नानक वाणी 25, Saadhu-Santon ki Asalee tapasya । ज्ञान खड़ग ले मनु सिउ लूझे । भजन भावार्थ सहित -बाबा लालदास
गुरु नानक साहब की वाणी / 25
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- साधु-संतों की तपस्या भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है, लेकिन जो आत्म कल्याणकारी है, वह तपस्या असल में कैसे की जाती है। इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- गुरु नानक देव जी के भजन भावार्थ सहित, संतों की तपस्या, तपस्या में लीन, तपस्या करने वाला, तपस्या का फल, तपस्या तपस्या, तपस्या का महत्व, तपस्या in Hindi, तपस्या, तपस्या का अर्थ, साधु की परिभाषा, इच्छा तपस्या,Kahai Kabir Kuchh Udyam Keejai,साधु की तपस्या,तपस्या का मंत्र, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''साध संगति महि ऋद्धि सिद्धी बुद्धि ज्ञानु,..'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Saadhu-Santon ki Asalee tapasya |
Saadhu-Santon ki Asalee tapasya
ज्ञान खड़ग ले मनु सिउ लूझे । मरम दशाँ पंचा का बूझे ॥ पंच मारि घर बहै संतोष । हउमैं दुविधा मेटै दोष ॥ पंच अगनि नहिं कायाँ जाले । सतवंता सती बहै धर्मशाले ॥ सहजि संतोष की भिक्षा लेइ । नानक जोगी सहजि मिलेइ ॥१ ९ ॥
शब्दार्थ - खड़ग - तलवार । सिउ - से । लूझे - उलझे , युद्ध करे । हउमैं अहंकार । पंच अगनि - पाँच अग्नियाँ ; एक प्रकार का तप जिसमें तप करनेवाला अपने चारो ओर अग्नि जलाकर बैठता है और ऊपर से जेठ - वैशाख के दोपहर के सूर्य की भी गर्मी सहता है । जाले जलाए । सतवंता - सत्यवन्त , सत्य आचरण करनेवाला , सदाचारी । सती बहे सत्यता में बरते । धर्मशाले धर्मशाला में , धरती पर । [ धरती धर्मशाला है ; क्योंकि यहाँ जीव मुसाफिर की तरह आता है और कुछ दिन ठहरकर चला जाता है । धरती को धर्मशाला ( धर्म का स्थान ) इसलिए भी कहते हैं कि यहाँ जीव धर्म - कर्म करने आता है । ]
टीका- स्वामी लालदास जी |
भावार्थ - ज्ञान की तलवार लेकर मन के साथ युद्ध करे और आंतरिक दस अनहद ध्वनियों तथा पंच केन्द्रीय नादों का रहस्य जाने । पाँचो ज्ञानेन्द्रियों की अपने प्रिय विषयों की ओर होनेवाली ललक को मारकर अपने शरीर के अंदर ( अंतर्मुख होकर ) संतोषपूर्वक बरते । अहंकार , द्विविधा ( शंका , संदेह , चिन्ता , चित्त की चंचलता ) आदि दोषों को दूर करे ॥ पंच अग्नियों से अपने शरीर को पीड़ा न दे अर्थात् शरीर को कष्ट देनेवाली तपस्या न करे । धरती पर सदाचारी होकर रहे - सदा सत्यता में बरते ; स्वाभाविक संतोष की भिक्षा परमात्मा से माँगे अर्थात् सदा सहज संतोष में रहने की परमात्मा से प्रार्थना करे । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि ऐसे योगी को सहज ही परमात्मा मिल जाता है।॥१९ ॥
इस भजन के बाद वाले भजन ''तदि अपना आपु आप ही उपाया...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि साधु-संतों की तपस्या भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है, लेकिन जो आत्म कल्याणकारी है, वह तपस्या असल में कैसे की जाती है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी-सुधा सटीक |
कोई टिप्पणी नहीं:
कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।