नानक वाणी 52 || धातु मिलै फुनि धातु कउ .. अर्थ सहित || परमात्मा का दर्शन. The vision of the divine.

सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 52

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज एवं अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संत-वचनावली सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी "उधातु मिलै फुनि धातु कउ , सिफती सिफति समाइ " का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी। जिसे   पूज्यपाद लालदास जी महाराज  ने लिखा है।

इस भजन के पहले वाले भजन ''कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआ ....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ.

ईश्वर की महिमा
सद्गुरु बाबा नानक

आत्मा और परमात्मा का दर्शन

      प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज अपने निम्नलिखित वाणी के द्वारा प्रगट करते हैं कि परमात्मा कैसे मिलते हैं? परमात्मा का सच्चा रंग किस प्रकार भक्तों के ऊपर चढ़ता है? परमात्मा प्राप्ति के साधन क्या है ? परमात्मा बिना गुरु के प्राप्त नहीं होते हैं और सच्चा सतगुरु सत्संग करने से प्राप्त हो जाता है; इस प्रकार ईश्वर भक्ति के संबंध में यह पद्या बड़ा ही महत्वपूर्ण है. 


गुरु नानकदेवजी  महाराज की वाणी

52 


धातु मिलै फुनि धातु कउ, सिफती सिफति समाइ । 
लालु।   गुलालु      गहबरा      सचा    रंग   चड़ाउ । 
सचु    मिलै      संतोषीआ    हरि  जपि   एकै भाइ ॥ १ ॥ 
भाई रे संत जना की रेणु । 
संत   सभा    गुरु  पाईऐ   मुकति    पदारथु  धेणु ॥१॥रहाउ॥ 
ऊचउ   थानु   सुहावणा   ऊपरि   महलु    मुरारि । 
सचु करणी  दे   पाईऐ    दरु   घरु महलु पिआरि । 
गुरमुखि   मनु   समझाईऐ   आतमु  रामु बीचारि ॥ २ ॥ 
त्रिबिध करम   कमाईअहि  आस।   अँदेसा  होइ । 
किउ गुर बिनु त्रिकुटी छुटसी सहजि मिलिऐ सुखु होइ । 
निज घरि महलु   पछाणीऐ   नदरि  करे मलु धोइ ॥ ३ ॥ 
बिनु  गुर  मैलु   न  उतरै। बिनु हरि किउ घर वासु । 
एको   सबदु    बीचारीऐ   अवर   तिआगै   आस । 
नानक देखि   दिखाईऐ   हउ  सद बलिहारै जासु ॥ ४ ॥ 

     शब्दार्थ--  फुनि = पुनि , फिर । कउ = को , में । सिफती = प्रशंसा करनेवाला , गुण गानेवाला , भक्त , जीवात्मा । सिफति = जिसका गुणगाया जाए , परमात्मा ।  गहबरा = गहरा । रेणु = धूल । धेणु = धेनु , कामधेनु । दरु = दर , द्वार , दरवाजा । आतमु राम = आत्मारूपी राम , आत्मा का राम , परमात्मा । बीचारि = विचार करो , चिन्तन करो , ध्यान करो । त्रिबिध करम = तीन प्रकार के कर्म - राजस , तामस और सात्त्विक अथवा मानसिक , वाचिक और कायिका। आस = आशा , इच्छा । अंदेसा = अंदेशा , संदेह , भय , दुःख । त्रिकुटी = तीन गुणों का मूलस्थान , जड़ात्मिका मूलप्रकृति । सहजि = सहज , परमात्मा । नदरि = नजर , दृष्टि। हउ = मैं । सद = सदा ।   ( अन्य शब्दों के शब्दार्थादि देखने के लिए देखें-- मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश+महर्षि मेँहीँ-शब्दकोश' ) 

     भावार्थ - जिस प्रकार एक ही धातु के अनेक टुकड़े पिघलकर और एक - दूसरे में मिलकर पुनः एक ही हो जाते हैं , उसी प्रकार गुणगान करनेवाला भक्त गुणी परमात्मा में मिलकर एक ही हो जाता है , तब उस भक्त पर लाल गुलालरूपी परमात्मा का गहरा और सच्चा रंग चढ़ जाता है । संतोष या धैर्य धारण करनेवाले भक्त को सच्चा परमात्मा मिल जाता है । वह परमात्मा की भक्ति करके परमात्मा के साथ एकत्व प्राप्त कर लेता है ॥१ ॥ 

     हे भाई ! यदि तुम्हें मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा है , तो संत जनों के चरणों की धूलि बन जाओ ( अत्यन्त नम्र होकर संत - चरणों के प्रेमी बन जाओ ) । संतों की सभा में जाने से अर्थात् संतों का सत्संग करने से सच्चे गुरु मिल जाते हैं , फिर गुरु की बतलायी युक्ति का अभ्यास करने पर सभी इच्छाओं को पूर्ण कर देनेवाली मुक्ति - रूपी कामधेनु भी प्राप्त हो जाती है ॥ १ ॥ रहाउ ॥

     परमात्मा का सुहावना और श्रेष्ठ स्थान ( पद ) सबसे ऊपर है । उस प्रेमपात्र परमात्मा के महल का द्वार सच्चे कर्मों के करने पर प्राप्त होता है । गुरुमुख होकर मन को वशीभूत करो और परमात्मा का ध्यान करो ॥२ ॥ 

     तामस , राजस और सात्त्विक- ये तीनों प्रकार के कर्म करते रहने पर इच्छाएँ बढ़ती हैं और दुःख उत्पन्न होते हैं । गुरु की कृपा के बिना तीनों गुणों के मूलस्थान ( जड़ात्मिका मूलप्रकृति ) के पार कोई कैसे जा सकता है अर्थात् नहीं जा सकता है । त्रिकुटी को पार करके परमात्मा से मिलने पर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है । निज घर ( परमात्म - पद ) की पहचान करो । उसको देखने से हृदय के सब विकार मिट जाएँगे ॥३ ॥

     गुरु के मिले बिना हृदय के विकार दूर नहीं होते और बिना परमात्मा को पाये निज घर में वास कैसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता है । एक ही - एक शब्द ( सारशब्द ) का ध्यान करो और अन्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर दो । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि जिन सद्गुरु ने परमात्मा का साक्षात्कार किया है और दूसरों को भी साक्षात्कार कराते हैं , उनपर मैं नित निछावर हूँ ॥४ ॥ ∆


इस भजन के बाद वाले भजन  ''गगन मै थालु रबि चन्दु दीपक बने , तारिका मंडल जनक मोती..''   को अर्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-वचनावली सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  दो आत्माओं का मिलन कैसे होता है? मन को परमात्मा में कैसे लगाएं? परम पिता परमात्मा कौन है? अपनी आत्मा के दर्शन कैसे हो? आत्मा और परमात्मा का दर्शन, आत्मा और परमात्मा का मिलन कब होता है, परमात्मा की प्राप्ति, परमात्मा का ध्यान कैसे करें, परमपिता परमात्मा इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। 


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नानक वाणी 52 || धातु मिलै फुनि धातु कउ .. अर्थ सहित || परमात्मा का दर्शन. The vision of the divine. नानक वाणी 52 || धातु मिलै फुनि धातु कउ .. अर्थ सहित || परमात्मा का दर्शन. The vision of the divine. Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/19/2022 Rating: 5

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