संत सूरदास की वाणी / 23
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संतवाणी-सुधा सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं,...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- इस नश्वर संसार में कुछ नहीं रखा, किसको कब कौन सा दिन देखना पड़े कुछ भी निश्चित नहीं है। अहंकार मनुष्य के पतन का कारण होता है। धन दौलत, काया, सुंदरता के लिए इंसान को अहंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि ईश्वर का धरोहर समझ कर उसका सदुपयोग करना चाहिए। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- अहंकार सुविचार, अहंकारी व्यक्ति, अहंकार पर कहानी, अहंकारी को उसका अहंकार मारता है, अहंकार शायरी, मनोविज्ञान में अहंकार क्या है,जा दिन मन पंछी उड़ जैहैं का अर्थ,दौलत-काया और सुंदरता का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए,अहंकार से ज्ञान का नाश, अहंकार व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण है, अहंकार विनाश का कारण है, अहंकारी को उसका अहंकार मारता है, अहंकारी व्यक्ति, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "अबके माधव मोहि उघारि," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Why should not ego
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि " अहंकार मनुष्य के पतन का कारण होता है। धन दौलत, काया, सुंदरता के लिए इंसान को अहंकार नहीं करना चाहिए। हे मन ! जिस दिन प्राणरूपी पक्षी उड़ जाएंगे , उस दिन शरीर - रूपी वृक्ष के सभी पत्ते झड़ जाएँगे अर्थात् शरीर अंग - प्रत्यंग बिखर जाएँगे - नष्ट हो जाएंगे । इस शरीर पर घमंड मत करो । प्राण के निकल जाने पर इसे गीदड़ , कौए , गीध आदि खा जाएंगे । ..... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी
॥ संत - संग्रह , भाग २ से उद्धृत ॥
।। मूल पद्य ।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं ।
ता दिन तेरे तन तरवर के , सबै पात झड़ जैहैं ।।
या देही का गर्व न करिये , स्यार काग गिध खइहैं ।
तीन नाम तन विष्ठा कृम होय , नातर खाक उड़इहैं ।।
कहाँ वह नैन कहाँ वह शोभा , कहँ रंग रूप दिखइहैं ।
जिन लोगन सों नेह करत हो , सो तोहि देखि घिनइहैं ।।
जिन पुत्रन को बहु विधि पाल्यो , देवी देव मनइहैं ।
तेहि ले बाँस दियो खोपड़ी में , शीश फाड़ि बिखरइहैं ।।
घर के कहत सबेरे काढ़ो , भूत होय घर खइहैं ।
अजहूँ मूढ़ करो सतसंगत , सन्तन में कछु पइहैं ।।
नर वपु धर जो जन नहिं गुरु के , जम के मारग जइहैं ।
सूरदास भगवन्त भजन बिन, वृथा सो जनम गँवइहैं ॥
शब्दार्थ - तन शरीर । तरवर - तरुवर , बड़ा वृक्ष । कृम - कृमि , कीड़ा । नातर - नहीं तो । घिनइहैं - घृणा करेंगे । काढ़ो - निकालो । मूढ़ - मूर्ख , अज्ञानी । वपु - शरीर । जन भक्त , सेवक । वृथा व्यर्थ ।
भावार्थ - हे मन ! जिस दिन प्राणरूपी पक्षी उड़ जाएंगे , उस दिन शरीर - रूपी वृक्ष के सभी पत्ते झड़ जाएँगे अर्थात् शरीर अंग - प्रत्यंग बिखर जाएँगे - नष्ट हो जाएंगे । इस शरीर पर घमंड मत करो । प्राण के निकल जाने पर इसे गीदड़ , कौए , गीध आदि खा जाएंगे । पशु - पक्षी आदि द्वारा खाये जाने पर शरीर विष्ठा में बदल जाएगा । मिट्टी में गाड़ दिये जाने पर कीड़े हो जाएगा , और नहीं तो जला दिये जाने पर खाक हो जाएगा । इस तरह शरीर की तीन गतियाँ या नाम हो जाएंगे - विष्ठा , कृमि और खाक ।। प्राण के निकल जाने पर पहले - जैसी आँखों की सुन्दरता और पहले जैसा शरीर का सौंदर्य या रंगरूप कहाँ दिखायी पड़ेगा अर्थात् नहीं दिखायी पड़ेगा । जिन लोगों से अभी तुम प्रेम करते हो , वे ही तुम्हारे शरीर को देखकर घृणा करेंगे ।। जिन पुत्रों का तुमने बहुत प्रकार से पालन - पोषण किया ; जिनके कुशल - क्षेम के लिए तुमने अनेक देवी - देवताओं की मनौती मानी , वे ही बाँस लेकर तुम्हारी खोपड़ी पर दे मारेंगे और उसको फाड़ - फाड़कर बिखरा देंगे । घर के लोग कहने लगेंगे कि इसे जल्द घर से निकाल बाहर करो , नहीं तो भूत होकर सबको तंग करेगा । हे मूढ मन ! तुम सत्संगति करो ; संतों की संगति में तुम अवश्य कुछ पाओगे ।। मनुष्य - शरीर धरकर जो गुरु का भक्त नहीं बनता , वह यम के मार्ग पर जाएगा अर्थात् मौत का ग्रास बनेगा अथवा जन्म - मरण के चक्र में पड़ा रहेगा । संत सूरदासजी महाराज कहते हैं कि भगवन्त की भक्ति के बिना नर व्यर्थ ही जीवन बिताता है । इति।।
टिप्पणी १. दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ।। (गीता १६।४)
गीता (१६।४) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-हे पार्थ ! दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध, कठोरता और अज्ञान-ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण ने इन दुर्गुणों को 'आसुरी सम्पदा' कहा है । 'आसुरी सम्पदा' का अर्थ है तमोगुण से युक्त अहंकार, दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध तथा कठोरता आदि दुर्गुणों और बुराइयों का समुदाय जो मनुष्य के अंदर विद्यमान रहते हैं । ये ही दुर्गुण मनुष्य को संसार में फंसाने वाले और अधोगति में ले जाने वाले हैं ।
२.अहंकार मनुष्य के पतन का कारण होता है। धन दौलत, काया, सुंदरता के लिए इंसान को अहंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि ईश्वर का धरोहर समझ कर उसका सदुपयोग करना चाहिए।
३. जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि यह कार्य मैं कर सकता हूँ, तो इसे आत्मविश्वास कहते हैं लेकिन जब वह यह सोचने लगता कि यह कार्य केवल मैं ही कर सकता हूँ तो यह अहंकार का रूप ले लेता है। मानव के अन्दर अहंकार का जन्म ऐसी ही विचारधारा के कारण होता है। मानव के अंदर अहंकार का मुख्य कारण भी यही है। ४. दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए अहंकार का अर्थ होता है अपनी सत्ता को महसूस करना। “मैं हूं।” अहंकार के ना होने पर मनुष्य के जीवन का चलना ही बंद हो जाएगा।
५. अहंकार आने का एक स्वाभाविक सा कारण सफलता होती है, और बहुत से लोग उसी सफलता को श्रेष्ठ मानकर औरों को तुच्छ समझते हैं।
६. जब किसी भी इंसान को यह महसूस होने लगता है की वह औरों से श्रेष्ठ है , उसी क्षण से उसमें अहंकार का बीज अंकुरित होता है । अब यह उस इंसान पर होता है की वो अपने मन में आए उस विचार पर भक्त सूरदास जी महाराज के उपर्युक्त भजन का भाव लेकर क़ाबू पाए ।
इस भजन के पहले वाले पद्य "तुम मेरी राखो लाज हरी," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि अहंकार मनुष्य के पतन का कारण होता है। धन दौलत, काया, सुंदरता के लिए इंसान को अहंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि ईश्वर का धरोहर समझ कर उसका सदुपयोग करना चाहिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 23, Why should not ego । जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं । भजन भावार्थ-सहित -स्वामी लालदास
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/10/2020
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