संत सूरदास की वाणी / 22
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संतवाणी-सुधा सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "अबके माधव मोहि उघारि,...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- सांसारिक दुखों से व्यथित व्यक्ति को सुख पाने के क्या-क्या उपाय हो सकते हैं? व्यक्ति किन कारणों से दूखित होता है?उसका निवारण का प्रमाणिक उपाय क्या है? इस विषय को अच्छी तरह समझाया गया है। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- सांसारिक दुख से उद्धार, सूरदास और कृष्ण, सांसारिक दुख meaning,सांसारिक meaning in हिन्दी,संसारिक अर्थ, duh, dukhee vichaaron, duhkh dukh arth, dukhad arth, dukhee, duhkhad du kh maianing,दु:ख क्यों, मनुष्य दु:खी क्यों है, दुःख से मुक्ति, दुःख से मत घबराना पंछी, दुखी शायरी, दुःख से छुटकारा, दुःख,सुख कहां है, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "अपुनपौ आपुन ही में पायो," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
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सांसारिक दुख से छूटने का उपाय |
Worldly sorrow and salvation
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि " प्राणी चिर काल से दु:ख सहन कर रहा है। चार आर्य-सत्यों में दु:ख, दु:ख समुदाय, दु:ख निरोध, (निर्वाण) तथा दु:ख निरोध-मार्ग अथवा निर्वाण- मार्ग क्या है? कष्ट और दुख भोगना पड़ता है। स्थाई सुख तब मिलता है, जब हम अपने जीवन में ही इस जन्ममरण के बंधन से छूटकरा पा लें । संसार में कभी दु:ख न होगा यह जान लेने के बाद ।...'हे माधव ! इस बार मेरा उद्धार कर दीजिए । ..... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी
॥ स्कन्ध ४ , राग बिलावल ॥
।। मूल पद्य ।।
अबके माधव मोहि उघारि ।
मगन हौं भव - अंबुनिधि में , कृपा सिंघु मुरारि ॥
नीर अति गंभीर माया , लोभ लहरि तरंग ।
लिये जात अगाध जल में , गहे ग्राह अनंग ॥
मीन इन्द्रिय अतिहि काटत , मोह अघ सिर भार ।
पग न इत उत धरन पावत , उरझि मोह सेंवार ।।
काम क्रोध समेत तृष्णा , पवन अति झकझोर ।
नाहिं चितवन देत तिय सुत , नाक नौका ओर ॥
थक्यो बीच बेहाल विहवल , सुनहु करुणा मूल ।
स्याम भुज गहि काढ़ि डारहु , ' सूर ' ब्रज के कूल।।
शब्दार्थ - माधव ( माधव ) लक्ष्मीपति , विष्णु । ( राम और कृष्ण विष्णु के अवतार थे । इसीलिए इन दोनों को भी माधव हैं । ) उधारि - उद्धार करो । मगन हौं - डूबा हुआ हूँ । भव - संसार । अंबुनिधि - जलनिधि , समुद्र । मुरारि - मुर के शत्रु , मुर नामक राक्षस को मारनेवाले , श्रीकृष्ण । नीर - जल । गंभीर - अथाह । तरंग - लहर । गहे - पकड़ता है । ग्राह - घड़ियाल , मगर । अनंग - कामदेव । मीन - मछली । मोह - अज्ञानता । अघ - पाप । भार - बोझ । पग - पैर । इत उत - इधर - उधर । उरझि = उलझकर । सेंवार - शैवाल , पानी में होनेवाली एक घास । काम इच्छा । तृष्णा - प्यास , लालसा , सांसारिक सुखोपभोग की इच्छा । चितवन देत - ताकने देता है , दृष्टि डालने देता है । तिय - पत्नी । नाक - स्वर्ग , आकाश , अंतराकाश । बेहाल - व्याकुल । विहवल - विह्वल , अशांत , घबड़ाया हुआ । करुणा मूल - दया की जड़ या खानि । काढ़ि - निकालकर । ब्रज - व्रज , मथुरा और वृंदावन के पास एक स्थान जो श्रीकृष्ण की लीलाभूमि है । कूल - किनारा ।
भावार्थ - हे माधव ! इस बार मेरा उद्धार कर दीजिए । हे कृपा के समुद्र मुरारि ! मैं संसार - समुद्र में पड़ा हुआ हूँ ।। अत्यन्त अथाह मायारूपी जलवाले इस संसार - समुद्र की लहर लोभ है । कामदेव - रूपी घड़ियाल पकड़कर मुझे अथाह जल में लिये जा रहा है । इन्द्रिय - रूपी मछलियाँ बहुत काटती हैं ; सिर पर अज्ञानता और पाप कर्मों का भारी बोझ है । संबंधियों और धन - दौलत की आसक्ति - रूपी सेंवार में उलझकर मैं इधर - उधर पैर नहीं रख पाता हूँ ( कोई अच्छा व्यवहार नहीं कर पाता हूँ ) । काम ( इच्छा ) , क्रोध और तृष्णारूपी हवा बहुत झकझोरती है - तनिक भी स्थिर नहीं रहने देती है । पत्नी , पुत्र आदि प्रिय संबंधियों का आकर्षण अंतराकाशरूपी नौका की ओर ध्यान नहीं देने देता ।। हे दया की खानि श्रीकृष्ण ! सुनिये , मैं संसार - समुद्र के बीच व्याकुल होकर लाचार हो गया हूँ । अब मेरी बहिँ पकड़कर अपनी लीलाभूमि व्रज ( वैकुंठ धाम ) के किनारे लगा लीजिए । इति।।
इस भजन के पहले वाले पद्य "जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि सांसारिक दुखों से व्यथित व्यक्ति को सुख पाने के क्या-क्या उपाय हो सकते हैं? व्यक्ति किन कारणों से दूखित होता है?उसका निवारण का प्रमाणिक उपाय क्या है? इस विषय को अच्छी तरह समझाया गया है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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