संत सूरदास की वाणी / 09
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "रे मन मूरख जनम गँवायो,... ' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
महर्षि पतंजलि कहते हैं कि संसार असत्य है, संसार अनित्य है, संसार अनात्म है जो इस वास्तविकता को समझ लेते हैं वे संसार से विरक्त हो जाते हैं। इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "रे मन मूरख जनम गँवायो,..." में भक्त संत श्री सूरदास जी महाराज ने बताया है कि- " अरे मूर्ख मन! तूने जीवन खो दिया। अभिमान करके विषय-सुखों में लिप्त रहा, श्यामसुन्दर की शरण में नहीं आया। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातों का भी कुछ-न-कुछ समाधान हुआ है जैसे कि- संसार की वास्तविकता का परिचय, मूढ़ संसार 'एक वास्तविक सच' कहानी, पुराने जमाने में एक राजा की कहानी, सारे संसार को लोभ ही प्रिय है-वास्तविक व्यापारी, कविता कोश भारतीय काव्य,मूर्ख अर्थ, मूर्ख in हिन्दी,मूर्ख in English, मूर्ख व्यक्ति,मूर्ख कौवा, मूर्ख का पर्यायवाची, मूर्ख समानार्थी शब्द मराठी,मूर्ख से बहस,मूर्ख की परिभाषा,मूर्ख शेर,मूर्ख का विलोम शब्द,मूर्ख चुड़ैल, इत्यादि बातों को समझने के पहले आइए भक्त सूरदास जी का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "प्रभु मेरे औगुन चित न धरो..." को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Reality of the world
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "अरे मेरे नासमझ मन ! तुमने ईश्वर की भक्ति किये बिना व्यर्थ ही अपना जीवन बिता दिया । अहंकार से भरा हुआ होकर तुम पंच विषयों के सुख में सदा ही आसक्त रहे और तुमने कभी ईश्वर के नाम की शरण ग्रहण नहीं की अर्थात् तुमने कभी समर्पित होकर ईश्वर के वर्णात्मक नाम के जप तथा ध्वन्यात्मक नाम के ध्यानाभ्यास की साधना नहीं की ।...." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी के भजन
( मूल पद्य )
रे मन मूरख जनम गँवायो । कर अभिमान विषय सों राच्यो , नाम सरन नहिं आयो ॥१ ॥यह संसार फूल सेमर को , सुन्दर देखि लुभायो । चाखन लाग्यो रूई उड़ि गइ , हाथ कछू नहिं आयो ॥२ ॥ कहा भयो अबके मन सोचे , पहिले नाहिं कमायो । सूरदास हरि नाम भजन बिनु , सिर धुनि धुनि पछितायो ॥३ ॥
शब्दार्थ - राच्यो = अनुरक्त हुआ , प्रेम किया , लीन हुआ । सिर धुनि धुनि = सिर पीट - पीटकर ।
भावार्थ - अरे मेरे नासमझ मन ! तुमने ईश्वर की भक्ति किये बिना व्यर्थ ही अपना जीवन बिता दिया । अहंकार से भरा हुआ होकर तुम पंच विषयों के सुख में सदा ही आसक्त रहे और तुमने कभी ईश्वर के नाम की शरण ग्रहण नहीं की अर्थात् तुमने कभी समर्पित होकर ईश्वर के वर्णात्मक नाम के जप तथा ध्वन्यात्मक नाम के ध्यानाभ्यास की साधना नहीं की ॥१ ॥ सेमर के सुन्दर फूल को देखकर तथा उसे खानेयोग्य समझकर जब कोई पक्षी उसमें चोंच मारता है , तो उस फूल से नीरस रूई निकल आती है - यह देखकर वह पक्षी निराश हो जाता है । इसी प्रकार संसार के विषयों को आनन्ददायक समझकर मनुष्य उनमें आसक्त होता है और उनका सेवन करता है । सेवन के बाद जब उसे विषय - सुख के सेवन की हानिकारकता ज्ञात हो जाती है , तब वह पछताने लगता है कि उसे तो विषय - सुख के सेवन का कोई वास्तविक लाभ ही नहीं हुआ ॥२ ॥ भक्त प्रवर सूरदासजी कहते हैं कि अरे मेरे मन ! तुमने पहले ( युवावस्था में ) जब ईश्वर - भक्ति की कमाई नहीं की , तो अब बुढ़ापे में पछतावा करने से तुम्हें क्या मिलेगा ! ईश्वर के नाम की भक्ति किये बिना तो तुम्हें परलोक ( नरक ) में सिर धुन - धुनकर पछताना पड़ेगा ॥३ ॥ इति।।
इस भजन के बाद वाले पद्य "मो सम कौन कुटिल खल कामी,..." को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि अरे मूर्ख मन! तूने जीवन खो दिया। अभिमान करके विषय-सुखों में लिप्त रहा, श्यामसुन्दर की शरण में नहीं आया। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 09, Reality of the world । रे मन मूरख जनम गँवायो । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/02/2020
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