'सद्गुरु महर्षि मेंहीं, कबीर-नानक, सूर-तुलसी, शंकर-रामानंद, गो. तुलसीदास-रैदास, मीराबाई, धन्ना भगत, पलटू साहब, दरिया साहब,गरीब दास, सुंदर दास, मलुक दास,संत राधास्वामी, बाबा कीनाराम, समर्थ स्वामी रामदास, संत साह फकीर, गुरु तेग बहादुर,संत बखना, स्वामी हरिदास, स्वामी निर्भयानंद, सेवकदास, जगजीवन साहब,दादू दयाल, महायोगी गोरक्षनाथ इत्यादि संत-महात्माओं के द्वारा किया गया प्रवचन, पद्य, लेख इत्यादि द्वारा सत्संग, ध्यान, ईश्वर, सद्गुरु, सदाचार, आध्यात्मिक विचार इत्यादि बिषयों पर विस्तृत चर्चा का ब्लॉग'
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P02क पदावली भजन -सब संतन्ह की- अर्थ सहित || प्रातः+अपराह्न+ सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना के पद्य
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेँह पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इसी कृति के 02 रेपद्य- "सब संतन्ह की बड़ि बलिहारी।,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है। इस पदावली भजन कोप्रात:कालीन ईश-स्तुति के बाद तथा अपराहन् एवं सायं कालीन स्तुति के प्रारंभ में ही गाया जाता है।
प्रातःकालीन स्तुति के प्रथम पद और पदावली भजन का पहला पद्य "सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर....'' को अर्थ सहित पढने के लिए 👉 यहां दबाएं।
संत महात्माओं के साथ सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज
Stuti-vinati of santmat satsang, "सब संतन्ह की,...'' अर्थ सहित
प्रभु प्रेमियों ! इस संत स्तुति (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है- संतौं की महिमा, संतों की कथा, संत कथा, संत महात्मा की कथा, संत कौन है? कहा रहते हैं? क्या करते हैं? कैसे जीवन व्यतीत किए? इनकी वाणियां, रचना और निर्वाण कब हुआ? इन्होंने समाज का कैसे कल्याण किया? कल्याण का मूूल मंत्र, आदि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे जैसे कि सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज द्वारा किया गया संत स्तुति। Kuppa Ghat Bhagalpur, mehi bhajan,satguru bhajan, santmat bhajan, santmat sadguru bhajan,bhagalpurTop west God Bhajan,non stop Bhajan mp3,God Bhajan HD,Top west God Bhajan 2018,Top BHAJAN 2018,वायरल bhajan 2018,महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित, महर्षि मेँहीँ भजन अर्थ सहित, कुप्पाघाट भागलपुरbhajan,bhajans, सत्संग bhajanअर्थ सहित, अर्थ सहित भजन आदि। इन बातोंं को समझने केेेे लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़े.
