कारण, सुख और दुख को किस प्रकार ग्रहण करना चाहिए, वास्तविक सुख क्या है, प्रकृति सुख-दुख से परे है भाव विस्तार कीजिए, सच्चा सुख क्या है, आज सुख की परिभाषा क्या हो गई है,   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है। 



संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
संतवाणी-सुधा सटीक
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नानक वाणी 43 भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ, भजन भावार्थ सहित || सुख-दुख का वास्तविक कारण नानक वाणी 43   भूलिउ मनु माइआ उरझाइउ, भजन भावार्थ सहित  ||  सुख-दुख का वास्तविक कारण Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/08/2021 Rating: 5

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