संत पलटू साहब की वाणी / 02
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से संत पलटू साहब की वाणी "'भजन आतुरी कीजिए, और बात में देर।...'' भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। जिसे सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। इसमें बताया गया है कि भजन कीर्तन का महत्व सर्वाधिक क्यों है? सबसे पहले भजन क्यों करना चाहिए? करोड़ों काम छोड़कर भजन करने क्यों कहा गया है? पलटू साहब की नम्रता कैसी है? शरीर के 10 द्वार कौन-कौन है? दसों द्वार से कौन सा पक्षी निकलता है? आवागमन से क्यों छूटना चाहिए?
इस वाणी के पहले की पोस्ट में "सुर नर मुनि जोगी यति, ... " वाणी को अर्थ सहित पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं।
करोड़ों काम छोड़कर भजन करना Leave crores of work and sing praises
प्रभु प्रेमियों ! हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णन है 'कोटी त्यकत्वा हरि भजेत्' करोड़ों काम छोड़कर भजन करना चाहिए । संत पलटू साहब इन्हीं बातों को दृढ करते हुए कहते हैं। "भजन आतुरी कीजिए और बात में देंर।" मैं (संत पलटू साहब) सबों से हाथ जोड़कर, पैर पकड़कर बार-बार विनती करता हूं, कि भजन को पहले कीजिए और दूसरे कामों में विलंब कीजिए, देर कीजिए।क्योंकि मनुष्य कब मर जाएगा, इसका कोई पता नहीं है । अगर आप भजन करने में विलंब करते रहेंगे, तो फिर 84 लाख योनियों में जन्मने-मरने का चक्कर लगा रहेगा। पढिए-
संत पलटू साहब की वाणी
मूल पद्य
भजन आतुरी कीजिये और बात में देर ॥
और बात में देर जगत में जीवन थोरा ।
मानुष तन धन जात गोड़ धरि करौं निहोरा ॥
काँचे महल के बीच पवन इक पंछी रहता ।
दस दरवाजा खुला उड़न को नित उठि चहता ॥
भजि लीजै भगवान एही में भल है अपना ।
आवागौन छुटि जाय जनम की मिटै कलपना ॥
पलटू अटक न कीजिये चौरासी घर फेर ।
भजन आतुरी कीजिये और बात में देर ॥
अर्थ-- जगत् के अन्य कार्यों में विलम्ब करके परमात्म - भजन अविलम्ब कीजिए ॥ सांसारिक जीवन क्षणिक है , इसलिए अन्य बातों में देर कीजिए । मनुष्य शरीर रूप सम्पत्ति निरर्थक चली जा रही है , मैं पाँव पकड़कर प्रार्थना करता हूँ ( कि ' भजन आतुरी कीजिए ' ) ॥ इस ( शरीर रूप महल ) के दसो द्वार खुले हैं ( आँखों के दो छिद्र , कानों के दो छिद्र , नाक के दो छिद्र , मुँह का एक छिद्र , मल - मूत्र त्यागने के दो छिद्र और नाभि का एक छिद्र ; ये खुले दस द्वार हैं । ( गर्भस्थ शिशु की नाभि - नाल उसकी माता के गर्भाशय की दीवार से मिली होती है , जिससे शिशु भोजन पाता है और उसका शरीर पुष्ट होता है । इसलिए इसको भी एक द्वार माना गया है । ) अथवा आँखों के दो छिद्र , कानों के दो छिद्र , नाक के दो छिद्र , मल - मूत्र परित्याग के दो छिद्र और आज्ञाचक्र का अन्ध कार भाग ; ये दस खुले दरवाजे हैं । ) , जिस होकर जीवात्मा रूपी पक्षी उड़ जाने के लिए नित्य प्रति चाहता है । तात्पर्य यह कि इस शरीर से कब प्राण - चेतन निकल जाय , यह निश्चित नहीं । अपनी भलाई - अपना कल्याण इसमें है कि ईश्वर का भजन करें , जिससे आवागमन वा गमनागमन का चक्र छूटे और जन्म का क्लेश मिटे ॥ सन्त पलटू साहब कहते हैं कि परमात्म - भजन में विलम्ब नहीं कीजिए अन्यथा चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा । एतदर्थ अन्य कार्यों में देर करके ईश्वर भजन शीघ्रतापूर्वक कीजिए । व्याख्याकार- महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज∆
संत पलटू साहब के तीसरे भजन "पिया है प्रेम का प्याला..." को अर्थ सहित पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज संध्याकालीन सत्संग में भजन गाते और सुनते थे। उन्हीं का अर्थ किया हुआ यही भजन शांति-संदेश में निम्न चित्र में छपा है-
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि भजन को पहले कीजिए और दूसरे कामों में विलंब कीजिए, देर कीजिए । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी सटीक |
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पलटू वाणी 02 भजन आतुरी कीजिए || भजन भावार्थ सहित || करोड़ों काम छोड़कर भजन करना
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
9/10/2018
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