P73, Traikaalik Sandhya Vidhi aur upaasana "सांझ भये गुरु सुमिरो भाई।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित।
महर्षि मेंहीं पदावली / 73
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 73वां पद्य "सांझ भये गुरु सुमिरो भाई।...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
इस Santmat meditations भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "ऐन महल पट बंद कै।..." में बताया गया है कि- वैदिक धर्म में तीनों समय संध्या करने का आदेश है, उन्हीं बातों की चर्चा इस भजन में किया गया है,सांझ meaning in हिन्दी,सांझ का विलोम शब्द,सांझ,सांझ पर भजन,संध्या,संध्या आरती,भजन संध्या,संध्या वंदन में पूजा, आरती, प्रार्थना, वैदिक संध्या,वैदिक संध्या विधि,संध्योपासना विधि,संध्या उपासना,संध्या मंत्र इन संस्कृत,वैदिक संध्या,वैदिक संध्या उपासना, संध्या वंदन श्लोक, आदि बातें।
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त्रिकाल संध्या पर प्रवचन करते गुरुदेव
Traikaalik Sandhya Vidhi aur upaasana
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "हे भाइयों! प्रातः, दोपहर और सायंकाल होने पर आज्ञाचक्रकेंद्रबिंदु में अपनी सिमटी हुई चेतनवृत्ति को केंद्रित करके गुरु की उपासना करो। हां भाइयों! आज्ञाचक्रकेंद्रबिंदु में अपनी चेतनवृत्ति को केंद्रित करके अपने गुरु की ही उपासना करो।....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
पदावली भजन 73 और शब्दार्थ, भावार्थ। त्रिकाल संध्या।
पदावली भजन 73 का भावार्थ और टिप्पणी। संध्या, उपासना।
पदावली भजन 73 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी समाप्त।
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महत्वपूर्ण नोट-
* संध्या उपासना जीवन मे क्यों आवश्यक है । संध्या उपासना करने से आध्यात्मिक और भौतिक शक्तियों का विकास होता है |संध्या-वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। संधिकाल में ही संध्या, आरती, कीर्तन या भजन क्यों किया जाता था? इसका अलग ही महत्व है।
* संध्या के समय हमारी सब नाड़ियों का मूल आधार जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसका द्वार खुला हुआ होता है । इससे जीवनशक्ति, कुंडलिनी शक्ति के जागरण में सहयोग मिलता है । वैसे तो ध्यान-भजन कभी भी करो, पुण्यदायी होता है किन्तु संध्या के समय अवश्य ही करना चाहिए।
* संध्या का उपयोग दैनिक अनुष्ठान के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। जिसका आशय दिन के आरंभ और अस्त का समय।
* ध्यान अभ्यास शुरू करने के पहले किसी सच्चे गुरु से दीक्षा लेना अति आवश्यक है। नहीं तो इसमें कई तरह के नुकसान हो सकते हैं?
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 73 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आप ने जाना कि संध्या उपासना जीवन मे क्यों आवश्यक है । संध्या उपासना करने से आध्यात्मिक और भौतिक शक्तियों का विकास होता है |संध्या-वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
महर्षि मेँहीँ पदावली..
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प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 73वां पद्य "सांझ भये गुरु सुमिरो भाई।...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
इस Santmat meditations भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "ऐन महल पट बंद कै।..." में बताया गया है कि- वैदिक धर्म में तीनों समय संध्या करने का आदेश है, उन्हीं बातों की चर्चा इस भजन में किया गया है,सांझ meaning in हिन्दी,सांझ का विलोम शब्द,सांझ,सांझ पर भजन,संध्या,संध्या आरती,भजन संध्या,संध्या वंदन में पूजा, आरती, प्रार्थना, वैदिक संध्या,वैदिक संध्या विधि,संध्योपासना विधि,संध्या उपासना,संध्या मंत्र इन संस्कृत,वैदिक संध्या,वैदिक संध्या उपासना, संध्या वंदन श्लोक, आदि बातें।
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Traikaalik Sandhya Vidhi aur upaasana
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "हे भाइयों! प्रातः, दोपहर और सायंकाल होने पर आज्ञाचक्रकेंद्रबिंदु में अपनी सिमटी हुई चेतनवृत्ति को केंद्रित करके गुरु की उपासना करो। हां भाइयों! आज्ञाचक्रकेंद्रबिंदु में अपनी चेतनवृत्ति को केंद्रित करके अपने गुरु की ही उपासना करो।....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
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पदावली भजन 73 का भावार्थ और टिप्पणी। संध्या, उपासना। |
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* संध्या के समय हमारी सब नाड़ियों का मूल आधार जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसका द्वार खुला हुआ होता है । इससे जीवनशक्ति, कुंडलिनी शक्ति के जागरण में सहयोग मिलता है । वैसे तो ध्यान-भजन कभी भी करो, पुण्यदायी होता है किन्तु संध्या के समय अवश्य ही करना चाहिए।
* संध्या का उपयोग दैनिक अनुष्ठान के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। जिसका आशय दिन के आरंभ और अस्त का समय।
* ध्यान अभ्यास शुरू करने के पहले किसी सच्चे गुरु से दीक्षा लेना अति आवश्यक है। नहीं तो इसमें कई तरह के नुकसान हो सकते हैं?
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Reviewed by सत्संग ध्यान
on
1/07/2020
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