P14 महर्षि मेंहीं पदावली भजन -नमामि अमित ज्ञान- अर्थ सहित || Sadhguru Mahima सच्चे सद्गुरु कैसे होते हैं?

महर्षि मेंहीं पदावली / 14

      प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 14 वां, पद्य- "नमामि अमित ज्ञान,..." का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के  बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
इस सद्गुरु-स्तुति (कविता, पद्य, वाणी, छंद, भजन) "नमामि अमित ज्ञान,..." में बताया गया है कि- सतगुरु महाराज का स्तुति,महर्षि मेंहीं का स्तुति,महर्षि मेंही का स्तुति विनती,संतमत,Sadhguru Hindi,निखिल मंत्र विज्ञान,गुरु के गुण,गुरु को समर्पित, Definition of Guru,Qualities of Guru,क्या होता है गुरु का अर्थ,सच्चा गुरु कैसा होना चाहिए,गुरु किसे कहते है,गुरु बनाने के नियम, गुरु और शिष्य का संबंध,guru हिंदी,गुरु आखिर गुरु होता है,आत्म ज्ञान कैसे होता है,गुरु कैसे बनाएं आदि।

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P14, Description of qualities worthy of Sadhguru "नमामि अमित ज्ञान,..." महर्षि मेंहीं पदावली भजन अर्थ सहित। सद्गुरु महर्षि मेंहीं और टीकाकार लाल दास जी महाराज
सद्गुरु महर्षि मेंहीं और टीकाकार लाल दास जी महाराज

Description of qualities worthy of Sadhguru

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "अपार ज्ञान के स्वरूप, कृपा करने वाले, बुद्धि की पहुंच से परे परमात्मा का ज्ञान देने वाले और उत्तम विचारों के विशाल भंडार रूप गुरु को में बारंबार नमस्कार करता हूं।..." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढें-पढें-

महर्षि मे हीँ - पदावली : शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी- सहित


( १४ )

॥ सद्गुरु-स्तुति ॥

नमामी अमित ज्ञान, रूपं कृपालं ।
              अगम बोध दाता, सुबुधि निधि   विशालं ॥१॥
क्षमाशील अति धीर, गंभीर ज्ञानं ।
               धरम कील दृढ़  थीर,  सम  धीर   ध्यानं ॥२॥
जगत्-त्राणकारी, अघारी उदारं ।
               भगत   प्राण   रूपं,   दया   गुण  अपारं ॥३॥
नमो सत्गुरुं ज्ञान दाता सुस्वामी ।
               नमामी    नमामी    नमामी         नमामी ॥४॥
हरन भर्म भूलं, दलन पाप मूलं ।
                करन     धर्म     पूलं,    हरन   सर्व  शूलं ॥५॥ 
जलन भव विनाशन, हनन कर्म पाशन ।
                 तनन    आश नाशन, गहन  ज्ञान भाषण ॥६॥ 
युगल रत्न पुरुषार्थ, परमार्थ दाता ।
                दवा  गुण  सुमाता,  अमर  रस   पिलाता ॥७॥ 
नमो सतगुरुं सर्व, पूज्यं अकामी । 
                 नमामी     नमामी     नमामी      नमामी ॥८॥
सरब सिद्धि दाता, अनाथन को नाथा । 
                 सुगुण बुधि  विधाता,  कथक ज्ञान गाथा ॥९॥
परम शांतिदायक, सुपूज्यन को नायक ।
                 परम सत्सहायक,  अधर  कर   गहायक ॥१०॥
महाधीर योगी, विषय-रस वियोगी ।
                  हृदय अति  अरोगी,   परम   शान्तिभोगी ॥११॥
नमो सद्गुरुं सार, पारस सुस्वामी ।
                  नमामी      नमामी    नमामी       नमामी ॥१२॥
महाघोर कामादि दोषं विनाशन ।
                  महाजोर   मकरन्द  मन   बल     हरासन ॥१३॥
महावेग जलधार, तृष्णा सुखायक ।
                   हासुक्ख      भंडार,           संतोषदायक ॥१४॥
महा शांतिदायक, सकल गुण को दाता । 
                   महा   मोह   त्रासन,  दलन   धर  सुगाता ॥१५॥
नमो सद्गुरुं, सत्य धर्मं सुधामी । 
                   नमामी       नमामी      नमामी    नमामी ॥१६ ॥
जो दुष्टेन्द्रियन नाग गण विष अपारी ।
                   हैं  सद्गुरु   सुगारुड़,   सकल विष  संघारी ॥१७॥
संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
महामोह घनघोर, रजनी निविड़ तम ।                 हैं सद्गुरु वचन   दिव्य    सूरज किरण सम ॥१८॥
महाराज सद्गुरु हैं राजन को राजा ।
                   हैं जिनकी   कृपा   से  सरैं   सर्व   काजा ॥ १९ ॥ 
भने 'मेँहीँ' सोई, परम गुरु नमामी |
                   नमामी      नमामी    नमामी       नमामी ॥२०॥