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "सभी संतो की बड़ी महिमा अथवा जनकल्यायाण के लिए सभी संतों का बड़ा त्याग है। इस पद्य को हमलोग रोजानासुबह-शाम और दोपहर के सत्संग में संत-स्तुति के रूप में गाते हैं। Stuti-vinati of santmat satsang, "सब संतन्ह की,......" इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़े-
।। 2 ।।
।। प्रातःसायंकालीन सन्त - स्तुति ।।
सब सन्तन्ह की बड़ि बलिहारी ।
उनकी स्तुति केहि विधि कीजै , मोरी मति अति नीच अनाड़ी ॥ सब ०॥१ ॥
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ
दुख - भंजन भव - फंदन - गंजन , ज्ञान - ध्यान - निधि जग - उपकारी । विन्दु - ध्यान - विधि नाद - ध्यान - विधि , सरल - सरल जग में परचारी ॥ सब ०॥२ ॥
धनि ऋषि सन्तन्ह धन्य बुद्ध जी , शंकर रामानन्द धन्य अधारी । धन्य हैं साहब सन्त कबीर जी , धनि नानक गुरु महिमा भारी । सब ०॥३ ॥
गोस्वामी श्री तुलसि दास जी , तुलसी साहब अति उपकारी । दादू सुन्दर सूर श्वपच रवि , जगजीवन पलटू भयहारी ॥ सब ०॥४ ॥
सतगुरु देवी अरु जे भये हैं , होंगे सब चरणन शिर धारी । भजत है ' मेँहीँ ' धन्य - धन्य कहि , गही सन्त - पद आशा सारी ॥सब ०॥५ ॥
शब्दार्थ -
शब्दार्थकार- बाबालालदास
बलिहारी ( बलिहार + ई ) = बलि होने का भाव , बलिदान , कुर्बानी , त्याग , महिमा , उपकार । ( बलिहार = बलि होनेवाला , जनकल्याण के लिए कष्ट उठानेवाला , दूसरों की भलाई के लिए व्यक्तिगत सुखों तथा स्वार्थ का त्याग करनेवाला । ) स्तुति = गुणगान । मति = बुद्धि । नीच = मलिन , अपवित्र , बुरा , ओछा । अनाड़ी = अज्ञानी , विचारहीन , मंद , जो तीव्र न हो । दुःख भंजन = दैहिक , दैविक और भौतिक - इन त्रय तापों को दूर करनेवाला । ( भंजन = भंग करना , तोड़ना , नष्ट करना , तोड़नेवाला , नष्ट करनेवाला ) भव = संसार , होना , जन्म , जन्म - मरण । फंदन = फंद , फंदा , जाल , बंधन , दुःख । भव - फंदन = संसार के बंधन - काम , क्रोध आदि षड् विकार , जन्म - मरणरूप बंधन , जन्म - मरण का दुःख । गंजन = नाश ; यहाँ अर्थ है - नष्ट करनेवाला । ज्ञान - ध्यान - निधि = ज्ञान - ध्यान के भंडार , ज्ञान - ध्यान में पूर्ण । ( निधि = खजाना , भंडार , समुद्र , घर , आधार । ) परचारी = प्रचार किया , प्रचार करनेवाला । धनि = धन्य , धनी , जिसके पास धन हो , जिसमें कोई गुण या विशेषता हो , ऐश्वर्यवान् , महिमावान् , स्वामी । ( ' धनी ' एक आदर , श्रेष्ठता या विशेषता - सूचक शब्द है , जो महापुरुष के नाम के आगे जोड़ा जाता है ; जैसे - धनी धर्मदासजी । ) सरल - सरल = सरलतापूर्वक , उदारतापूर्वक । धन्य = प्रशंसनीय , गुणगान करनेयोग्य । अघारी = अघारि ( अघ + अरि ), पापों के शत्रु , पापों का नाश करनेवाला । ( अघ = पाप । अरि = शत्रु , नाश करनेवाला ) साहब ( अ ० ) = स्वामी । गोस्वामी = जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया हो । ( गो = इन्द्रिय , पृथ्वी , गाय आदि ) भय = डर , अहित होने की संभावना से उत्पन्न दु:ख । ( भय कई प्रकार के होते हैं ; जैसे - अपने मरने का भय , प्रिय व्यक्ति के मरने का भय , धन - नाश का भय , प्रतिष्ठा के चले जाने का भय , स्वास्थ्य - नाश का भय , मरने के बाद मनुष्य - योनि से भिन्न योनि में जाने का भय आदि । ) हारी = हरनेवाला , नष्ट करनेवाला । शिरधारी = शिर पर धारण करनेवाला , यहाँ अर्थ है- शिर पर धारण करनेयोग्य - आदर करनयोग्य , पूजनयोग्य , प्रणाम करनयोग्य । भजत है = भजता है , भक्तिभाव से प्रणाम करता है , स्मरण करता है , नाम लेता है , गुणगान करता है , शरण लेता है , पूजा - आराधना करता है । गही = गहकर , पकड़कर । पद = चरण । आसा सारी = सारी आशाओं के साथ , पूरी आशा और भरोसे के साथ , पूरे श्रद्धा - विश्वास के साथ , हृदय के समस्त भावों के साथ ।
सभी संतों की बड़ी महिमा है अथवा जन - कल्याण के लिए सभी संतों का बड़ा त्याग रहा है । उनका गुणगान कैसे किया जाय - यह मैं नहीं जानता हूँ क्योंकि मेरी बुद्धि अत्यन्त मलिन और जड़ है अथवा उनका गुणगान मैं किस प्रकार करूँ , मेरो बुद्धि तो अत्यन्त मलिन और जड़ ( मंद , धीमी , विचार - होन ) है ॥१ ॥ सभी सन्त दैहिक , दैविक और भौतिक - इन तीनों तरह के दुःखों को और जन्म - मरणरूप बंधनों को भी नष्ट करनेवाले हैं । ज्ञान - ध्यान में पूर्ण ये संत संसार के लोगों की भलाई करनेवाले और विन्दु - ध्यान तथा नाद - ध्यान की सरल और सच्ची विधियों का उदारतापूर्वक सब तरह के लोगों के बीच प्रचार करनेवाले हैं ।।२ ।। चाहे प्राचीन काल के ऋषि - मुनि हों अथवा बाद के सन्त - महात्मा - सभी बड़ी महिमावाले हैं । पापों के नाश करनेवाले भगवान् बुद्ध , श्रीमदाद्य शंकराचार्य और स्वामी रामानन्दजी सदा ही गुणगान करने के योग्य हैं । सन्त कबीर साहब और गुरु नानकदेवजी भी बड़े प्रशंसनीय हैं , जिनकी बहुत महिमा बतायी जाती है ॥३ ॥ गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी , संत तुलसी साहब ( हाथरसवाले ) , दादू दयालजी , सुन्दर दासजी , सूरदासजी , श्वपचजी , रविदासजी , जगजीवन साहब और पलटू साहब - ये सब संत भी बड़े उपकारी और सब प्रकार के भय को दूर करनेवाले हैं ॥४ ॥ सद्गुरु बाबा देवी साहब और अन्य संत भी जो हो गये हैं , विद्यमान हैं और आगे होनेवाले हैं , सबके चरण शिर पर धारण करने के योग्य हैं अर्थात् सभी आदरणीय - पूजनीय हैं । सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज कहते हैं कि मैं पूरी आशा और भरोसे के साथ ( पूरे श्रद्धा - विश्वास के साथ ) इन सभी सन्तों के चरणों की शरण होकर और उन्हें धन्य - धन्य कहते हुए भक्ति - भाव से उन्हें बारंबार प्रणाम करता हूँ।। ५ ।।
टिप्पणी -
भगवान बुद्ध
१ . सन्तमत में भगवान बुद्ध कलियुग के आदि - संत माने जाते हैं । इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । इनका जन्म ईस्वी सन् से ५५० वर्ष पूर्व वैशाख की पूर्णिमा को मायादेवी के गर्भ से नेपाल को तराई में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नामक स्थान में हुआ था । क्षत्रियवंशीय इनके पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे । सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की एक सुन्दर कन्या से हुआ था । वृद्ध , रोगी और मृतक को देखकर इन्हें वैराग्य हो गया । ये एक रात अपनी पत्नी और नवजात पुत्र राहुल को छोड़कर राजमहल से भाग निकले । घोर तपस्या के बाद इन्हें गया के एक पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई । इनका धर्म विदेशों में अधिक फैला । अस्सी वर्ष की आयु में इनका परिनिर्वाण कुशीनगर ( गोरखपुर ) में हुआ । इनका उपदेश था कि मनुष्य तृष्णा का त्याग करके दुःखों से छुटकारा पा सकता है । इनका प्रचारित धर्म ' बौद्ध धर्म ' कहलाया ।
