नानक वाणी 14, Meditation feeling and benefits । काम क्रोध परहरु पर निन्दा । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं

गुरु नानक साहब की वाणी / 14

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी  ''काम क्रोध परहरु पर निन्दा,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद  सद्गुरु महर्षि  मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। उसी के बारे मेंं यहां जानकारी दी जाएगी।

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  में बताया गया है कि-नियमित ध्यान के फायदे, ध्यान क्रिया, ध्यान योग विधि, ध्यान लगाने की विधि, ध्यान करने की विधि, ध्यान का समय, ध्यान की विशेषताओं, ध्यान की अवधि, ध्यान के प्रकार, ध्यान क्रिया वीडियो, ध्यान के चमत्कारिक अनुभव, ध्यान क्या है? आदि  की जानकारी  के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- Meditation for Beginners, Art of Living, Benefits Of Meditation, मेडिटेशन(ध्यान) से जीवन में पाएं हर तरह की सफलता,  आदि बातों को जानने के पहले आइए ! भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।  

इस भजन के पहले वाले भजन ''अउहठि हसत मड़ी घरु छाइआ...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


Meditation feeling and benefits की चर्चा करते सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज।
Meditation feeling and benefits 

Meditation feeling and benefits

सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " काम , क्रोध और दूसरे की निन्दा करनी छोड़ दो । लोभ , लालच छोड़कर निश्चिन्त हो जाओ और भ्रम की जंजीर को तोड़कर ( भ्रम से ) न्यारे हो जाओ । हरि अपने अन्दर में हैं । ....  "   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी

 ॥ मूल पद्य ॥

काम क्रोध परहरु पर निन्दा , लबु लोभु तजि होहु निचिंदा ।। भ्रम का संगलु तोड़ि निराला , हरि अन्तरि हरि रस पाइआ।।१ ।। निसि दामिनी जिउ चमकि चंदाइणु देखे , अहिनिसि जोति निरंतरि पेखे ।। आनन्द रूपु अनूपु सरूपा , गुरि पूरै देखाइआ।।२ ।। सतिगुर मिलहु आपे प्रभु तारे , ससि धरि सूर दीपक गैणारे ।। देखि अदिसट रहहु लिव लागी , सभु त्रिभवणि ब्रह्म सबाइआ ॥३ ॥ अंभ्रित रस पाए त्रिसना भउ जाए , अनभउ पदु पावै आपु गवाए । ऊची पदवी ऊचो ऊचा , निरमल सबदु कमाइआ।।४ ।। अद्रिसटि अगोचरु नाम अपारा , अति रसु मीठा नामु पिआरा ।। नानक कउ जुगि - जुगि हरि जसु दीजै , हरि जपीऔ अन्तु न पाइआ ।५ ।। अन्तरि नामु परापति हीरा , हरि जपते मनु मन ते धीरा ॥ दुघट घट भउ भंजनु पाइ # , बाहुडि जनमि न जाइआ।।६ ।। भगति हेतु गुर सबदि तरंगा , हरि जसु नामु पदारथु मंगा ।। हरि भावै गुर मेलि मिलाए , हरि तारे जगतु सबाइआ ।७ ।। बिनि जपु जपिउ सतिगुर मति वाके , जम कंकर कालु मेवक पग ताके ।। ऊतम संगति गति मति ऊतम , जग भउजलु पारि तराइआ।।८ ।। इहु भवजलु जगतु सबदि गुर तरीअ , अन्तर की दुविधा अंतरि जरी । पंच वाण ले जम कर मार , गगनंतरि धणख चडाइआ।।९ ।। साकत नरि सबद सुरति किउ पाइौ , सबद सुरति बिनु आइ जाइ । नानक गुरमुख मुकति पराइणु , हरि पूरे ' भागि मिलाइआ।।१० ।। निरभउ सतिगुर है रखवाला , भगति परापति गुर गोपाला ।। धुनि अनन्दु अनाहदु बाजै , गुरि सबदि निरंजनु पाइआ।।११ ।। निरभउ सो सिरि नाहीं लेखा , आपि अलेखु कुदरति है देखा ।। आपि अतीतु अजोनी संभउ , नानक गुरमति सो पाइआ।।१२ ।। अन्तर की गति सतगुरु जाणे , सो निरभउ गुर सबदि पछाण ।। अन्तरु देखि निरन्तरि बुझे , अनत न मनु डोलाइआ।॥१३ ॥ निरभउ सो अभअन्तरि बसिया , अहिनिस नामि निरंजन रसिआ । नानक हरि जसु संगति पाइ , हरि सहजै सहजि मिलाइआ ॥१४ ॥ अन्तर बाहरि सो प्रभु जाणे , रहै अलिपतु चलते घरि आण ।। ऊपरि आदि सरब तिहु लोई , सचु नानक अंमित रसु पाइआ ॥ १५॥४॥२१ ॥