शब्दार्थ - नमामी = नमामि, प्रणाम करता हूँ । अमित = अपरिमित, असीम, अपार, जो मापा न जा सके, बहुत अधिक । अगम = जो बुद्धि की पहुँच से बाहर हो, परमात्मा, गंभीर, रहस्यमय । बोध = ज्ञान । दाता = देनेवाला । सुबुधि = सुबुद्धि, सुन्दर ज्ञान । निधि = खजाना, भंडार । विशाल = बहुत बड़ा । धीर = धैर्यवान् । कील = खूँटी, खंभा, स्तंभ, धुरी । सम = सुख-दुःख-जैसे द्वंद्वों में चित्त का समान भाव बनाये रखनेवाला । त्राणकारी = रक्षा करनेवाला, कल्याण करनेवाला । अघारी = अघारि, पाप का शत्रु, पाप का नाश करनेवाला । क्षमाशील = अहित सोचे बिना किसी के अपराध को सह लेनेवाला । प्राण = जीवनी शक्ति । सुस्वामी = सर्वश्रेष्ठ स्वामी, अत्यन्त समर्थ । भर्म = भ्रम, अज्ञान, मिथ्या ज्ञान । भूलं = भूल, त्रुटि, गलती, दोष, अपराध । पूलं = पुल (फा० ), सेतु, मर्यादा; देखें- “कोपेउ जबहिं बारिचरकेतू । छन महँ मिटे सकल श्रुति सेतू ॥” (मानस, बालकांड) । दलन = पीसनेवाला, कुचलनेवाला, नष्ट करनेवाला । पापमूलं = पाप की जड़, इच्छा, काम, क्रोध, लोभ । शूलं = दुःख, पीड़ा । जलन = दुःख, कष्ट, पीड़ा । तनन आश नाशन = शरीर की आसक्ति को दूर 'करनेवाला। युगल = दोनों, जोड़ा । भव = संसार, जन्म-मरण । हनन = मारनेवाला, नष्ट करनेवाला । पाश = बंधन, फंदा । पुरुषार्थ (पुरुष + अर्थ ) = मानव का प्राप्तव्य (आवश्यकता, प्रयोजन, लक्ष्य ) - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष; उद्योग, प्रयत्न; यहाँ अर्थ है- सांसारिक जीवन निर्वाह का आवश्यक भोग, संसार में आराम से जीने की सुविधा अथवा धर्म, अर्थ और काम । परमार्थ (परम+अर्थ ) = परम प्राप्तव्य, परम लक्ष्य, मोक्ष । सुमाता = अच्छी माता । अमर रस = अविनाशी सुख । सर्व पूज्यं = सबके द्वारा पूजे जानेयोग्य । अकामी = अकाम, इच्छा - रहित । सिद्धि = सफलता, आठ अलौकिक शक्तियाँ। विधाता = बनानेवाला, उत्पन्न करनेवाला, देनेवाला । कथक = कहनेवाला । गाथा = कथा । सुपूज्यन = अनिवार्य रूप से पूजनीय सभी गुरु जन । नायक = अगुआ, नेता, सरदार, श्रेष्ठ । सत्सहायक = सच्चे  सहायक । अधर = आकाश, अन्तर का आकाश । कर = किरण, प्रकाश, धारा, हाथ, का, की, के, को। गहायक = गहानेवाला, ग्रहण करानेवाला । अनाथ = असहाय, बेसहारा । नाथ = स्वामी, देखभाल करनेवाला । महाधीर = अत्यन्त धैर्यवान् । विषय-रस-वियोगी = विषय-सुख से अलग रहनेवाला । पारस = स्पर्शमणि, एक प्रकार का पत्थर जिसके विषय में मान्यता है कि यदि उससे लोहा स्पर्श कराया जाय, तो वह सोना हो जाता है; जीवन को दिव्य बना देनेवाला; अपने समान बना लेनेवाला । महाघोर = बड़ा भयानक, बड़ा दुःखदायी । महाजोर = महा जोरावर, बड़ा बलवान् । मकरन्द = फूलों का रस, भौंरा । ( “मन मकरन्द त्रिकुटी स्थाना । इमि करि करत बान संधाना ॥ - संत दरिया साहब बिहारी)। हरासन = ह्रास करनेवाला, घटानेवाला, कम करनेवाला, नष्ट करनेवाला | महावेग = अत्यन्त तीव्र वेगवाला, अत्यन्त वेगशाली । तृष्णा = एक प्रकार का मानसिक नशा जिसके कारण मनुष्य अधिकाधिक सांसारिक पदार्थों का संग्रह करने की ओर सदा प्रवृत्त रहता है, प्रबल लोभ या लालच । सुखायक = सुखानेवाला । त्रासन = त्रास, भय, दुःख । महात्रासन = महात्रास, महाभय, जन्म-मरण का दुःख, मानव - योनि से भिन्न योनि में चले जाने का भय । नाग = साँप। सुगाता = सुन्दर गात्र, सुन्दर शरीर, मानव-शरीर । सुधामी = सुधाम, सुन्दर घर । गारुड़ = साँप का विष उतारने का मन्त्र; परन्तु यहाँ अर्थ है-गारुड़ी, मंत्र के द्वारा सर्प का विष उतारनेवाला । ( "राम गारडू विष हरै, जे कोय देत मिलाय ।" - सन्त रामचरणजी)। दुष्टेन्द्रिय = दुष्ट इन्द्रिय, दुःखदायिनी इन्द्रिय | संघारी = संहार करनेवाला । महामोह = बड़ा अज्ञान, आत्मज्ञानविहीनता । घनघोर = अत्यन्त भयानक । रजनी = रात्रि । निविड़ = घना, सघन । तम = अंधकार । दिव्य सूरज = विलक्षण सूर्य, अलौकिक सूर्य, त्रिकुटी में दर्शित होनेवाला सूर्यब्रह्म । सरै = सम्पन्न होते हैं, पूरे होते हैं । भने = कहते हैं । परम गुरु = परमात्मा, सभी गुरु जनों में जो श्रेष्ठ हों, संत सद्गुरु । 




