सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 52
आत्मा और परमात्मा का दर्शन
प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज अपने निम्नलिखित वाणी के द्वारा प्रगट करते हैं कि परमात्मा कैसे मिलते हैं? परमात्मा का सच्चा रंग किस प्रकार भक्तों के ऊपर चढ़ता है? परमात्मा प्राप्ति के साधन क्या है ? परमात्मा बिना गुरु के प्राप्त नहीं होते हैं और सच्चा सतगुरु सत्संग करने से प्राप्त हो जाता है; इस प्रकार ईश्वर भक्ति के संबंध में यह पद्या बड़ा ही महत्वपूर्ण है.
गुरु नानकदेवजी महाराज की वाणी
( 52 )
शब्दार्थ-- फुनि = पुनि , फिर । कउ = को , में । सिफती = प्रशंसा करनेवाला , गुण गानेवाला , भक्त , जीवात्मा । सिफति = जिसका गुणगाया जाए , परमात्मा । गहबरा = गहरा । रेणु = धूल । धेणु = धेनु , कामधेनु । दरु = दर , द्वार , दरवाजा । आतमु राम = आत्मारूपी राम , आत्मा का राम , परमात्मा । बीचारि = विचार करो , चिन्तन करो , ध्यान करो । त्रिबिध करम = तीन प्रकार के कर्म - राजस , तामस और सात्त्विक अथवा मानसिक , वाचिक और कायिका। आस = आशा , इच्छा । अंदेसा = अंदेशा , संदेह , भय , दुःख । त्रिकुटी = तीन गुणों का मूलस्थान , जड़ात्मिका मूलप्रकृति । सहजि = सहज , परमात्मा । नदरि = नजर , दृष्टि। हउ = मैं । सद = सदा । ( अन्य शब्दों के शब्दार्थादि देखने के लिए देखें-- मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश+महर्षि मेँहीँ-शब्दकोश' )
भावार्थ - जिस प्रकार एक ही धातु के अनेक टुकड़े पिघलकर और एक - दूसरे में मिलकर पुनः एक ही हो जाते हैं , उसी प्रकार गुणगान करनेवाला भक्त गुणी परमात्मा में मिलकर एक ही हो जाता है , तब उस भक्त पर लाल गुलालरूपी परमात्मा का गहरा और सच्चा रंग चढ़ जाता है । संतोष या धैर्य धारण करनेवाले भक्त को सच्चा परमात्मा मिल जाता है । वह परमात्मा की भक्ति करके परमात्मा के साथ एकत्व प्राप्त कर लेता है ॥१ ॥
हे भाई ! यदि तुम्हें मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा है , तो संत जनों के चरणों की धूलि बन जाओ ( अत्यन्त नम्र होकर संत - चरणों के प्रेमी बन जाओ ) । संतों की सभा में जाने से अर्थात् संतों का सत्संग करने से सच्चे गुरु मिल जाते हैं , फिर गुरु की बतलायी युक्ति का अभ्यास करने पर सभी इच्छाओं को पूर्ण कर देनेवाली मुक्ति - रूपी कामधेनु भी प्राप्त हो जाती है ॥ १ ॥ रहाउ ॥
परमात्मा का सुहावना और श्रेष्ठ स्थान ( पद ) सबसे ऊपर है । उस प्रेमपात्र परमात्मा के महल का द्वार सच्चे कर्मों के करने पर प्राप्त होता है । गुरुमुख होकर मन को वशीभूत करो और परमात्मा का ध्यान करो ॥२ ॥
तामस , राजस और सात्त्विक- ये तीनों प्रकार के कर्म करते रहने पर इच्छाएँ बढ़ती हैं और दुःख उत्पन्न होते हैं । गुरु की कृपा के बिना तीनों गुणों के मूलस्थान ( जड़ात्मिका मूलप्रकृति ) के पार कोई कैसे जा सकता है अर्थात् नहीं जा सकता है । त्रिकुटी को पार करके परमात्मा से मिलने पर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है । निज घर ( परमात्म - पद ) की पहचान करो । उसको देखने से हृदय के सब विकार मिट जाएँगे ॥३ ॥
गुरु के मिले बिना हृदय के विकार दूर नहीं होते और बिना परमात्मा को पाये निज घर में वास कैसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता है । एक ही - एक शब्द ( सारशब्द ) का ध्यान करो और अन्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर दो । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि जिन सद्गुरु ने परमात्मा का साक्षात्कार किया है और दूसरों को भी साक्षात्कार कराते हैं , उनपर मैं नित निछावर हूँ ॥४ ॥ ∆
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