 शब्दार्थ - परहरु त्यागो । लबु - लालच । निचिंदा - निश्चिन्त । संगलु - जंजीर । निराला - न्याग । दामिनी - बिजली । चन्दाइणु - चाँदनी । निरंतरि - सर्वदा । पेखै देखै । गैणारे - सितारे , तारे । अदिसट देखने के परे । लिव - लौ । सबाइआ - समाया । भउ - डर । जाए - जाता रहा । अनभउ- आत्म - पद । धीरा - पिण्डी मन को निज मन से धीरज मिलता है । दुघट - दुर्घट । तरंगा - उमंग । कंकर किंकर । पंचवाण - पाँच ध्वनियाँ । गगनंतरि अन्तर गगन के भीतर । धणखु - धनुष । साकत - निगुग । पराइणु - प्रवृत्त , लगा हुआ । अतीतु - न्यारा । अजोनि संभउ - अज , अजन्मा । निरंतरि - लगातार , सघन । अभअन्तरि अन्तर्गत । अलिपतु निर्लेप । चलते - चंचल ( मन ) । लोई लोक ।

भावार्थ - 
सतगुरु बाबा नानक साहब की बाणी के टीकाकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज।
टीका-सद्गुरु महर्षि मेंहीं
 काम , क्रोध और दूसरे की निन्दा करनी छोड़ दो । लोभ , लालच छोड़कर निश्चिन्त हो जाओ और भ्रम की जंजीर को तोड़कर ( भ्रम से ) न्यारे हो जाओ । हरि अपने अन्दर में हैं , हरिरस ( व्रह्म ज्याति तथा ब्रह्मनाद पाने का सुख।) पाप्त करो ॥१ ॥ रात्रि ( अन्धकार ) , बिजली की - सी चमक और चांदनी देखे । दिन - रात सदा ज्योति ही ज्योति देखें , यह अनुपम आनन्द का स्वरूप पूरे गुरु ने दिखाया है ॥२ ॥ सद्गुरु से मिलो , प्रभु आप ही उद्धार करते हैं । चन्द्र ( झड़ा ) के घर में सूर्य ( पिंगला ) का मिलाप करो , दीपक ( ज्योति ) और तारे देखोगे । देखने से परे को देखकर ली लगाये रहो , त्रिभुवन में सर्वत्र ब्रह्म समाया हुआ है ॥३औ ॥ अमृत रस ( हरि - रस ) * पाकर जिनकी तृष्णा और डर जाते रहे , वे आत्मपद को पाते हैं और अहंकार को छोड़ देते हैं । उनकी पदवी ऊँची - से ऊंची होती है । पवित्र शब्द की कमाई करके यह दशा प्राप्त होती है।॥४ ॥ देखने की शक्ति के परे तथा इन्द्रियों के ज्ञान के परे ( अप्रत्यक्ष ) अपरम्पार प्रभु परमात्मा का नाम है । वह प्यारा नाम है , उसका रस बहुत मीठा है । गुरु नानक कहते हैं कि हरि - यश का गान युग - युग करते रहो । हरि का जप करते रहो , हरि का अन्त नहीं ॥५ ॥ अन्तर में हीरा ( बहुमूल्य ) -रूप नाम प्राप्त होता है । हरि के जप से मन ( पिण्डी मन ) मन ( ब्रह्माण्डी मन ) को पाकर धीर और स्थिर हो जाता है । कष्ट - साध्य , डर - विनाशक ( परमात्मा ) को घट में प्राप्त करके पुनः जन्म नहीं होता है ॥६ ॥ भक्ति का कारण ( अर्थात् जिसके द्वारा भक्ति होती है ) गुरु - शब्द की लहर है । हरि का यश और नाम - पदार्थ को माँगो । हरि को भावेगा , गुरु से मेल मिलायेंगे । हरि सारे जगत् को तारेंगे ॥७ ॥ जिन्होंने जप जपा है , उनकी बुद्धि सदगुरु के अनुकूल है । यम और काल उनके पग के गुलाम और सेवक हैं । उत्तम संग , चलन और बुद्धि संसार - सागर से तार देते हैं ॥