नानक वाणी 08, The name and hymn in the world is the essence । सुनि मन भूले बावरे । भजन भावार्थ सहित

गुरु नानक साहब की वाणी / 08

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी  ''सुनि मन भूले बावरे,...'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद  सद्गुरु महर्षि  मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। उसी के बारे मेंं यहां जानकारी दी जाएगी।

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  में बताया गया है कि- नाम की महिमा अपरंपार है।  नाम का स्मरण करके सदाशिव भोले शंकर भी अपने कण्ठ-स्थित बिष के प्रभाव को नष्ट करते हैं। तो हम सांसारिक लोग नाम मंत्र, नाम फल, नाम का महत्व, नाम की महिमा, नाम की शक्ति, नाम जप से लाभ, नाम की सिद्धि, नाम जप की महिमा से अनभिज्ञ रहैं, यह बात  गुरु नानक साहब जी को नहीं भाया और इस वाणी के द्वारा उन्होंने हमें इसकी जानकारी दी। संसार में नाम भजन ही सार है।  इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- गुरु नानक की अमृतवाणी, गुरु नानक जी की गुरबाणी, गुरु नानक दी बानी, गुरु नानक देव जी दी बानी, गुरु नानक देव जी के भजन, बाबे नानक दी वाणी, गुरु वाणी गुरु वाणी, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।

इस भजन के पहले वाले भजन  ''तारा चड़िया लंमा.'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

नाम महिमा का उच्चारण करते सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज।
नाम महिमा का उच्चारण करते बाबा नानक

The name and hymn in the world is the essence

भक्त गुरु नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " रे भूले हुए पागल मन ! गुरु के चरणों में लग,  हरि का जप करके, उनके नाम का ध्यान कर , तो तुझसे यम डरेगा और तेरा दुःख भाग जायगा । व्यभिचारिणी ( एक परम प्रभु का विश्वास और भरोसा के अतिरिक्त औरों का भी भरोसा रखनेवाले कुभक्त ) को बहुत दुःख होते हैं । उसका सौभाग्य किस तरह स्थिर रहेगा ? अर्थात् उसका सौभाग्य स्थिर नहीं रहेगा ॥१ ॥ .....  "   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

गुरु नानक साहब की वाणी

 ॥ मूल पद्य ॥

 सुनि  मन  भूले  बावरे ,   गुरु  की  चरणी     लागु ।
 हरि जपि नाम धिआइ तू ,      जम डरपै दुख भागु ॥
 दूखु   घणो  दोहागणी ,       किउ  थिरु रहै सोहागु ॥१॥
 भाई रे अवर नाहीं मैं थाउ ।
 मैं धनु नाम निधानु है , गुरि दीआ बलि जाउ ॥१॥रहाउ ।।  गुरमति पति साबासि तिसु ,   तिस  कै  संग  मिलाउ ।
 तिस बिनु घड़ी न जीवऊ ,   बिनु  नावै मरि जाउ ।।
 मैं अंधुले नामु न बीसरै ,   टेक  टिकी  घरि  जाउ ॥२॥
 गुरू जिना का अंधुला , चेले नाही ठाउ ।
 बिनु सतिगुरु नाउ न पाइझै , बिनु नावै किआ सुआउ ॥   आइ गइआ पछुतावना , जिउ सुंजे घरि काउ ॥३॥
 बिन नावै दुख देहुरी , जिउ कलर की भीति ।
 तब लगु महलु न पाइझै , जब लगु साचु न चीति ॥
 सबदि रपै घरु पाइऔ , निरवाणी पदु नीति ॥४॥
 हउ गुर पूछउ आपणे , गुरु पुछि कार कमाउ ।
 सबदि सलाही मनि वसै , हउमै दुख जलि जाउ ।
 सहजे होइ मिलावणा , साचे साचि मिलाउ ॥५ ॥
 सबदि रते सो निरमले , तजि काम क्रोध अहंकारु ।
 नामु सलाहनि सद सदा , हरि राखहि उर धार । 
 सो किउ मनहु विसारी , सभ जीआ का आधारु ॥६॥   सबदि मरे सो मरि रहै , फिरि मरै न दूजी बार ।
 सबदै ही ते पाइऔ , हरि नामे लगै पिआरु ।।
 बिनु सबदै जगु भूला फिरै , मरि जनमै बारोबार ॥७ ॥ 
 सभ सालाहै आप कउ , बडहु , बडेरी होइ ।
 गुरु बिनु आपु न चीनिझै , कहे सुणे किआ होड़ ।।
 नानक सबदि पछाणीऔ , हउमै करै न कोइ ॥८॥

