सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 53
परमात्मा की अद्भुत आरती. Wonderful Aarti of God-
प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज अपने निम्नलिखित वाणी के द्वारा प्रगट करते हैं कि परमात्मा की अद्भुत आरती कैसे होती है? अद्भुत आरती में थाल, दीपक, धूप, उधर, फूल इत्यादि सामग्री क्या है? परमात्मा कैसे देखता है? कैसे चलता है? कैसे गंध ग्रहण करते हैं? अंदर में ज्योति कैसे प्रकट होता है? अंतर-ज्योति के प्रकाश में आरती सर्वाधिक महत्वपूर्ण है? परमात्म-प्राप्ति की लगन चातक पक्षी की तरह होनी चाहिए.
गुरु नानकदेवजी महाराज की वाणी
( ५३ )
शब्दार्थ- गगन मै = गगनमय , आकाश का बना हुआ । तारिका मंडल = तारा - मंडल , तारागण । जनक = जान पड़ता है , मानो । मलआनलो = मलयानिल , चंदन के पहाड़ की वायु । चवरो = चँवर , डाँड़ी में लगा हुआ सुरा गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा , जो राजाओं या देवमूर्ति के सिर पर डुलाया जाता है । सगल = सकल , समस्त । बनराड़ = वनराजि , वृक्षों का समूह , जंगल । भवखंडना = संसार को अर्थात् जन्म - मरण के चक्र को मिटानेवाला । भेरी = नगाड़ा । सहस = हजार । नन = बिना । गंध = गंध को ग्रहण करनेवाली इन्द्रिय , नाक । इव = यह । चलत = चलती , प्रभाव , गति , चाल , लीला । मोही = मोहित करनेवाला । चानणि = चाँदनी , प्रकाश । साखी = साक्षी , गवाही , गवाह , उपदेश - वाक्य । मकरन्द = फूलों का रस । सारिंग = सारंग , चातक , पपीहा । कउ = को । जाते = जिससे । नामि = नाम में । ( अन्य शब्दों के शब्दार्थादि देखने के लिए देखें-- मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश+महर्षि मेँहीँ-शब्दकोश' )
भावार्थ - आकाश - मंडल थाल है , चन्द्रमा और सूर्य उसमें दो दीपक हैं ; तारागण मानो उसमें जड़े हुए मोती हैं । चंदन वृक्षों के पहाड़ से आनेवाली वायु धूप है ; पवन चँवर डुलाता है ; और हे परम ज्योतिस्वरूप परमात्मा ! सभी जंगल तेरे प्रति अर्पित फूल हैं ॥१ ॥ हे भवखंडन ( जन्म - मरण के चक्र को नष्ट करनेवाले ) परमात्मा ! तेरी यह कैसी अद्भुत आरती हो रही है , जिसमें अनहद नाद का नगाड़ा बज रहा है ॥१ ॥ रहाउ ॥
तुझे आँख नहीं है , फिर भी तू हजारों आँखों से सब कुछ और सर्वत्र देखता है । तेरा कोई विशेष रूप नहीं है , फिर भी दिखाई पड़नेवाले हजारों रूप तेरे ही हैं । तुझे चरण नहीं है , फिर भी तू हजारों पवित्र चरणों से चलता है। तुझे नाक नहीं है , फिर भी तू हजारों नाकों से गंध ग्रहण करता है । मैं तेरी अद्भुत लीला पर मोहित हो रहा हूँ ॥ २ ॥
सबमें जो ज्योति ( गुण , धर्म या विशेषता ) है , वह तू ही है । तेरे ही प्रकाश से सब प्रकाशित हो रहे हैं ( तेरी ही विद्यमानता के कारण सब विद्यमान हो रहे हैं ) । गुरु के उपदेश - वाक्य का आचरण करने पर अंदर में ज्योति प्रकट होती है । जो आरती तुझे अच्छी लगती है , वैसी ही तेरी आरती होती है ॥३ ॥
हे परमात्मा ! मेरा मन तेरे चरण कमल के रस का लोभी हो गया है , सदा उसे उस रस की प्यास लगी रहती है । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि हे परमात्मा ! मुझ चातक को अपने कृपा - जल की एक बूँद प्रदान कर , जिससे मैं तेरे नाम में बस सकूँ ॥४ ॥ ∆
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