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P117 || अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..पदावली भजन अर्थ सहित God inside the human body

महर्षि मेँहीँ पदावली / भजन नंबर 117

     प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेँहीँ पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 117वां पद्य  "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,....''  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के  बारे में। जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज, पूज्यपाद श्रीधर दास जी महाराज और पूज्यपाद संतसेवी जी महाराज  नेे किया है।

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P117,  God inside the human body "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। परमात्मा मनुष्य शरीर के अंदर कहां है? इस पर चर्चा करते गुरुदेव।
परमात्मा मनुष्य शरीर के अंदर कहां है? इस पर चर्चा करते गुरुदेव

अंतर के अन्तिम तह में गुरु हैं... भावार्थ सहित

     इस Santmat meditations भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." में बताया गया है कि- मनुष्य शरीर के अंदर ही परमात्मा का वास है । योग की युक्ति द्वारा उनका दर्शन किया जा सकता है। इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नें भी विचारनीय हैं- परमात्मा मनुष्य शरीर के अंदर ही है,Atma In Our Body, मानव शरीर में परमात्मा, मानव शरीर में परमात्मा का निवास,मोक्ष का दरवाजा है मनुष्य शरीर,मनुष्य परमात्मा का अंश,आत्मा का परमात्मा से योग कैसे, आत्मा के अंदर बसते है परमात्मा, आत्मा और परमात्मा के बीच का अंतर,परमात्मा का अर्थ,आत्मा परमात्मा का रहस्य,आत्मा और परमात्मा का मिलन संयोग,जीव और आत्मा में क्या अंतर है, आत्मा और परमात्मा का मिलन कैसे होता है,परमात्मा कहा है,परमात्मा को परिभाषित करो,जीव और आत्मा में भेद,परमात्मा कौन है,आत्मा और परमात्मा का दर्शन,परमात्मा का नाम। इत्यादि बातें। इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। आइये उसे पढ़ें-

God inside the human body


(117) 

अंतर के अन्तिम तह में गुरु हैं, मन पता पाता नहीं। 
नैनों के तिल  में जोति  उनकी, नजर में आता नहीं॥१॥ 
अंग  संग  हर   वक्त रहता, प्रगट  हो  आता  नहीं। 
हो  रहे   हैरान   सागिल,  जल्द   दिखलाता   नहीं॥२॥
खोजते-फिरते  बहुत-से,  इस  जगत  में जा-ब-जा। 
अंतर के अंतिम तह के रह बिन, कोइ उसे पाता नहीं॥३॥
बिन  दया  सन्तन की 'मेँहीँ', जानना  इस  राह को । 
हुआ   नहीं    होता  नहीं  वो,   होनहारा   है   नहीं ॥४।। 

 

    शब्दार्थ--  तह (फारसी) तल, परत, दर्जा, लोक । गुरु = आदिज्ञानदाता परमात्या । पता = परिचय, खोज, खबर, जानकारी, ज्ञान। नैनों के तिल आँखों की पुतलियों के बीच के वे तिल की आकृति के काले भाग जिनसे होकर रोशनी (दृष्टि- शक्ति ) बाहर निकलती है। नजर (अरबी) = दृष्टि । अंग = शरीर । वक्त (अरबी) = समय । हर (फा० ) = प्रत्येक। हर वक्त = हमेशा । प्रगट हो = प्रकट या प्रत्यक्ष होकर, द्दश्यमान होकर । हैरान (अरबी) = चकित, परेशान, व्यग्र । सागिल (अरबी) = शागिल, उद्यम या कार्य करनेवाला, ध्यानी, अभ्यासी, संलग्न, मना करनेवाला । ( 'शागिल' 'शग्ल' से बना है। 'शग्ल' का अर्थ है- कार्य, उद्यम, मनबहलाव का काम, ईश्वर का ध्यान आदि ।) जल्द (फारसी) = शीघ्र । जा-ब-जा (फारसी) = जगह-जगह, जहां-तहां। (जा-जगह, स्थान । ब-साथ, से।) राह (फारसी ) = रास्ता, युक्ति, तरीका, उपाय । वो (फा०) = व, और । होनहारा = होनेवाला।  ( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए देंखेंः (महर्षि मेँहीँ शब्दकोश या मोक्ष दर्शन का शब्दकोष


