गुरु नानक साहब की वाणी / 38
इस भजन के पहले वाले भजन ''पंचे शबद बजे मति गुरमति ,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
गुप्त हरि नाम कैसे मिलता है? How do you find the name Hari Gupta?
१ ॐ सतिगुर प्रसादि
शब्दार्थ - रामा , रामो - रामनाम , अनाहत नाद । कासट - काष्ठ , काट । जिउ - जैसे । बैसंतरु - बसन्दर , वैश्वानर , आग । मथि - मथकर , रगड़कर । संजमि संयम से , साधन से , तरीके से । कढ़ीजै निकाल लीजिए । जोति - चेतनरूप । सबाई - सबमें , समाया हुआ । ततु = तत् , वह । फीके - रस - रहित , आनंद - रहित । सउदा सौदा , खरीद । भरि सागर - सागर भरकर , बहुत - सा । सारिंग - सारंग , चातक , पपीहा । रंगनु - रंग । लालु - लाल , प्रकाश । राते- रंगकर , लीन होकर । रसिक - प्रेमी भक्त । गटक गटगट करके , बड़े - बड़े चूंट भरकर । बसुधा - वसुधा , गर्भ में धन को धारण करनेवाली , पृथ्वी । सपत - सप्त , सात । दीप - द्वीप , वह स्थल जिसके चारो ओर जल हो । ( जम्बू , प्लक्ष , शाल्मली , कुश , क्रौंच , शाक और पुष्कर - ये सप्त द्वीप हैं । ) वांछहि - वांछा ( इच्छा ) करते हैं । साकत - निगुरा , जो गुरुमुख नहीं है , जिसे गुर ( युक्ति ) मालूम नहीं है । सद - सदा । धावतु - चलायमान , क्षणभंगुर सांसारिक पदार्थ । बिखि ( बिथि ) बिचि , बीच , अंतर , दूरी । तुलि - तुलना , समता , समान ।
भावार्थकार- बाबा लालदास |
भावार्थ - रामनाम में रमो अर्थात् अनाहत नाद में अपनी सुरत को लीन करो । रामनाम को सुनकर मन भींगता है ( आनंदित होता है । ) । हरि - सहित हरिनाम अमृत रस है और बहुत मीठा है । गुरुमुख उसे सहज रूप से पीते हैं ॥१ ॥ ' रहाउ । जिस प्रकार काठ में छिपी आग काठ को रगड़कर प्रकट की जाती है , उसी प्रकार शरीर के अंदर गुप्त हरिनाम को साधन के द्वारा प्रत्यक्ष करते हैं । ज्योतिस्वरूप या चेतनरूप रामनाम सबमें समाया हुआ है , गुरुमुख उसे निकालकर ( प्रत्यक्ष करके ) ग्रहण कर ले ॥१ ॥ शरीर में नौ द्वार हैं । नवो द्वार फीके ( रस - रहित ) हैं अर्थात् शरीर के नवो द्वारों में सुरत के बिखरे रहने से आनंद नहीं मिलता । दसवें द्वार में अमृत रस ( ज्योति और शब्दरूप अमृत रस ) चुला लीजिए । हे प्रियतम गुरुदेव ! आप कृपा करके गुरुशब्दरूपी हरि - रस पिला दीजिए ॥२ ॥ शरीर एक नगर है - यह बहुत सुंदर नगर है । इसके बीच हरि - रस ( हरिनामरूप अमृत रस ) का सौदा ( खरीद ) कीजिए । हरिनामरूप लाल रत्न अनमोल है - मूल्यवान् है , उसे सद्गुरु की सेवा करके प्राप्त कीजिए ॥३ ॥ सद्गुरु की गति अगम्य ( मन बुद्धि से नहीं जाननेयोग्य ) है ; ठाकुर ( मालिक , परमात्मा ) की गति भी अगम्य है । सागर भरकर ( बहुत - सी ) उसकी भक्ति कीजिए । हे गुरुदेव ! कृपा करके मुझ दीन पपीहे के मुख में नामरूपी स्वाति - जल की एक बूंद दे दीजिए।॥४ ॥ अंत : प्रकाशरूप लाल रल लाल रंग का है । हे गुरुदेव ! मन को रंगाने के लिए ( मन पर भक्ति का रंग चढ़ाने के लिए ) उस अंत : प्रकाश का मुझे साक्षात्कार कराइये अथवा परमात्मारूपी रँगरेज ( रंगानेवाला ) बड़ी महिमावाला है , उसके पास जो रंग ( प्रकाश ) है , वह लाल है । हे गुरुदेव ! मन को रँगाने के लिए वह रंग मुझे दीजिए ( प्राप्त कराइए ) । रामनाम के रंग ( आनंद ) में रँगकर ( लीन होकर ) प्रेमी भक्त नित्य गटगट करके - बड़े - बड़े घूट भरकर अमृत रस पीते हैं।।५ ।। पृथ्वी पर सात द्वीप और सात समुद्र हैं - इन सबके गर्भ से समस्त सोना ( समस्त बहुमूल्य धातुएँ और रत्न ) निकालकर सामने रख दिया जाए , तोभी मेरे मालिक ( परमात्मा ) के भक्त उनकी इच्छा नहीं करेंगे । वे तो हरि से केवल यही माँगते हैं कि मुझे बस हरि - रस ( हरिनाम ) दीजिए ॥६ ॥ निगुरे प्राणधारी मनुष्य सदा सांसारिक वैभव ( धन - दौलत ) के भूखे होते हैं । बहुत अधिक धन - दौलत हो जाने पर भी उन्हें उनकी नित्य भूख - ही - भूख ( तृष्णा - ही - तृष्णा ) बनी रहती है अर्थात् बहुत अधिक हो जाने पर भी वे ' और चाहिए , और चाहिए'- ऐसी इच्छा करते रहते हैं । वे क्षणभंगुर सांसारिक पदार्थों के पीछे दौड़ते रहते -माया के पीछे प्रीतिपूर्वक दौड़ते रहते हैं । ऐसे लोगों को अपने से लाखों कोस का अंतर देना चाहिए अर्थात् ऐसे लोगों से लाखों कोस दूर रहना चाहिए अथवा हरि - भक्तों और ऐसे माया - भक्तों के बीच लाखों कोस का अंतर समझना चाहिए।॥७ ॥ हरि उत्तम हैं और हरिजन भी उत्तम हैं । उन हरिजनों की क्या उपमा दी जाए अथवा उन हरिजनों की किनसे उपमा दी जाए ? ' राम ' के सिवा उनके लिए और कोई उपमा नहीं है अर्थात् वे राम ( परमात्मा ) के ही समान कहे जानेयोग्य हैं । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि हे गुरुदेव ! मुझ दास पर कृपा कीजिए ॥८ ॥
टिप्पणी- -१ . गुरु नानकदेवजी ने अनाहत नाद को हुक्म , हरिनाम और गुरुशब्द या गुरुनाम भी कहा है ।
२. राम ( परमात्मा ) में मिलकर भक्त भी राम ही हो जाते हैं ।
३. “ बिखि दीजै ' के स्थान पर " बिथि दीजै ' पाठ भी मिलता है ।
---×---
इस भजन के बाद वाले भजन ''अंतरि गुरु आराधणा ....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि apanee soorat ko kis mein leen karana chaahie? raam naam milane par kya hota hai ? gupt hari naam kaise milata hai? raam naam kis roop mein shareer ke andar mein rahata hai? kis dvaar mein raam naam milata hai? shareer mein kitane dvaar hain? shareer roopee sundar nagar mein amrt ras kya hai? laal ratn ko kaun praapt kar sakata hai? sataguru kee gati kahaan tak hai? gurudev se kya maangana chaahie? laal ratan kya hai? sachche bhakt kis cheej kee ichchha rakhate hain? bhakton ko kis tarah sansaar mein rahana chaahie? harijan kise kahate hain? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी-सुधा सटीक |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।