आचार्य शंकर
२. अद्वैतवाद के प्रवर्तक आचार्य शंकर शैव थे । इनका जन्म विक्रमी संवत् ८४५ में केरल राज्य के कलादि नामक गाँव में हुआ था । इनकी माता विशिष्टा देवी और पिता शिवगुरु शिव के उपासक थे । कम ही उम्र में शंकराचार्य को अपनी मातृभाषा मलयालम और संस्कृत का भी ज्ञान हो गया था । आठ वर्ष की उम्र में इन्होंने चारो वेद पढ़ लिये । सोलह वर्ष की उम्र में पुस्तक भी लिखने लगे । कई उपनिषदों और गीता पर इनके भाष्य हैं । इनके गुरु का नाम आचार्य गोविन्द था । इन्होंने अपने समय में देश में चारों ओर फैले हुए जैन और बौद्ध मतों का खंडन करके अद्वैत मत स्थापित किया । माहिष्मती नगरी ( महिषी गाँव , जिला सहरसा , बिहार ) के मंडन मिश्र से हुआ इनका शास्त्रार्थ प्रसिद्ध है । इन्होंने देश में बहुत - से मठ बनवाये । ३२ वर्ष की अल्प आयु में इनका देहान्त केदारनाथ में हुआ ।
स्वामी रामानंद
३. स्वामी रामानन्द वैष्णव आचार्य थे । इन्होंने उत्तरी भारत में भक्ति - साधना का प्रचार किया । इनका जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुल में वि . सं . १३५६ में हुआ था ; जन्म - स्थान प्रयाग बताया जाता है । रामानुज की शिष्य - परम्परा के श्रीराघवानन्दजी इनके गुरु थे । स्वामी रामानन्द की शिक्षा काशी में हुई थी और प्रायः यहीं वे रहा भी करते थे । इन्होंने जिस मत का प्रचार किया , वह रामावत या रामानन्दी सम्प्रदाय कहलाया , जिसमें भक्ति - योग का सम्यक् समन्वय हुआ है । इनके मत के साधु ' वैरागी ' कहलाते हैं । इन्होंने हिन्दी और संस्कृत में रचना की है । जाति - व्यवस्था के ये पूरे विरोधी थे । संत कबीर , संत रैदास , संत पीपा आदि इनके शिष्य थे । इनका देहान्त १११ वर्ष की आयु में हुआ ।
संत कबीर
४. संत कबीर का जन्म काशी में विक्रम को १५ वौं शताब्दी में हुआ था । कहते हैं , ये एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पत्र हुए थे । लोक - निन्दा के भय से ब्राह्मणी ने इन्हें लहरतारा तालाब पर फेंक दिया था । नीरू नामक एक जुलाहे और उसकी पत्नी नीमा ने इनका पालन - पोषण किया । इनके गुरु स्वामी रामानन्दजी थे । कोई - कोई कहते हैं कि संत कबीर ने विवाह भी किया था ; पत्नी का नाम लोई , पुत्र का नामकमाल और पुत्री का नाम कमाली था । संत कबीर कपड़ा बुनकर जीविका चलाते थे । ये निरक्षर थे , इसलिए इनके बनाये पद्य इनके साक्षर शिष्य लिपिबद्ध किया करते थे । इनकी मुख्य पुस्तक ' बीजक ' है । इनकी भाषा को विद्वानों ने सधुक्कड़ी कहा है । लगभग १०० वर्ष की आयु में इनका देहान्त मगहर में वि ० संवत् १५७५ में हुआ ।
का जन्म वि ० सं ० १५२६ के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तलवंडी नामक गाँव में हुआ था । यह गाँव लाहौर नगर से दक्षिण - पश्चिम लगभग ३ मील की दूरी पर अवस्थित है और अब ' नानकाना ' कहलाता है । इनके पिता का नाम कालूचंद था , जो जाति के खत्री थे । माता का नाम तृप्ता था । चौदह वर्ष की उम्र में नानकदेवजी का विवाह हुआ था ; दो पुत्र भी थे - श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द । नानकदेवजी को पंजाबी , हिन्दी , संस्कृत और फारसी की जानकारी थी । इनसे ' सिख मत ' चला । इनकी परंपरा में नौ गुरु हुए । सभी गुरुओं ने ' नानक ' नाम से पद्य - रचना की । गुरु नानकदेवजी ने गुरु अंगदजो को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया । ' गुरु ग्रंथ साहब ' में इनकी रचनाएँ ' महला १ ' के अन्तर्गत संकलित हैं । ' जपुजी ' इनकी बड़ी प्रसिद्ध रचना है , जो ' गुरु ग्रन्थ साहब ' के आदि में है । वि ० संवत् १५९५ के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को इनका देहावसान करतारपुर में हुआ ।
६. गोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म सन् १५४० ई ० के आस - पास उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था । कुछ विद्वान् इनका जन्म - स्थान सोरों ( जिला एटा , उत्तर प्रदेश ) मानते हैं । इनका बचपन का नाम रामबोला था । ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था । भक्त नरहरिदासजी की देखरेख में गोस्वामीजी ने शिक्षा ग्रहण की थी । दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से इनका विवाह हुआ था । ये पत्नी के प्रति बहुत आसक्त रहा करते थे । इसी कारण पत्नी ने इन्हें कुछ दुर्वचन कहे , जिससे इन्हें वैराग्य हो गया । ये काशी में आकर रहने लगे । रामचरितमानस , विनय - पत्रिका , कवितावली , गीतावली , दोहावली , कृष्णगीतावली आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं । अवधी और व्रज भाषाओं में इन्होंने रचनाएँ की हैं । राम के प्रति इनकी भक्ति - भावना दास्य भाव की थी । इनका देहान्त १६२३ ई ० में वाराणसी में असी घाट पर हुआ ।
' साहबजी ' के भी नाम से जाने जाते थे । इनका आविर्भाव - काल विक्रमी संवत् १८१७ बताया जाता है । ये हाथरस ( जिला अलीगढ़ ) के किले की खाई में रहा करते थे । कुछ लोगों का कहना है कि ये दक्षिण भारत से हाथरस आये हुए थे । घटरामायण , रत्नसागर और शब्दावली इनकी रचनाएँ हैं । सद्गुरु महर्षि में ही . परमहंसजी महाराज ने घटरामायण के कुछ ही पद्यों को इनके द्वारा रचित माना है , अधिकांश पद्यों को उन्होंने क्षेपक माना है । संत तुलसी साहब ने कोई नया मत नहीं चलाया । ये सब संतों के मत को ही अपना मत मानते थे । इनका देहान्त विक्रम संवत् १ ९ ०० में हुआ । हाथरस में इनका समाधि- मन्दिर विद्यमान है । इनके शिष्यों ने इनके नाम पर ' साहिब - पंथ ' चलाया ।
संत दादू दयालजी
८. संत दादू दयालजी का जन्म वि ० संवत् १६०१ में गुजरात प्रान्त के अहमदाबाद नगर में हुआ था । ये जाति के धुनिया थे । इनका भी विवाह हुआ था ; पर सांसारिक बंधन में बंधे नहीं । बादशाह अकबर ने इनसे भेंट की थी । इनकी भी पद्य - रचना उपलब्ध है । इनका देहावसान राजस्थान प्रान्त के नराणा गाँव में वि ० संवत् १६६० में हुआ , जहाँ इनके अनुयायियों - द्वारा स्थापित ' दादू - द्वारा ' आज भी वर्तमान है ।
प्रभु प्रेमियों ! "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि जनकल्यायाण के लिए सभी संतों की बड़ी महिमा, बड़ा त्याग है।इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।
गुरु महाराज की शिष्यता-ग्रहण 14-01-1987 ई. और 2013 ई. से सत्संग ध्यान के प्रचार-प्रसार में विशेष रूचि रखते हुए "सतगुरु सत्संग मंदिर" मायागंज कालीघाट, भागलपुर-812003, (बिहार) भारत में निवास एवं मोक्ष पर्यंत ध्यानाभ्यास में सम्मिलित होते हुए "सत्संग ध्यान स्टोर" का संचालन और सत्संग ध्यान यूट्यूब चैनल, सत्संग ध्यान डॉट कॉम वेबसाइट से संतवाणी एवं अन्य गुरुवाणी का ऑनलाइन प्रचार प्रसार।
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