सूरदास 10, devotee and God । मो सम कौन कुटिल खल कामी । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं

संत सूरदास की वाणी  / 10

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त  सूरदास जी महाराज  की वाणी " मो सम कौन कुटिल खल कामी,... '  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे। 

भगवान के सम्मुख भक्त अपने को कुछ न माने, नम्रता भक्त के स्वभाव की विशेषता होती है। नम्रता युक्त जीवन संत की पहचान है। प्रेम, नम्रता और सब्र ही सच्चे भक्त की पहचान है। इसी नम्रता को प्रकट करते हुए भक्त संत सूरदास जी महाराज  भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "मो सम कौन कुटिल खल कामी ,..." में कहते है-। " मेरे समान टेढ़ा , दुष्ट और कामी इस संसार में कौन होगा ! हे दयालु भगवन् ! आपसे कौन - सी बात छिपी हुई है , आप तो सबके हृदय की बातें जाननेवाले हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातों पर भी कुछ-न-कुछ चर्चा आपको इस पोस्ट में मिलेगा। जैसे कि-   भक्त और भगवान, भजन कीर्तन गाना, भक्त और भगवान की सच्ची घटना, भक्ति कथाएं, भक्त और भगवान की कथा सुरेशानंदजी, भगवान का भजन, भक्त के बस में है भगवान, भक्त और भगवान का भजन,भक्ति भजन,भक्त और चमचे में अंतर,सच्चे भक्त की कहानी, कृष्ण भगवान की सच्ची घटना, भगवान की भक्ति,मो सम कौन कुटिल खल कामी,नम्रता युक्त जीवन संत की पहचान, प्रेम-नम्रता और सब्र ही सच्चे भक्त की पहचान, इत्यादि बातों को समझने के पहले आइए भक्त सूरदास जी का दर्शन करें। 

इस भजन के पहले वाले पद्य  "रे मन मूरख जनम गँवायो ।..." को पढ़ने के लिए     यहां दबाएं।

नम्रता का भाव प्रकट करते हुए भक्त सूरदास जी महाराज और टीकाकार
नम्रता के भाव प्रकट करते भक्त सूरदास और टीकाकार

Devotee and God

भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "मेरे समान टेढ़ा , दुष्ट और कामी इस संसार में कौन होगा ! हे दयालु भगवन् ! आपसे कौन - सी बात छिपी हुई है , आप तो सबके हृदय की बातें जाननेवाले हैं।...." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी

।। मूल पद्य ।।

 मो सम कौन कुटिल खल कामी ।
 तुम सौं कहा छिपी करुनामय , सबके अन्तरजामी ॥१ ॥ जो तन दियौ ताहि बिसरायौ , ऐसो नोनहरामी ।
भरि भरि उदर विषै कौं धावत , जैसें सूकरग्रामी ॥२ ॥ सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयिनि सँग बिसरामी । श्रीहरि चरन छाँड़ि बिमुखन की, निसिदिन करत गुलामी ॥३ ॥ पापी परम अधम अपराधी , सब पतितनि मैं नामी । सूरदास प्रभु अधम उधारन , सुनियै श्रीपति स्वामी ॥४ ॥

 शब्दार्थ - मो सम = मेरे समान । कुटिल = टेढ़ा , छली , कपटी , खोटा । खल = दुष्ट । करुनामय = करुणामय , दयामय , दयालु । अन्तरजामी = अन्तर्यामी ।धावत- सबके हृदय की बात जाननेवाला । नोन हरामी = नमकहरामी , कृतन , किसी के किये हुए उपकार को न माननेवाला या भुला देनेवाला । उदर = दौड़ता है । कौं = को , के , लिए , की ओर । सूकर = शूकर , सुअर । ग्रामी = ग्राम का , गाँव का । जिय = जी , हृदय , मन । बिसरामी = विश्रामी , विश्राम करनेवाला , सुख - चैन माननेवाला , आनन्द करनेवाला । परम अधम = अत्यन्त नीच । नामी प्रसिद्ध । श्रीपति = लक्ष्मीपति , विष्णु , राम , कृष्ण । 

