नानक वाणी 51 || कोटि कोटी मेरी आरजा .. अर्थ सहित || नाम की महिमा क्या है?What is the glory of the name?
सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 51
नाम की महिमा क्या है?
प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहिब जी महाराज अपने निम्नलिखित वाणी के द्वारा भगवान के नाम की महिमा का बखान करते हैं और कहते हैं कि यदि मैं जिंदगी भर बिना खाए पिए और बिना रुके, ईश्वर के गुण का उनके नाम की महिमा का वर्णन करता रहूं, तब भी उनकी महिमा का पार नहीं पा पाऊंगा . आइए उन्ही के वाणी में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन सुनें और पढे ं-
गुरु नानकदेवजी महाराज की वाणी
( 51 )
शब्दार्थ- आरजा = आयु । भी = तोभी । कीमति = कीमत , महिमा , बढ़ाई । हउ = मैं। केवल = केवल। आखा = कहने से । नाउ = नाम । निरंका।रु = निराकार , रूप - रहित । कहते हैं , वर्णन करते हैं । पिट जाऊँ । कुटीआ = बड़ाई । थाइ = स्थान , स्वरूप । आखण = कहते हैं, वर्णन करते हैं । आखणा = कथा , कहानी । तमाइ = तमा , इच्छा । कुसा = पिट जाऊँ । कुटीया = कुट जाउं । अगी सेती = आग से । रलि जाउ = मिल जाउँ। नदरी = नजर । लख मणा = लाखों मन । कीचै = कीजै , करे । भाउ = भाव , अर्थ , विचार । मसू = मसी , स्याही । तोटि = त्रुटि , कमी । पड़ि पड़ि = पढ़ - पढ़कर ।
भावार्थ-- गुरु नानक देवजी कहते हैं कि करोड़ों - करोड़ों वर्ष की मेरी आयु हो , वायु ही मेरा खाना - पीना हो , दिन - रात गुफा में बैठा रहूँ कि सूर्य - चन्द्र भी मुझे कभी नहीं देख सकें , कभी शयन नहीं करूँ और सोने के लिए स्थान भी नहीं मिले , तोभी हे परमात्मा ! तेरी और तेरे नाम की महिमा का केवल वर्णन करके मैं अंत नहीं पा सकूँगा ॥ १ ॥
सच्चा परमात्मा अपने स्वरूप से निराकार है । जिसे अच्छा लगता है और जो इच्छा करता है , वह सुन - सुनकर परमात्मा की गुण - गाथाएँ कहता है ॥ १ ॥ रहाउ ।।
मैं पिट जाऊँ , कुट जाऊँ , बार - बार चक्की में पिस जाऊँ , आग में जल जाऊँ और जलकर भस्म हो जाऊँ अर्थात् मैं अनेक प्रकार के हठकर्म और कठिन तपश्चर्या करूँ , तोभी हे परमात्मा ! तेरी और तेरे नाम की महिमा का केवल वर्णन करके मैं अंत नहीं पा सकूँगा ॥ २ ॥
पक्षी होकर अथवा पक्षी के समान उड़कर आकाश जा लगूँ ; अदृश्य हो जाकर किसी के भी देखने में न आऊँ और न तो कुछ खाऊँ , न पिऊँ , तोभी हे परमात्मा ! तेरी और तेरे नाम की महिमा का केवल वर्णन करके मैं अंत नहीं पा सकूँगा ॥३ ॥
गुरु नानक देवजी कहते हैं कि लाखों मन कागज के धर्मग्रंथों को पढ़ - पढ़कर उनके अर्थों पर विचार करूँ , स्याही की कभी कमी नहीं होने दें और वायु की गति से लेखनी चलाऊँ , तोभी हे परमात्मा ! तेरी और तेरे नाम की महिमा का केवल वर्णन करके मैं अंत नहीं पा सकूँगा ॥४ ॥ ∆
कोई टिप्पणी नहीं:
कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।