नानक वाणी 53 || गगन मै थालु .. अर्थ सहित || परमात्मा की अद्भुत आरती.Wonderful Aarti of God

सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 53

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी  सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज एवं अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संत-वचनावली सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी "गगन मै थालु रबि चन्दु दीपक बने , तारिका मंडल जनक मोती ।  "  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे   पूज्यपाद लालदास जी महाराज  ने लिखा है।   

     इस भजन के पहले वाले भजन ''उधातु मिलै फुनि धातु कउ , सिफती सिफति समाइ....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए    👉 यहाँ दवाएँ.

बाबा नानक, सद्गुरु बाबा नानक देव जी महाराज
बाबा नानक

परमात्मा की अद्भुत आरती. Wonderful Aarti of God-

     प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज अपने निम्नलिखित वाणी के द्वारा प्रगट करते हैं कि परमात्मा की अद्भुत आरती कैसे होती है? अद्भुत आरती में थाल, दीपक, धूप, उधर, फूल इत्यादि सामग्री क्या है? परमात्मा कैसे देखता है? कैसे चलता है? कैसे गंध ग्रहण करते हैं? अंदर में ज्योति कैसे प्रकट होता है? अंतर-ज्योति के प्रकाश में आरती सर्वाधिक महत्वपूर्ण है? परमात्म-प्राप्ति की लगन चातक पक्षी की तरह होनी चाहिए. 



गुरु नानकदेवजी  महाराज की वाणी


( ५३ ) 


गगन मै थालु रबि चन्दु दीपक बने, 
तारिका मंडल जनक मोती ।           
धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे , 
सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१ ॥          
कैसी आरती होइ भवखंडना तेरी आरती । 
अनहता सबद बाजंत भेरी ॥१॥राउ ॥
सहस तव नैन नन नैन है तोहि कउ , 
सहस मूरति नना एक तोही ।           
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु , 
सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२ ॥          
सभ महि जोति जोति है सोइ । 
तिसकै चानणि सभ महि चानणु होइ ।          
गुर साखी जोति परगटु होइ । 
जो तिसु भावै सुआरती हो।           
हरि चरण कमल मकरन्द लोभित मनो, 
                               अनदिनो मोहि आही पिआसा ।          
कृपा जलु देहि नानक सारिंग कउ , 
होइ जाते तेरै नामि वासा ॥४ ॥      
    

     शब्दार्थ- गगन मै = गगनमय , आकाश का बना हुआ । तारिका मंडल = तारा - मंडल , तारागण । जनक = जान पड़ता है , मानो । मलआनलो = मलयानिल , चंदन के पहाड़ की वायु । चवरो = चँवर , डाँड़ी में लगा हुआ सुरा गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा , जो राजाओं या देवमूर्ति के सिर पर डुलाया जाता है । सगल = सकल , समस्त । बनराड़ = वनराजि , वृक्षों का समूह , जंगल । भवखंडना = संसार को अर्थात् जन्म - मरण के चक्र को मिटानेवाला । भेरी = नगाड़ा । सहस = हजार । नन = बिना । गंध = गंध को ग्रहण करनेवाली इन्द्रिय , नाक । इव = यह । चलत = चलती , प्रभाव , गति , चाल , लीला । मोही = मोहित करनेवाला । चानणि = चाँदनी , प्रकाश । साखी = साक्षी , गवाही , गवाह , उपदेश - वाक्य । मकरन्द = फूलों का रस । सारिंग = सारंग , चातक , पपीहा । कउ = को । जाते = जिससे । नामि = नाम में ।   ( अन्य शब्दों के शब्दार्थादि देखने के लिए देखें-- मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश+महर्षि मेँहीँ-शब्दकोश' ) 

     भावार्थ - आकाश - मंडल थाल है , चन्द्रमा और सूर्य उसमें दो दीपक हैं ; तारागण मानो उसमें जड़े हुए मोती हैं । चंदन वृक्षों के पहाड़ से आनेवाली वायु धूप है ; पवन चँवर डुलाता है ; और हे परम ज्योतिस्वरूप परमात्मा ! सभी जंगल तेरे प्रति अर्पित फूल हैं ॥१ ॥ हे भवखंडन ( जन्म - मरण के चक्र को नष्ट करनेवाले ) परमात्मा ! तेरी यह कैसी अद्भुत आरती हो रही है , जिसमें अनहद नाद का नगाड़ा बज रहा है ॥१ ॥ रहाउ ॥

      तुझे आँख नहीं है , फिर भी तू हजारों आँखों से सब कुछ और सर्वत्र देखता है । तेरा कोई विशेष रूप नहीं है , फिर भी दिखाई पड़नेवाले हजारों रूप तेरे ही हैं । तुझे चरण नहीं है , फिर भी तू हजारों पवित्र चरणों से चलता है।  तुझे नाक नहीं है , फिर भी तू हजारों नाकों से गंध ग्रहण करता है । मैं  तेरी अद्भुत लीला पर मोहित हो रहा हूँ ॥ २ ॥ 

     सबमें जो ज्योति ( गुण , धर्म या विशेषता ) है , वह तू ही है । तेरे ही प्रकाश से सब प्रकाशित हो रहे हैं ( तेरी ही विद्यमानता के कारण सब विद्यमान हो रहे हैं ) । गुरु के उपदेश - वाक्य का आचरण करने पर अंदर में ज्योति प्रकट होती है । जो आरती तुझे अच्छी लगती है , वैसी ही तेरी आरती होती है ॥३ ॥

     हे परमात्मा ! मेरा मन तेरे चरण कमल के रस का लोभी हो गया है , सदा उसे उस रस की प्यास लगी रहती है । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि हे परमात्मा ! मुझ चातक को अपने कृपा - जल की एक बूँद प्रदान कर , जिससे मैं तेरे नाम में बस सकूँ ॥४ ॥ ∆


इस भजन के बाद वाले भजन  ''चचचचछ...''   को अर्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-वचनावली सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  आरती, संपूर्ण आरती, आरती वीडियो, अद्भुत आरती, आरती गीत, आरती भजन, ईश्वर आरती, आरती सूची, अविश्वसनीय आरती गुरुवर्य नानकदेव इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। 


अगर आप 'संत-वचनावली सटी"' पुस्तक से महान संत सद्गुरु श्री नानक साहब जी महाराज के  अन्य पद्यों को अर्थ सहित जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो    👉  यहां दबाएं। 

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए.  👉 यहां दवाएं। 

---×---
नानक वाणी 53 || गगन मै थालु .. अर्थ सहित || परमात्मा की अद्भुत आरती.Wonderful Aarti of God नानक वाणी 53 || गगन मै थालु .. अर्थ सहित || परमात्मा की अद्भुत आरती.Wonderful Aarti of God Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/19/2022 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।

Blogger द्वारा संचालित.