संत पलटू साहब की वाणी / 01
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से संत श्री संत पलटू साहब की वाणी "सुर नर मुनि जोगी यति, सबै काल बस होय..'' बोल वाले भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। जिसे सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है।
संतपलटू साहब की वाणी के पहले संत जगजीवनसाहब की वाणी संतवाणी सटीक में संग्रहीत है, उसे पढ़ने के लि 👉 यहां दबाएं।
सुर नर मुनि जोगी यति.. भजन भावार्थ सहित
प्रभु प्रेमियों ! संत पलटू साहब 'सुर नर मुनि जोगी यति' भजन के द्वारा बताते हैं कि चाहे देवता हो, मनुष्य हो, सन्यासी हो, गृहस्थ हो, जो भी हो, सबका एक दिन अंत हो जाता है। इतना ही नहीं, काल की भी मौत निश्चित है, मौत को जानने से बैराग होता है इसके साथ वे कहते हैं कि मौत कैसे आती है? मौत कब आएगी? जल्दी मौत कैसे आती है? आदमी मरते समय क्या सोचता है? काल का भी एक दिन अंत हो जाता है। सब की मौत निश्चित है। लेकिन परम प्रभु परमात्मा की मौत कभी नहीं होती । उन्हीं से सब उत्पन्न होते हैं, और उन्हीं में सब समा जाते हैं । इसलिए उस परम प्रभु परमात्मा को जानना चाहिए। उसकी भक्ति करनी चाहिए। उपरोक्त भाव का भजन यहां दिया गया है। उसे पढ़े-
संत पलटू साहब की वाणी
॥ मूल पद्म ॥
सुर नर मुनि जोगी यती सभै काल बसि होय ॥
सभै काल बसि होय मौत कालौं की होती ।
पार ब्रह्म भगवान मरै ना अविगत जोती ॥
जाको काल डेराय ओट ताही की लीजै ।
काल की कहा बसाय भक्ति जो गुरु की कीजै ॥
जरा मरन मिटि जाय सहज में औना जाना ।
जपि कै नाम अनाम संतजन तत्त्व समाना ॥
बैद धनंतर मरि गया पलटू अमर न कोय ।
सुर नर मुनि जोगी यती सभै काल बसि होय ॥
भावार्थ - देवता , मनुष्य , मुनि ( मननशील ) , योगी और यति ( संन्यासी ) ये सभी काल के वशीभूत होते हैं । इतना ही नहीं , ये सभी तो मृत्यु को प्राप्त होते ही हैं , साथ ही काल की भी मृत्यु होती है अर्थात् काल ( समय ) का भी अंत होता है । कहने का तात्पर्य यह कि काल की विकरालता या उनका प्रभुत्व देश के अन्दर ही होता है ; किन्तु जो देशकालातीत है , वह तो ' अति कराल कालहु कर काला ' है । ऋषि वाक्यानुसार- “ जिस नाम - रूपात्मक काल से सब कुछ ग्रसित है , उस काल को भी ग्रसनेवाला या पचा जानेवाला जो तत्त्व है , वही परब्रह्म है । " ( मै ०६ १५ ) । उस परमात्म - पद में काल का कोई चारा नहीं चलता । संत कबीर साहब के शब्दों में- “ उहाँ गम काल की नाहीं । ” और गो ० तुलसीदासजी ने कहा है- “ देस काल तहँ नाहीं । " उस पद तक पहुँचते - पहुँचते काल अपना अस्तित्व खो बैठता है अर्थात् उसकी विलीनता हो जाती है । इसको दूसरे शब्दों में ऐसा भी कहा जा सकता है कि जिसकी उत्पत्ति होती है , उसका विनाश भी अवश्यमेव होता है । इस दृष्टि से काल की उत्पत्ति के कारण उसका नाश भी कभी - न - कभी होगा ही । “ जो ऊगे सो अत्थवै , जामे सो मरि जाय । जो चुनिये सो ढहि पड़े , फूले सो कुम्हिलाय " - संत कबीर साहब । किन्तु परब्रह्म परमात्मा की , जिसका प्रकाश सर्वव्यापक है , मृत्यु नहीं होती । जिस प्रभु के भय स्वयं काल कम्पित वा भयभीत रहता है , उसका आश्रय ग्रहण कीजिये । उसपर काल का कुछ वश नहीं चलता , जो गुरु की भक्ति करनेवाले होते हैं । ( ऐसे भक्त जन की ) स्वाभाविक ही जन्म - मृत्यु और आवागमन छूट जाता है । संत जन नाम का जप करके ( साधना द्वारा ) अनाम तक पहुँचकर परमात्म - तत्त्व में समा गये । पलटू दासजी कहते हैं कि धन्वन्तरि जैसा वैद्य भी मर गया , कोई अमर नहीं है ; देव , मानव , मुनि , योगी और यति ; सभी काल के वश हैं । ∆
संत पलटू साहब के दूसरे भजन को अर्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि मौत के 2 विचार, मौत के लक्षण, मौत कैसे आती है? समय से पहले मौत हो जाना, मौत की देसी दवा, मौत कविता, मौत in हिन्दी, हम कब मरेंगे, मृत्यु के 2 स्वरूप, मनुष्य की मृत्यु क्यों होती है, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी सटीक |
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पलटू वाणी 01 सुर नर मुनि जोगी यति || भजन भावार्थ सहित || Everybody is sure to die
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/17/2020
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