     भावार्थ -शरीर के अंदर के अंतिम तल (शब्दातीत पद) में जिस आदिज्ञानदाता  परमात्मा का निवास है, मन उसका पता नहीं पाता । दोनों ऑँखों के दोनों तिलों में उस परमात्मा की ज्योति (ब्रह्मन्योति-अंतज्योति ) विराजती है; परंतू स्वयं वह देखने में नहीं आता है ॥१॥ 

     वह परमात्मा सदा हमारे शरीर के अंदर हमारे साथ रहता है, फिर भी वह कभी हमारे लिए प्रकट नहीं होता है । अभ्यासी उसे खोजते हुए परेशान हो जाता है, फिर भी वह शीघ्र दिखलायी नहीं पड़ता है ॥२॥ 

     बहुत-से लोग उस परमात्मा को बाहरी संसार में जहाँ- तहाँ खोजते फिरते हैं ; परन्तु वास्तविक बात तो यह है कि अंतर के अंतिम तल (शब्दातीत पद) में अवस्थित हुए बिना कोई उसे पा नहीं सकता ॥३॥ 

     सदगुरू महर्षि में ही परमहंसरजी महाराज कहते हैं कि संतों की दया के बिना अंतर के अंतिम तल में अवस्थित होने की युक्ति जान लेना न हुआ है, न होता है और न होनेवाला है ॥ ४॥ 

 

    टिप्पणी-१. शब्दातीत पद ही अंतर का ऑंतिम तल है, जिसके ऊपर उससे भिन्न दूसरा कुछ नहीं है । कैवल्य मंडल में जीवात्मा और परमात्मा के बीच द्वैत बना रहता है। कैवल्य मंडल को पार करके शब्दातीत पद में जाने पर जीवात्मा परमात्मा से एकता प्राप्त कर लेता है। 

२. संत दरिया साहब मारवाड़ी के आनुसार, मन की गति त्रिकुटी तक है; परन्तु परमात्म-पद त्रिकुटी से बहुत ऊपर है । इसीलिए मन परमात्मा का पता नहीं पाता । 

३. प्राणियों की आँखों में ज्योति होने का पता तब चलता है, जब रात्रिकाल में बिल्ली आदि पशुओं की आँखों पर टॉर्च आदि की रोशनी डाली जाती है। 

४, ११७वें पद्यर में गीतिका छन्द के चरण हैं। इस छन्द के प्रत्येक चरण में २६ मात्राएँ होती हैं; १४-१२ या ও-७-१२ पर यति और अन्त में लघु-गुरु।∆


बाबा लाल दास जी महाराज की पुस्तक में प्रकाशित उपरोक्त भजन, भावार्थ व टिप्पणी--



P117,  God inside the human body "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन नंबर 117 और शब्दार्थ।
पदावली भजन नंबर 117 और शब्दार्थ

P117,  God inside the human body "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन नंबर 117 का भावार्थ और टिप्पणी।
पदावली भजन नंबर 117 का भावार्थ टिप्पणी।


पूज्यपाद संतसेवी जी महाराज द्वारा लिखित टीका-

P117,  God inside the human body "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। ईश्वर कहां रहते हैं? भजन और भावार्थ।
ईश्वर कहां रहते हैं? भजन और भावार्थ


पूज्यपाद श्रीधरदास जी महाराज द्वारा किया गया टीका-



P117,  God inside the human body "अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। ईश्वर कहां रहते हैं? भजन और भावार्थ।
ईश्वर दर्शन कहां होगा? भजन और भावार्थ।

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     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 117 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि मनुष्य शरीर के अंदर ही परमात्मा का वास है । योग की युक्ति द्वारा उनका दर्शन किया जा सकता है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।





महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
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