गुरु नानक साहब की वाणी / 15
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''दुविधा बउरी मनु बउराइआ,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। यहां उसी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि-गुरु आज्ञा का पालन करते हुए संसार में जीवन बिताना चाहये और उनके द्वारा प्रदान की गई युक्ति से अर्थात भजन करने की युक्ति या शब्द-ध्यान करने की युक्ति का अभ्यास करके इस संसार सागर को पार करना चाहिए। इसके बिना अर्थात बिना गुरु आज्ञा के पालन किए कोई भी संसार सागर से पार नहीं हो सकता, चाहे वह कोई भी हो। इत्यादि जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- Meaning Of GuruBhakti Yog,गुरु की कृपा और शिष्य का समर्पण, जीवन क्या है in Hindi, जीवन क्या है कोई न जाने, जन्म और जीवन क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या है,जीवन क्या है कविता, जीवन किसे कहते हैं, मानव जीवन क्या है, जीवन क्या है, जीवन क्या है मृत्यु क्या है, जीवन की परिभाषा, मेरा जीवन क्या है, जीवन क्या है एक शब्द में, आदि बातों को जानने के पहले आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " पगली संशयात्मिका बुद्धि ने मन को पगला बना दिया है । झूठे लालच में जन्म को गँवाया है । मन विषयों में लिपटा रहा और फिर बन्धन पाया अर्थात् फिर बन्धन में पड़ गया । ( उसको ) सद्गुरु नाम - भजन में दृढ़ करके रक्षा करते हैं ॥१ ॥ .... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
दुविधा बउरी मनु बउराइआ । झूठे लालचि जनमु गॅवाइआ ।। लपटि रहि फुनि बन्धनु पाइआ । सतिगुरि राखे नाम दिडाइआ ॥१ ॥ ना मनु मरै न माइआ मरे । जिनु कीछु किआ सोई जाणै । सबदु विचारि भउसागरु तरै॥१॥रहाउ ॥ माइआ संचि राजै अहंकारी । माइआ साथि न चलै पियारी ॥ माइआ ममता है बहुरंगी । बिनु नावै को साथि न संगी ॥२ ॥ जिउ मनु देखहि पर मनु तैसा । जैसी मनसा तैसी दसा ॥ जैसा करमु तैसी लिव लावै । सतिगुरु पूछि सहज घरु पावै ॥३ ॥ रागि नादि मनु दूजै भाइ । अन्तरि कपटु महा दुखु पाइ ।। सतिगुरु भेटै सोझी पाइ । सचै नामि रहै लिव लाइ ॥४ ॥ सचै सबदि सचु कमावै । सची वाणी हरिगुण गावै ।। निज घरि वासु अमर पदु पावै । ता दरि साचै सोभा पावै ॥५ ॥ गुर सेवा बिन भगति न होई । अनेक जतनु करै जो कोई ।। हउमै मेरा सबदै खोई । निरमल नाम वसै मनि सोई ॥६ ॥ इसु जग महि सबदु करणी है सारु । बिनु सबदै होर मोह गुवारु । सबर्दै नाम रखै उरि धार । सबदे गति मति मोख दुआर ।।७।। अवर नाहीं करि देखणहारो । साचा आपि अनूपु अपारो ।। राम नाम ऊतम गति होई । नानक खोजि लहै जनि कोई ॥८ ॥
शब्दार्थ - फुनि - पुनि , फिर । बन्धनु - बन्धन । राखे रक्षा किये । चि - संग्रह कर । राजै - शोभित होते । नावै नाम । को कोई । दसा हालत । करम कर्म । रागि - प्रेम , अनुराग । नादि - शब्द । दूजे दूसरा भाव । भाइ हे भाई । सोझी - सूझा दरि - दरवाजा । ' हउमै मेरा सबदै खोई । निरमल नाम वसै मनि सोई - शब्द - अभ्यास करके जो अहंकार को गँवा देता है , उसी के मन में पवित्र नाम बसता है । होर और । अनूप - उपमा - रहित ।