 भावार्थ - मेरे समान टेढ़ा , दुष्ट और कामी इस संसार में दूसरा कौन होगा ! हे दयालु भगवन् ! आपसे कौन - सी बात छिपी हुई है , आप तो सबके हृदय की बातें जाननेवाले हैं।॥१ ॥ जिस परमात्मा ने मुझे कृपा करके ऐसा महत्त्वपूर्ण मानव - शरीर प्रदान किया , उसे ही मैंने भुला दिया ; मैं ऐसा नमकहरामी ( कृतघ्न ) निकला । जैसे गाँव का सुअर पेट भरा हुआ रहने पर भी विष्ठा को देखकर उसे खाने के लिए उसकी ओर दौड़ पड़ता है , उसी प्रकार मैं भी विषय - सुखों का अत्यधिक सेवन करने पर भी उससे तृप्त नहीं हो पाता हूँ , बारंबार उनके सेवन में लग जाया करता हूँ ॥२ ॥ सत्संग मुझे सुहाता नहीं है । सत्संग के वचनों को सुनने के लिए जब मैं बैठता हूँ , तो मेरे मन में आलस्य ( अरुचि ) पैदा हो जाता है और नींद आने लगती है । मुझे विषयी लोगों के साथ बैठने - उठने में बड़ा आनन्द मिलता है । भगवान् के चरणों की भक्ति करना छोड़कर भगवान् की भक्ति से विमुख रहनेवाले लोगों की रात - दिन सेवा - टहल करना या आगे - पीछे करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है ॥३ ॥ मैं बड़ा पापी , अत्यन्त नीच और बड़ा अपराधी हूँ । सब पापी लोगों में मैं सबसे अधिक नामी ( प्रसिद्ध ) पापी हूँ । संत सूरदासजी कहते हैं कि हे प्रभु ! हे स्वामी ! हे लक्ष्मीपति ! सुनिये , आप पापियों का उद्धार करनेवाले हैं , मुझ पापी का भी उद्धार कर दीजिए।॥४ ॥ इति।

इस भजन के  बाद वाले पद्य को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।

बिशेष-  नीति शतक में कहा गया है-
सुजन - पद्धतिः वाञ्छा सज्जनसङ्गमे परगुणे प्रीतिगुरौ नम्रता विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिर्लोकापवादाद् - भयम् । भक्तिः शूलिनि शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले येष्वेते निवसन्ति निर्मलगुणास्तेभ्यो नरेभ्यो नमः ॥६२ ॥

 अन्वय - अर्थ - ( जिनकी ) सज्जनसङ्गमे ( सत्पुरुषों का संग करने की ) वाञ्छा ( इच्छा ) ( है ) , ( जिन्हें ) परगुणे ( दूसरों के गुणगान में ) प्रीतिः ( सुख ) ( मिलता है ) , ( जिनका ) गुरौ ( गुरु के प्रति ) नम्रता ( विनम्रता का भाव है ) , ( जिन्हें विद्यायां ( विद्याओं का ) व्यसनम् ( व्यसन है ) , स्वयोषिति ( स्व - पत्नी से ) रतिः ( प्रेम है ) , लोकापवादात् ( लोकनिन्दा से ) भयम् ( भय है ) , शूलिनि ( शूलपाणि शिव में ) भक्तिः ( भक्ति है ) , ( जिनमें ) आत्मदमने ( आत्मसंयम की ) शक्तिः ( क्षमता है ) , ( जो ) खले ( दुष्टों के ) संसर्गमुक्तिः ( संसर्ग से मुक्त है ) - एते ( ये ) निर्मल - गुणाः ( निर्मल गुण ) येषु ( जिनमें ) निवसन्ति ( निवास करते है ) , तेभ्यः ( उन ) नरेभ्यः ( मनुष्यों को ) ( हमारा ) नमः ( प्रणाम है ) ॥

 भावार्थ - जो लोग सत्पुरुषों का संग करने की इच्छा करते है , दूसरों के गुणों में आनन्द प्रकट करते है , गुरुजन के प्रति नम्रता का भाव रखते है , विद्या के व्यसन में डूबे रहते है , अपनी पत्नी के प्रति अनुराग रखते हैं , लोकनिन्दा से डरते है , त्रिशूलधारी शिव की भक्ति करते है , स्वयं को आत्मसंयम में रखते हैं, जो दुष्टों के संसर्ग से मुक्त है, ये निर्मल गुण  जिनमें निवास करते हैं, उन मनुष्यों को हमारा प्रणाम है।।

ऐसे श्लोकों को सुनने के बाद जो हृदय में भाव उत्पन्न होता है, उस भाव में विभोर होकर भक्त सूरदास जी महाराज के जैसे भावुक संत हृदय के मुख से ऐसी वाणी, ऐसे भजन निकले यह स्वभाविक ही है।

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि मेरे समान टेढ़ा , दुष्ट और कामी इस संसार में कौन होगा ! हे दयालु भगवन् ! आपसे कौन - सी बात छिपी हुई है , आप तो सबके हृदय की बातें जाननेवाले हैं इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित

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सूरदास 10, devotee and God । मो सम कौन कुटिल खल कामी । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं सूरदास 10, devotee and God । मो सम कौन कुटिल खल कामी । भजन भावार्थ सहित ।  -महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/02/2020 Rating: 5

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