नानक वाणी 03, Where to Find God "काहे रे बन खोज जाई..." अर्थ सहित, टीकाकार- लाल दास जी महाराज

गुरु नानक साहब की वाणी / 03

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु बाबा  नानक साहब जी महाराज अपनी वाणी  "काहे रे बन खोज जाई...'' में कहते हैं कि परम प्रभु परमात्मा की प्राप्ति जंगल में जाने से नहीं हो सकती? क्योंकि वह परमात्मा सब जगह व्याप्त है और जो सदा सबसे अलिप्त ( सबसे बाहर या ऊपर ) भी है , वह तुम्हारे संग भी ( तुम्हारे शरीर के अंदर भी ) समाया हुआ है । उसे केवल सच्चे सतगुरू की देखरेख रहते हुए कहीं भी रहकर प्राप्त कर सकते हैं। आइये इस पोस्ट में इस वाणी को अच्छी तरह समझने के पहले  सद्गुरु बाबा नानक साहब जी महाराज के दर्शन करें--

इस भजन वाणी के पहले वाले वाणी "जैसे जल में कमल निरालमु..." को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं


नानक वाणी 03, गुरु नानक और सिमरन,Where to Find God,काहे रे बन खोज जाई,अर्थ सहित
बाबा नानक सिमरन करते हुए।

ईश्वर को कहां खोजें? Where to Find God 

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज "संतवाणी सटीक"    भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं और उसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक का नाम संतवाणी सटीक है। इसके अतिरिक्त भी भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संतवाणी-सुधा सटीक" में में प्रकाशित भक्त  संत श्री गुरु नानक साहब की वाणी "काहे रे बन खोज जाई...'  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे। 

     इस वाणी के द्वारा सद्गुरु  बाबा नानक साहेब जी महाराज  निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। जैसे कि- ईश्वर को कहां खोजें? क्या जंगल में जाने से ईश्वर की प्राप्ति निश्चित हो जाती है? ईश्वर का स्वरूप कैसा है? क्या ईश्वर अनेक है? ईश्वर का स्वरूप कैसा है? परमात्मा कहाँ मिलेगा? ईश्वर को कैसे देख सकते हैं? ईश्वर कहाँ रहता है? सच्चा ईश्वर कौन है? ईश्वर प्राप्ति के लिए सद्गुरु का क्या महत्व है? ईत्यादि बातें। अगर आपको उपरोक्त बातें समझनी है तो इस वाणी की शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी को पूरे मनोयोग से अवश्य पढ़ें-


॥ धनासरी , महला ९ ॥ ( शब्द १ )

 १ ॐ सतिगुर प्रसादि

काहे रे वन खोजन जाई ।
सरब निवासी सदा अलेपा , तोही संग समाई॥१॥रहाउ ॥ पुहप मधि जिउ बासु वसतु है , मुकर माहिं जैसे छाई ॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि , घटि ही खोजहु भाई ॥१ ॥
बाहरि भीतरि एको जानहु ,  इहु गुर गिआन बताई ॥
जन नानक बिनु आपा चीनै , मिटै न भ्रम की काई ॥२ ॥

     शब्दार्थ - सरब निवासी = सब जगह रहनेवाला । अलेपा = अलिप्त , जो कहीं सीमित न हो गया हो , सबमें व्याप्त रहकर सबसे ऊपर रहनेवाला । पुहप = पुष्प , फूल । मुकर = मुकुर , दर्पण , आईना । छाई = परछाईं । निरन्तरि = निरंतर , लगातार , एक समान , बिना अवकाश छोड़े । इहु = यह । जन = भक्त , दास ।  आपा = आत्मस्वरूप । चीनै = पहचाने । भ्रम = अज्ञानता , माया । काई = मैल , दोष , आवरण । 

महर्षि मेँहीँ-शब्दकोष
महर्षि मेँहीँ-शब्दको


        ( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए 

       "महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

                                   देखें )


     भावार्थ - अरे अज्ञानी लोगो ! परमात्मा को खोजने के लिए जंगल ( शरीर से बाहर ) क्यों जाते हो ? जो परमात्मा सब जगह व्याप्त है और जो सदा सबसे अलिप्त ( सबसे बाहर या ऊपर ) भी है , वह तुम्हारे संग भी ( तुम्हारे शरीर के अंदर भी ) समाया हुआ है ॥१ ॥ रहाउ ।। जैसे फूल में गंध रहती है और आईने में परछाईं , वैसे ही सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से परमात्मा बिना अवकाश छोड़े सर्वत्र एक समान है । इसलिए हे भाई ! उस परमात्मा को अपने शरीर के अंदर खोजो ॥१ ॥ शरीर और संसार के बाहर और अंदर भी उसी एक परमात्मा को स्थित ( परिव्याप्त ) जानो - यह ज्ञान गुरुदेव ने बताया है । भक्त श्री गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि अपनी आत्मा की पहचान किये बिना अज्ञानता का दोष ( दुःख , आवागमन का चक्र ) कभी नहीं मिटता ॥२॥

टीकाकार-पूज्यपाद छोटेलाल दास जी महाराज, संतनगर, बरारी, भागलपुर।
टीकाकार- लालदास जी  
     टिप्पणी -१ . जैसे फूल में सुगंध दर्पण में परछाईं सूक्ष्म रूप से रहती है , उसी प्रकार परमात्मा सर्वत्र एक समान सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से व्याप्त है और सबसे ऊपर भी है । २. शरीर - इन्द्रियों के संग रहकर बाहर में परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती । शरीर के अंदर - अंदर चलते हुए शरीर - इन्द्रियों से छूटकर उसकी प्राप्ति की जा सकती है ।

इस भजन के बाद दूसरे भजन ''सब किछु घर महि बाहरि नाहीं।.." को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

     प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास जी महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि सतगुरु बाबा नानक साहब जी  ईश्वर को कहां खोजने कहते हैं? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में इस भजन का पाठ किया गया है।



संतवाणी-सुधा सटीक, बहुत से संतो के वाणियों के सटीक पुस्तक।
संतवाणी-सुधा सटीक
नानक वाणी भावार्थ सहित
अगर आप 'संतवाणी सटीक' पुस्तक से महान संत श्रीनानक साहब जी महाराज के  अन्य पद्यों को अर्थ सहित जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो     यहां दबाएं। 

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए   यहां दवाए

नानक वाणी 03, Where to Find God "काहे रे बन खोज जाई..." अर्थ सहित, टीकाकार- लाल दास जी महाराज नानक वाणी 03, Where to Find God "काहे रे बन खोज जाई..." अर्थ सहित, टीकाकार- लाल दास जी महाराज Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/27/2020 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।

Blogger द्वारा संचालित.