भावार्थ -
टीकाकार-सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
पगली संशयात्मिका बुद्धि ने मन को पगला बना दिया है । झूठे लालच में जन्म को गँवाया है । मन विषयों में लिपटा रहा और फिर बन्धन पाया अर्थात् फिर बन्धन में पड़ गया । ( उसको ) सद्गुरु नाम - भजन में दृढ़ करके रक्षा करते हैं ॥१ ॥ न मन मरता है, न माया मरती है, (*मन और माया के वशीभूत नहीं रहना , बल्कि उनको अपने वश में रखना ; इसी को माया और मन को मारना कहते हैं । जिसका मन और माया इस भाँति है , उसका मन और माया मृतक है ।) जिसने इसके लिए कुछ किया है , वही जानता है कि शब्द का विचार करके लोग संसार - सागर को तर जाते हैं ॥१ ॥ अहंकारी पुरुष माया बटोरकर शोभित होते हैं । परन्तु यह प्यारी माया उनके संग नहीं चलती है । माया - ममता तरह - तरह की होती है , बिना ( प्रभु ) नाम के कोई संगी - साथी नहीं है ॥२ ॥ लोग अपना मन जैसा देखते हैं , दूसरे के मन को भी वैसा ही समझते हैं । जैसी इच्छा होती है , वैसी ही दशा होती है । कर्म के अनुकूल लौ लगती है , सद्गुरु से जिज्ञासा करके सहज घर - आत्म - घर प्राप्त करते हैं ॥३ ॥ हे भाई ! गान - विद्या के अनुरागी द्वैत बुद्धि में रहते हैं , अपने भीतर में महादुःखदायी कपट रखते हैं । सद्गुरु से मिलकर सूझ या ज्ञान प्राप्त करते हैं और सत्यनाम में लौ लगाये रहते हैं ॥४ ॥ सत्शब्द की सच्ची कमाई करे अर्थात् आडम्बरहीन होकर नादानुसन्धान या सुरत - शब्द - योग का अभ्यास अत्यन्त प्रेमपूर्वक करे । हरिगुण - गान के सत्शब्दों का गान करे , तो आत्मपद में बासा , अमरत्व की प्राप्ति और परमात्म - पद में असली शोभा प्राप्त करें ।। ५ ।। चाहे कोई अनेक यल करे , परन्तु गुरु - सेवा के बिना भक्ति नहीं होगी । नादानुसन्धान करके जो अहंकार को गँवा देता है , उसी के हृदय में पवित्र नाम बमता है ।।६ । इस संसार में शब्द - अभ्यास करने का कर्म ही सार है । बिना शब्द - साधन के दूसरे मव कर्म मोह और अन्धकार हैं । शब्द ही नाम है , अपने हृदय में उसे धारण कर रख । शब्द ही गति , बुद्धि और मोक्ष का द्वार है । ( अर्थात् शब्द - अभ्यास करने से गति होती है , ज्ञान प्राप्त होता है और मोक्ष प्राप्त होता है ) ॥७ ॥ अद्वैत दृष्टि से देखनेवाले अथवा समता की दृष्टि से देखनेवाले अनुपम और अपार स्वयं प्रभु परमात्मा हैं । रामनाम से उत्तम गति होती है । गुरु नानक कहते हैं कि ( उस नाम को ) बिरले जन खोज कर पाते ॥८ ॥ इति।।
इस भजन के बाद वाले भजन ''सागर महि बूंद बूंद महि सागरु ,,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि गुरु आज्ञा का पालन करते हुए संसार में जीवन बिताना चाहये और उनके द्वारा प्रदान की गई युक्ति से अर्थात भजन करने की युक्ति या शब्द-ध्यान करने की युक्ति का अभ्यास करके इस संसार सागर को पार करना चाहिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 15, Gurubhakti aur Jeevouddhaar । दुविधा बउरी मनु बउराइआ । भजन अर्थसहित -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/01/2020
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