भावार्थ - अपार ज्ञान के स्वरूप, कृपा करनेवाले, बुद्धि की पहुँच से परे परमात्मा का ज्ञान देनेवाले और उत्तम विचारों के विशाल भंडार - रूप सद्गुरु को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ ॥१॥

टीकाकार- पूज्यपाद छोटेलाल दास जी महाराज, संतनगर, बरारी, भागलपुर-3, बिहार भारत।
टीकाकार लालदासजी

     अत्यन्त क्षमाशील और धैर्यवान्, अत्यन्त गंभीर ज्ञानवाले, धर्म के अत्यन्त मजबूत और अटल स्तम्भ-रूप अर्थात् धर्मपालन करने में दृढ़ता से सदैव तत्पर रहनेवाले अथवा धर्म की टेक को अत्यन्त मजबूती से पकड़े हुए रहनेवाले, सुख-दुःख-जैसे द्वंद्वों में चित्त का समान भाव बनाये रखनेवाले, ध्यानाभ्यास में धैर्य धारण करनेवाले अर्थात् बिना उकताये नित नियमित रूप से ध्यानाभ्यास में लगे रहनेवाले, संसार का कल्याण करनेवाले, पापों के नष्ट करनेवाले, खुले हृदयवाले, भक्तों के प्राण-रूप अर्थात् अत्यन्त प्यारे, अंपार दया भाव रखनेवाले और उत्तम ज्ञान देने में अत्यन्त समर्थ सद्गुरुदेव को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ ॥२-३-४॥

     अज्ञानता और दोषों को हर लेनेवाले, पापों की जड़ (इच्छा, काम, क्रोध, लोभ) को नष्ट कर डालनेवाले, धर्म का पुल बनानेवाले अर्थात् उन कर्त्तव्य कर्मों को स्पष्ट रूप से बता देनेवाले जिनका अच्छी तरह आचरण करके लोग संसार-समुद्र को पार कर जाएँ अथवा धर्म की मर्यादा स्थापित करनेवाले, संसार के सभी दुःखों-त्रय तापों को दूर करनेवाले, जन्म-मरण की पीड़ाओं को विनष्ट कर डालनेवाले अर्थात् आवागमन (जन्म-मरण) छुड़ा देनेवाले, कर्म-बंधनों को छिन्न-भिन्न कर डालनेवाले, शरीर के बहुत दिनों तक टिके रहने की उम्मीद को अथवा शरीर की आसक्ति को मिटा डालनेवाले, बड़े ऊँचे या गंभीर ज्ञान का कथन करनेवाले, पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ और काम; संसार में आराम से जीने की सुविधा, कर्त्तव्य कर्मों के प्रति आस्था ) और परमार्थ (परम मोक्ष ) - रूपी दोनों रत्नों को देनेवाले, अच्छी माता के समान या माता से भी बढ़कर शिष्यों के प्रति दया भाव रखनेवाले, अमर रस पिलानेवाले अर्थात् परमात्मा का अविनाशी आनन्द देनेवाले, सबके द्वारा पूजे जाने योग्य और इच्छा-रहित सद्गुरु को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ ॥५-६ - ७॥ 

