संत सूरदास की वाणी / 17
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "शांति-संदेश" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "झूठेही लगि जनम गँवायौ,...' का भावार्थ को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै । ,..." में बताया गया है कि- मनुष्य इस संसार में पैदा होता है और मरकर मिट्टी में मिल जाता है। मनुष्य जन्म निरर्थक नहीं होता, अगर ईश्वर भक्ति करते तो, कुछ सार्थकता भी होती। लेकिन अन्य मनुष्यों के सम्बन्ध मे यह बात बिलकुल अलग है। मनुष्य का जन्म क्यों होता है? इसका उत्तर अपने-अपने विवेक बुद्धि से लोग लगाते हैं। मनुष्य जन्म की सार्थकता कुछ अच्छा करने के लिए है। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- मनुष्य-जन्म की सार्थकता, सार्थकता की परिभाषा, सार्थक जीवन क्या है, मनुष्य जन्म क्यों मिला है, मनुष्य जन्म कब मिलता है, जीवन की सार्थकता, पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म क्यों हुआ, जीवन को परिभाषित करो, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "सबसों ऊँची प्रेम सगाई," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि " ( संसार के ) झूठे ही सुखों के लिए मैंने जन्म खो दिया । स्वप्न के समान ( संसार के ) सुखों में था क्या ; पर इन्हीं में भूल गया और श्रीहरि से अनुराग नहीं किया । ..." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी
।। मूल पद्य ।।
झूठेही लगि जनम गँवायौ ।
भूल्यौ कहा स्वप्न के सुख मैं , हरि सौं चित न लगायौ ।। कबहुँक बैठ्यौ रहसि - रहसि के , ढोटा गोद खिलायौ ।
कबहुँक फूलि सभा मैं बैठ्यौ , मूंछनि ताव दिखायौ ।।
टेढ़ी चाल , पाग सिर टेढ़ी , टेढ़े - टेढ़ धायौ ।
सूरदास प्रभु क्यौं नहिं चेतत , जब लगि काल न आयौ ॥
भावार्थ- ( संसार के ) झूठे ही सुखों के लिए मैंने जन्म खो दिया । स्वप्न के समान ( संसार के ) सुखों में था क्या ; पर इन्हीं में भूल गया और श्रीहरि से अनुराग नहीं किया । कभी मौज में बैठकर बड़े चाव से पुत्र को गोद में लेकर खेलाता रहा और कभी अहंकारपूर्वक सभा में बैठकर मूंछों पर ताव देता रहा । सिर पर टेढ़ी पगड़ी लगाकर टेढी ( गर्व - भरी ) गति से टेढ़े रास्ते ( कुमार्ग पर ) दौड़ता रहा । सूरदासजी कहते हैं - जबतक मृत्यु का समय नहीं आया , ( उससे पूर्व ही ) चेतकर प्रभु का भजन क्यों नहीं कर लेता। इति।।
इस भजन के पहले वाले पद्य "अविगत गति कछु कहत न आवै," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि मनुष्य इस संसार में पैदा होता है और मरकर मिट्टी में मिल जाता है। मनुष्य जन्म निरर्थक नहीं होता, अगर ईश्वर भक्ति करते तो, कुछ सार्थकता भी होती। लेकिन अन्य मनुष्यों के सम्बन्ध मे यह बात बिलकुल अलग है। मनुष्य का जन्म क्यों होता है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 17, Significance of human birth । झूठेही लगि जनम गँवायौ । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/03/2020
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