८ ॥ इस संसार - सागर को गुरु के शब्द से तरते हैं । उनके अन्तर की दुविधाएँ अन्तर में भस्म हो जाती हैं । शरीर के अन्तराकाश के अन्दर धनुष चढ़ाकर अर्थात् इन्द्रियों की वृत्तियों को अन्तर्मुख खींचकर पंच ध्वनियाँ - रूप पंच शरों से यम ( मृत्यु ) को मारते हैं ॥९ ॥ निगुरा मनुष्य शब्द - सुरत की युक्ति कैसे पा सकता है ? ( अर्थात् नहीं पा सकता है ) । बिना सुरत - शब्द - योग के आवागमन में पड़ा रहता है । गुरु नानक कहते हैं - मुक्ति के साधन में लगा हुआ पूर्ण भाग्यवान गुरु - मुख शिष्य को हरि मिलते हैं ॥१० ॥ भय रहित सद्गुरु रक्षक होते हैं , भक्ति से परमात्म - गुरु प्राप्त होते हैं , आनंदरूप अनहद ध्वनि बजती है , गुरु - शब्द से मायातीत प्रभु प्राप्त होते हैं।॥११ ॥ उम भय - रहित सर्वश्रेष्ठ ( प्रभु ) की महिमाओं का हिसाब नहीं है । वह प्रभु स्वयं अपनी लेखा - रहित शक्तियों को देखता है । वह सबसे न्यारा और अजन्मा है । गुरु नानक कहते हैं- ' उस प्रभु को गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाले शिष्य पाते हैं ' ॥१२ ॥ अन्तर की चाल को सद्गुरु जानते हैं । वह भय - रहित गुरु परमात्मा के शब्द को पहचानते हैं और अन्तर में दर्शन करके सदा उसी की बूझ में लगे रहते हैं , दूसरी ओर मन को नहीं डुलाते हैं ॥१३ ॥ वह भयाभीत परमात्मा अभ्यन्तर में बसते हैं । गुरु नानक कहते हैं- ' मायातीत के नाम के रसिक दिन - रात हरि - यश के गाने के संग को अर्थात् सत्संग को प्राप्त करते हैं । ' उनको हरि सहज - सहज मिल जाते हैं ॥१४ ॥ भक्त अपने अन्दर और बाहर प्रभु को जानता है , संसार में अलिप्त रहता है , चंचल और बहिर्मुख मन को उसकी निज बैठक में लाता है । सृष्टि के ऊपरी भाग के आरम्भ सर्वत्र तीनों लोकों में वह सत्य ( प्रभु ) को पाकर अमृत - रस को प्राप्त करता है , यह गुरु नानक का कथन है ॥५॥४॥२१ ॥ ।। इति।।


इस भजन के बाद वाले भजन  ''दुविधा बउरी मनु बउराइआ,,....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


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नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक (पुस्तक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कृत)
संतवाणी-सटीक
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नानक वाणी 14, Meditation feeling and benefits । काम क्रोध परहरु पर निन्दा । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं नानक वाणी 14, Meditation feeling and benefits । काम क्रोध परहरु पर निन्दा । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/31/2020 Rating: 5

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