     सारी सफलताएँ या आठ सिद्धियाँ देनेवाले, असहायों की देखरेख वा पालन-पोषण करनेवाले, सद्गुण और सद्बुद्धि प्रदान करनेवाले, उत्तम ज्ञान-कथाएँ कहनेवाले, परम शान्ति देनेवाले, अनिवार्य रूप से पूजनीय (आदरणीय) सभी गुरु जनों में श्रेष्ठ, सबसे बड़े और सच्चे सहायक, अन्तराकाश की ज्योति और नाद की धाराओं को पकड़ा देनेवाले अथवा अन्तराकाश में परमात्मा के ज्योति-नादरूपी बायें दायें हाथों को पकड़ा देनेवाले, अत्यन्त धैर्यवान् योगी ( अत्यन्त धैर्यपूर्वक योग-साधना में लगे रहनेवाले), विषय - सुखों से अलग रहनेवाले, अत्यन्त स्वस्थ हृदयवाले अर्थात् मानस रोगों से अत्यन्त शून्य हृदयवाले, परम शान्ति का आनन्द लेनेवाले, साररूप (परमात्मरूप), पारसरूप अर्थात् अपनी निकटता से शिष्य के जीवन को दिव्य बना देनेवाले अथवा अपनी निकटता से शिष्य को भी अपने ही समान बना लेनेवाले और सर्वश्रेष्ठ स्वामी सद्गुरु को मैं बारंबार प्रणाम करता हूँ ॥९-१०-११-१२ ॥

      बड़े दुःखदायी काम-क्रोध-लोभ आदि विकारों को विनष्ट करनेवाले, बड़े बलवान् मनरूपी भौरे की विषय-रस की आसक्ति को समाप्त कर देनेवाले, अत्यन्त वेगवती जलधारारूपिणी तृष्णा (प्रबल लोभ या लालच) को सुखा डालनेवाले, महासुख (नित्य सुख ) के भंडाररूप, संतोष देनेवाले, महाशान्ति देनेवाले, सभी सद्गुण प्रदान करनेवाले, भक्तों के महामोह (प्रगाढ़ अज्ञानता, आत्मज्ञानविहीनता) और महात्रास - महाभय ( आवागमन के बड़े दुःखों) को सुन्दर शरीर (मानव-शरीर ) धारण करके नष्ट कर देनेवाले, सत्य और धर्म के श्रेष्ठ आवास (घर)- रूप सद्गुरु को मैं बारंबार प्रणाम करता हूँ ॥१३-१४-१५-१६॥ 

     ज्ञानेन्द्रियरूपिणी दुष्ट सर्पिणीसमूह का कभी नहीं उतरनेवाला विष विषयों की आसक्ति है । संत सद्गुरु श्रेष्ठ गारुड़ी (मंत्र द्वारा सर्प दंशित व्यक्ति का विष उतारनेवाले) हैं, जो शिष्य के मन में चढ़े हुए विषयों की आसक्ति के विष को उतार देते हैं । महामोह (आत्मज्ञानविहीनता) की अत्यन्त भयानक रात्रि के सघन अंधकार को विनष्ट करने के लिए सद्गुरु का वचन विलक्षण या अलौकिक सूर्य ( त्रिकुटी में दर्शित होनेवाले सूर्यब्रह्म) की किरणों के समान है । ( सूर्यब्रह्म के दर्शन से अज्ञान अंधकार मिट जाता है। अतएव सूर्यब्रह्म का प्रकाश सच्चे गुरुज्ञान का स्वरूप है ।) सद्गुरु राजाओं के राजा ( महाराजा) हैं, उन्हीं की कृपा से शिष्यों के सब कार्य पूरे होते हैं । सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज कहते हैं कि मैं ऐसे ही परम गुरु (परमात्मा) के स्वरूप सद्गुरु को अथवा सभी गुरु जनों में श्रेष्ठ संत सद्गुरु को बारंबार नमस्कार करता हूँ ॥१७- १८-१९-२०॥ 