 शब्दार्थ - दोहागणी - व्यभिचारिणी , कुलटा स्त्री ( यहाँ इसका तात्पर्य है अभक्त ) । थान - स्थान । मैं - मुझे । निधानु - भरपूर । पति - प्रतिष्ठा । नावै नाम । नाउ - नाम । सुआउ - सुभाग । सुंओ - सूम , कंजूस । काउ - काग । देहुरी - देह में । कलर - ऊसर मिट्टी , ऊस , रेहा भीति - दीवाल । रपै - विलास करै । सबदि रपै - शब्द में विलास करने से । नीति - नित्य , असली , सत्य । हउ - सम्बोधन ( हे लोगो ! ) । कार - कर्म । सलाही - साधना । रते - लवलीन होवे । सलाहनि - अभ्यास । सद - सदा , हमेशा । बडहु बडेरी - बड़े - से - बड़ा ।

 भावार्थ
भावार्थकार- सद्गुरु महर्षि मेंहीं। उपदेश देते हुए।
भावार्थकार- महर्षि मेंहीं
रे भूले हुए पागल मन ! गुरु के चरणों में लग, हरि का जप करके उनके नाम का ध्यान कर , तो तुझसे यम डरेगा और तेरा दुःख भाग जायगा । व्यभिचारिणी ( एक परम प्रभु का विश्वास और भरोसा के अतिरिक्त औरों का भी भरोसा रखनेवाले कुभक्त ) को बहुत दुःख होते हैं । उसका सौभाग्य किस तरह स्थिर रहेगा ? अर्थात् उसका सौभाग्य स्थिर नहीं रहेगा ॥१ ॥ भाई रे ! मुझे तो दूसरा स्थान या अवलम्ब नहीं है । मुझे तो नाम ही पूर्ण धन है , जो गुरु ने दिया है । मैं उनकी बलिहारी जाता हूँ ॥१ ॥ गुरु - बुद्धि में रहनेवाले की प्रतिष्ठा है और धन्यता है । उनके संग मिलो , उनके बिना घड़ी भर भी मत जिओ और बिना परमात्म - नाम के मर जाओ । मुझ ( जगत् की ओर से ) अन्धे को नाम नहीं भूलता है , उसकी टेक टिकी हुई है , घर ( मोक्ष धाम ) को जाता हूँ ॥२ ॥ जिसका गुरु अन्धा है , उसके चेले को स्थान नहीं है । बिना सद्गुरु के नाम नहीं प्राप्त होता है और परमात्म - नाम के बिना क्या शोभा है ? अर्थात् शोभा नहीं है । जैसे सूने घर में कौआ जाय , तो वहाँ से वह बिना कुछ पाये ही लौट जाता है , उसी तरह से जो संसार में आकर ईश्वर का नाम नहीं प्राप्त करता है , वह पछताते हुए खाली - खाली संसार से चला जाता है ॥३ ॥ बिना उस नाम के देह दु:खरूप है और रेह या नुुुुनही मिट्टी की दीवाल की तरह हैैै ।  तबतक 
प्रभु का महल नहीं प्राप्त होता है , जबतक चित्त में सचाई नहीं है । शब्द - अभ्यास में आनंद प्राप्त करने से निर्वाण का सत्यपद प्राप्त होता है । अपने गुरु से पूछो और शब्द - अभ्यास की कमाई करो । मन में शब्द - अभ्यास बसे , तो अहंकार का दुःख जल जाय और सहज ही सत्य में सत्य ( परमात्मा में जीवात्मा ) का मिलाप हो जाया ॥ जो शब्द ( अन्तर्नाद ) में रत होते हैं , वे काम , क्रोध और अहंकार को छोड़कर पवित्र हो जाते हैं , नाम - ध्यान के अभ्यास से हृदय में हरि को सदा धारण किये रहते हैं । जो सब जीवों का आधार ( परमात्मा ) है , उसको मन में क्यों भूलना चाहिए ? अर्थात् नहीं भूलना चाहिए ॥६ ॥ जो शब्द - अभ्यास करते - करते शरीर छोड़ते हैं , सो ऐसा मरे रहते हैं कि फिर दूसरी बार नहीं मरते हैं अर्थात् उनका दूसरा जन्म नहीं होता है । शब्द से ही परमात्मा पाये जाते हैं , उस हरि नाम में प्रेम लगाना चाहिए । संसार के लोग बिना ईश्वर के नाम या शब्द के भूले फिरते हैं और बारम्बार जनमते - मरते रहते हैं ॥७ ॥ सब लोग अपनी प्रशंसा चाहते हैं , बड़े - से - बड़ा होना चाहते हैं । परन्तु गुरु के बिना अपनी ( आत्मा की ) पहचान नहीं होती है । कहने - सुनने से क्या होगा ? गुरु नानक साहब कहते हैं कि शब्द ( नाम ) को पहचाने तो कोई अहंकार में नहीं बरतेगा ।८ ॥ इति।।

इस भजन के बाद वाले भजन  ''मोहु कुटंबु मोहु सभकार"  को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  गुरु के चरणों में लग, हरि का जप करके उनके नाम का ध्यान कर , तो तुझसे यम डरेगा और तेरा दुःख भाग जायगा । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



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नानक वाणी 08, The name and hymn in the world is the essence । सुनि मन भूले बावरे । भजन भावार्थ सहित नानक वाणी 08, The name and hymn in the world is the essence । सुनि मन भूले बावरे । भजन भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/16/2020 Rating: 5

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