महर्षि मेंहीं पदावली / 119
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 119वां पद्य "घटवा घोर रे अंधारी,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज, पूज्यपाद संतसेवी जी महाराज और पूज्यपाद श्रीधर दास जी महाराज नेे किया है।
इस Santmat meditations भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "घटवा घोर रे अंधारी,..." में बताया गया है कि- मायावद्ध जीव की स्थिति कैसी होती है और वह इससे कैसे छुटकारा पा सकती है? इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नें भी विचारनीय हैं- सत्संग ध्यान,महर्षि मेंहीं पदावली, भजन अर्थ सहित, कुप्पाघाट का भजन, घटवा घोर रे अंधारी, मायावद्ध जीव की स्थिति, मायावद्ध जीव सद्गुरु और ईश्वर, दृष्टि योग, शब्द योग, जीव की मुक्त दशा, Ghor Andhari Re,Maharshi menhi bhajan,घटवा घोर रे अंधारी,Santmat bhajan,जीव मायावद्ध है,Pure Bhakti,Adhyatma Padavali,मुक्त की दशा,मोक्ष की अवधि,मोक्ष की प्राप्ति, दर्शन में मोक्ष,जीव किसे कहते है,जीव।
इस पद्य के पहले वाले पद्य को पढ़ने के लिए
यहां दबाएं।मायावद्ध जीव की स्थिति का वर्णन करते गुरुदेव। |
Living conditions of creatures
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "शरीर के अंदर अत्यंत घना अंधकार छाया हुआ है; जीव इस अंधकार में पड़कर अज्ञानी हो गया है; उसकी अपनी सारी सुध-बुध (अपने आदिवास और स्वरूप की स्मृति) खत्म हो गई है और वह तमोगुण से बिल्कुल जकड़ गया है।...." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
पदावली भजन 119 और शब्दार्थ। |
पदावली भजन 119 का भावार्थ और टिप्पणी। |
मायावद्ध जीव की स्थिति का वर्णन। |
जीव की परम गति का वर्णन। |
मायावद्ध जीव, सद्गरु और ईश्वर |
इस भजन के बाद वाले पद्य को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 119 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि मायावद्ध जीव की स्थिति कैसी होती है और वह इससे कैसे छुटकारा पा सकती है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. |
अगर आप 'महर्षि मेँहीँ पदावली' पुस्तक के अन्य पद्यों के अर्थों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से समझना चाहते हैं तो
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए 👉 यहां दवाएँ
---×---
P119, Living conditions of creatures "घटवा घोर रे अंधारी,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित।
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
3/03/2020
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।