टिप्पणी- १. 'पुरुषार्थ' ( पुरुष + अर्थ ) का अर्थ है - पुरुष का प्रयोजन, मनुष्य का प्राप्तव्य या लक्ष्य, मनुष्य की आवश्यकता । उद्योग या प्रयत्न को भी पुरुषार्थ कहते हैं। पुरुषार्थ चार माने गये हैं-अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष । कर्त्तव्य कर्मों का पालन करना धर्म है । धर्म का उद्देश्य है मोक्ष ( परमार्थ ) की प्राप्ति । सुख-शान्तिपूर्वक सांसारिक जीवन बिताने के लिए भी धर्म आवश्यक है। 'अर्थ' का मतलब है- धन-सम्पत्ति । काम (इच्छा, आवश्यकता) की पूर्ति के लिए अर्थ अर्जित किया जाता है । इस तरह हम देखते हैं कि अर्थ काम का और धर्म मोक्ष का साधन है और अन्ततः मनुष्य के दो ही पुरुषार्थ रह जाते हैं-काम और मोक्ष ( परमार्थ ) । पद्य में पुरुषार्थ और परमार्थ (मोक्ष) को दो रत्न कहकर उन्हें मनुष्य के लिए अत्यन्त आवश्यक माना गया है । जब परमार्थ (मोक्ष) चार पुरुषार्थों में से एक है और उसका अलग से कथन भी किया गया है, तब पद्य में आये पुरुषार्थ के अन्तर्गत अर्थ, धर्म और काम अथवा केवल काम को ही मानना उचित जँचता है। 

२. जिस मंत्र के द्वारा सर्प दंशित व्यक्ति का विष उतारा जाता है, उसे गारुड़ कहते हैं। 'गारुड़' का अर्थ है - गरुड़ संबंधी । गरुड़ साँप का शत्रु होता है। जिस मंत्र से शरीर में चढ़े हुए सर्प विष को उतारा जाता है, उसका देवता गरुड़ ही माना जाता है; इसीलिए उस मंत्र को गारुड़ कहते हैं । गारुड़ मंत्र के द्वारा विष उतारनेवाले व्यक्ति को गारुड़ी कहते हैं ।∆

पदावली की छंद-योजना, महर्षि मेंहीँ पदावली की छंद योजना,
पदावली की छंद-योजना

( पदावली के सभी छंदों के बारे में विशेष जानकारी के लिए पढ़ें-- LS14 महर्षि मँहीँ-पदावली की छन्द-योजना ) 



आगे है-


( १५ )

सद्गुरु नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं ।
                  सदाचारि पूरण सदानन्द रूपं ॥। १॥ 
तरुण मोह घन तम विदारण तमारी ।
                  तरण तारणंऽहं बिना तन विहारी ॥२॥
गुण त्रय अतीतं सु परमं पुनीतं । 
                   गुणागार   संसार  द्वन्द्वं   अतीतं ॥३॥
रुज संसृतं वैद्य परमं दयालु ।
                   रुलकर प्रभू मध्य  प्रभू ही कृपालुं ॥४॥
मननशील समशील अति ही गंभीरं । 
                    मरुत मदन मेघं सुयोगी सुधीरं ॥ ५ ॥.... 

पदावली भजन नं.15 "सद्गुरु नमो सत्य ज्ञानं स्वरूपं ।"को शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं  


महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित पुस्तक में भजन नंबर 15 निम्न प्रकार प्रकाशित है-

महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित भजन नंबर 14 क
पदावली भजन 14a

महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित भजन नंबर 14ख
पदावली भजन 14b

महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित भजन नंबर 14 ग
पदावली भजन 14c

महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित भजन नंबर 14 घ
पदावली भजन 14d

महर्षि मेंहीं-पदावली : शब्दार्थ-पद्यार्थ-सहित भजन नंबर 14डं
पदावली भजन 14e

"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित' पुस्तक में उपरोक्त भजन नंबर 3 का लेख निम्न प्रकार से प्रकाशित है--
"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित' भजन नंबर 14 क
पदावली भजन नंबर 13क


"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित भजन नंबर 14 ख'
पदावली भजन 14ख

"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित भजन नंबर 14ग
पदावली भजन 14ग

"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित भजन नंबर 14घ
पदावली भजन 14घ

"महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित भजन नंबर 14डं
पदावली भजन 14डं

महर्षि मँहीँ-पदावली सटीक में भजन नंबर 13 निम्न चित्रानुसार प्रकाशित है-
महर्षि मँहीँ-पदावली सटीक भजन नंबर 14 क
पदावली भजन 14f

महर्षि मँहीँ-पदावली सटीक भजन नंबर 14ख
पदावली भजन 14g

महर्षि मँहीँ-पदावली सटीक भजन नंबर 14ग
पदावली भजन 14h


महर्षि मँहीँ-पदावली सटीक भजन नंबर 14घ
पदावली भजन 14i



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