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सूरदास 16, What does god want from us । सबसों ऊँची प्रेम सगाई । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं

संत सूरदास की वाणी  /  16

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त  सूरदास जी महाराज  की वाणी "सबसों ऊँची प्रेम सगाई,...'  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे। 

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै । ,..." में बताया गया है कि-   " क्या रिश्ता है इंसान का ईश्वर से? हम उसे कैसे पा सकते हैं? परन्तु यह एक विचारणीय प्रश्न है। ज़िंदगी का मकसद क्या है? ईश्‍वर से प्रार्थना करें, तो हमें क्या फायदे हो सकते हैं?  मनुष्य धर्म के द्वारा क्या पा सकता है?  इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि-  क्या ईश्वर सत्य है, ईश्वर एक है, ईश्वर का स्वरूप, सबसे बड़ा ईश्वर कौन है, वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है, वेदों में ईश्वर का स्वरूप, क्या ईश्वर का अस्तित्व है, भगवान और परमात्मा में अंतर, ईश्वर इन इंग्लिश, Ishwar, ईश्वर अजन्मा है, ईश्वर की सत्ता,, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें। 

इस भजन के पहले वाले पद्य  "मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै" को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  यहां दबाएं।

सबसों ऊँची प्रेम सगाई भजन गाते हुए भक्त सूरदास जी महाराज और टीकाकार
सबसों ऊँची प्रेम सगाई भजन गाते हुए भक्त सूरदास

What does god want from us

भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि " संसार में भगवान् के प्रति प्रेम का संबंध होना बहुत महत्त्वपूर्ण बात है । कौरवों और पाण्डवों के बीच राज्य को लेकर झगड़ा न  हो , इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर गये । वहाँ दुर्योधन ने भगवान् को खिलाने के लिए बड़ा रुचिकर भोजन बनाया था ; परन्तु भगवान् ने उसके यहाँ भोजन नहीं किया ; क्योंकि दुर्योधन को उनसे हार्दिक प्रेम नहीं था । उन्होंने विदुर के घर जाकर उनका रूखा - सूखा भोजन ग्रहण किया ॥१।।..."   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी

 ।। मूल पद्य ।।

 सबसों ऊँची प्रेम सगाई ।
 दुर्योधन के मेवा त्यागे , साग विदुर घर खाई ॥१ ॥
 जूठे फल सबरी के खाये , बहु विधि स्वाद बताई ।
 प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं , आप बने हरि नाई ॥२ ॥
 राजसु जग्य युधिष्ठिर कीन्हों , तामें जूंठ उठाई ।
 प्रेम के बस पारथ रथ हाँक्यो , भूलि गये ठकुराई ॥३ ॥
 ऐसी प्रीति बढ़ी बृंदावन , गोपिन नाच नचाई ।
 सूर कूर इहि लायक नाही , कहँ लगि करौं बड़ाई ॥४ ॥

 शब्दार्थ - सबसे ऊँची = सबसे बड़ी , सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण । सगाई संबंध । मेवा = खानेयोग्य सूखा फल , अच्छा भोजन । साग = शाक , रूखा - सूखा भोजन । विदुर = धृतराष्ट्र और पाण्डु का भाई । दुर्योधन = धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र । राजसु = राजसूय , एक प्रकार का विशेष यज्ञ जिसे राजा सम्राट् - पद की प्राप्ति करने के लिए करते हैं । युधिष्ठिर = पाण्डु का सबसे बड़ा पुत्र । चूँठ = जूठन , जूठी पत्तलें । पारथ = पार्थ , पृथा का पुत्र , अर्जुन । ठकुराई = मालिकपना , स्वामित्व , भगवान् होने का भाव । बृन्दावन = वृन्दावन , मथुरा के पास स्थित एक तीर्थस्थान जो भगवान् श्रीकृष्ण का लीला - स्थान रहा है । कूर = क्रूर , दुष्ट , पापी , अधम , नीच । लायक ( अ ० ) = योग्य । बड़ाई - प्रशंसा , बड़प्पन ।

 भावार्थ- संसार में भगवान् के प्रति प्रेम का संबंध होना बहुत महत्त्वपूर्ण बात है । कौरवों और पाण्डवों के बीच राज्य को लेकर झगड़ा न हो , इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण दुर्योधन को समझाने के लिए हस्तिनापुर गये । वहाँ दुर्योधन ने भगवान् को खिलाने के लिए बड़ा रुचिकर भोजन बनाया था ; परन्तु भगवान् ने उसके यहाँ भोजन नहीं किया ; क्योंकि दुर्योधन को उनसे हार्दिक प्रेम नहीं था । उन्होंने विदुर के घर जाकर उनका रूखा - सूखा भोजन ग्रहण किया ॥१ ॥ चौदह वर्षों के वनवास - काल में श्रीराम छोटे भाई लक्ष्मणजी के साथ शबरी के आश्रम में उसके प्रेमवश गये और वहाँ उन्होंने शबरी के द्वारा दिये गये जूठे बेर प्रेमपूर्वक तथा उन बेरों के स्वाद की बारंबार प्रशंसा करते हुए खाये । भगवान् ने प्रेम के वश होकर बघेलखंड के बांधवनगर के राजा वीर सिंह के नौकर भक्त सेन नाई का रूप धारण किया और जाकर राजा की सेवा की ॥२ ॥ युधिष्ठिरजी ने राजसूय यज्ञ किया था , उसमें भगवान् श्रीकृष्ण ने भोजन करनेवालों की जूठी पत्तले उठाने का काम किया था । प्रेम के वशीभूत होकर ही भगवान् ने महाभारत - युद्ध में अपने भगवान् होने का भाव भूलकर अर्जुन का रथ हाँकने के लिए सारथि का काम किया।॥३ ॥ वृन्दावन में गोपियों के हृदय में भगवान् के प्रति ऐसा सच्चा प्रेम उमड़ा कि उस सच्चे प्रेम के वश होकर भगवान् गोपियों के हाथों की कठपुतली बन गये । संत सूरदासजी कहते हैं कि सच्चे प्रेम की महिमा का वर्णन कहाँ तक करूँ ! मैं बड़ा नीच हूँ , मैं अभी तक प्रेम की दृष्टि से ऐसा योग्य नहीं बन पाया हूँ कि भगवान् आकर मुझे दर्शन दें ॥४ ॥

 टिप्पणी- ५-६ सौ साल पहले की बात है । बघेलखंड के बांधवनगर के राजा वीर सिंह का एक नौकर था - सेन । सेन जाति का नाई था और हृदय से भक्त । वह राजा के बाल बनाया करता था और उनके शरीर में तेल लगाकर उन्हें स्नान कराया करता था । एक दिन वह साधु - संतों की सेवा में इतना तन्मय हो गया कि राजदरबार समय पर जाना भूल गया । उस समय भगवान् भक्त सेन नाई का रूप धारण करके दरबार गये और राजा की सेवा की । इति।

इस भजन के पहले वाले पद्य  "झूठेही लगि जनम गँवायौ," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि क्या रिश्ता है इंसान का ईश्वर से? हम उसे कैसे पा सकते हैं? परन्तु यह एक विचारणीय प्रश्न है। ज़िंदगी का मकसद क्या है? ईश्‍वर से प्रार्थना करें, तो हमें क्या फायदे हो सकते हैं?  मनुष्य धर्म के द्वारा क्या पा सकता है?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 16, What does god want from us । सबसों ऊँची प्रेम सगाई । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं सूरदास 16,  What does god want from us । सबसों ऊँची प्रेम सगाई । भजन भावार्थ सहित ।  -महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/03/2020 Rating: 5

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