सूरदास 13, Importance of dignity । तुम मेरी राखो लाज हरी । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं

संत सूरदास की वाणी  / 13

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त  सूरदास जी महाराज  की वाणी "तुम मेरी राखो लाज हरी  ,...'  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे। 

 इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "तुम मेरी राखो लाज हरी । ,..." में बताया गया है कि-  "मर्यादा के मार्मिक अर्थ है  -न्याय मार्ग में स्थित, सीमा, नीति का बंधन, निश्चित प्रथा आदि। मर्यादा में रहने और नम्र होने के बीच क्या नाता है?  जो हमारे जीवन को शोभायमान बनाती है, उसको बंधन नही समझे बल्कि जिंदगी जीने की शैली समझे, यही है मर्यादा का महत्व,जीते हैं मर्यादित जीवन, रहते हैं मर्यादा में ही सदा उन्हीं का जीवन सफल है। मर्यादा, सम्मान और प्रतिष्ठा पर अनमोल विचार.पुरूषों की मर्यादा की कोई सीमा नहीं?  इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान बताया गया है। जैसे कि-  मर्यादा का अर्थ हिन्दी मे, मर्यादा का पर्यायवाची, मर्यादा का अर्थ इन इंग्लिश, मर्यादा का उल्लंघन का अर्थ, मर्यादा पर विचार, मर्यादा synonyms, दुरुपयोग का पर्यायवाची, मर्यादा पुरुषोत्तम का अर्थ, मर्यादा क्या है, मर्यादा का अर्थ, स्त्री की मर्यादा, निंदा पर सुविचार,, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें। 

इस भजन के पहले वाले पद्य  "सब दिन होत न एक समान," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  यहां दबाएं।


मर्यादा के संबंध में भजन गाते हुए भक्त सूरदास जी महाराज और टीकाकार।
भक्त सूरदास जी महाराज भजन गाते हुए

Importance of dignity

भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "हे हरि ( हे श्रीकृष्ण , हे भगवन् ) ! आप मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए । हे अन्तर्यामी ! आप सबके हृदयों की सब बातें जाननेवाले हैं , मेरे हृदय की भी बातें जानते हैं कि मैंने कभी कुछ भी सत्कर्म नहीं किया।..."   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें,-

भक्त सूरदास जी महाराज के वाणी

।। मूल पद्य।।


 तुम मेरी राखो लाज हरी ।
 तुम जानत सब अंतरजामी , करनी कछु न करी ॥१ ॥
 औगुन मोसे बिसरत नाही , पल छिन घरी घरी ।
 सब प्रपंच की पोट बाँधि करि , अपने सीस धरी ॥२ ॥
 दारा सुत धन मोह लियो है, सुधि बुधि सब बिसरी ।
 सूर पतित को बेगि उबारो ,   अब मेरी नाव भरी ॥३ ॥

 शब्दार्थ - राखो = रखो , रक्षा करो , बचाओ । लाज = लज्जा , प्रतिष्ठा । अन्तरजामी = अन्तर्यामी , सबके भीतर रहनेवाला , सबके हृदय की बात जाननेवाला , परमात्मा । करनी = काम , क्रिया । बिसरना = विस्मृत करना , भुलाना , दूर करना । घड़ी = दिन - रात का ६० वाँ भाग , २४ मिनट का समय । क्षण = पल का चौथाई भाग । पल = २४ सेकेण्ड का समय । प्रपंच = माया , संसार , उलझन , छल - कपट , झमेला , आडम्बर । पोट = पोटली , गठरी । दारा = पत्नी । मोह लियो है - मोहित कर लिया है , आकर्षित कर लिया है , आसक्त कर लिया है , अज्ञानी बना दिया है । सुधि = सुध , होश - हवास , चेतना , ज्ञान । बुधि = बुद्धि , विवेक , विचार । पतित - जो नीच गिरा हुआ हो , पापी , अधमा बेगि = वेग , शीघ्र । उबारो = बचाओ ।

 भावार्थ - हे हरि ( हे श्रीकृष्ण , हे भगवन् ) ! आप मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए । हे अन्तर्यामी ! आप सबके हृदयों की सब बातें जाननेवाले हैं , मेरे हृदय की भी बातें जानते हैं कि मैंने कभी कुछ भी सत्कर्म नहीं किया ॥१ ॥ पल , क्षण या एक घड़ी के लिए भी मैं अपने अवगुणों ( दोषों ) को छोड़ नहीं पाता हूँ । मैंने अपने सारे पापों की पोटली बाँधकर उसे अपने सिर पर धारण कर लिया है अर्थात् अपने द्वारा किये गये अत्यधिक पापों के फलस्वरूप कष्ट भोग रहा ।।2।।  पत्नी, पुत्र , धन - संपत्ति आदि ने मेरे मन को अपनी ओर खींच लिया है , इसी के चलते मैंने अपनी सब सुध - बुध ( होश - हवास , ज्ञान ) को गंवा दिया है । संत सूरदासजी कहते हैं कि हे भगवन् ! आप मेरा शीघ्र उद्धार कर दीजिए । अब मेरी जीवन - नैया पापरूपी जल से भर गयी है और वह डूबना ही चाहती है।।३ ।। इति।

इस भजन के  बाद वाले पद्य " छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग" को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि मर्यादा के मार्मिक अर्थ है  -न्याय मार्ग में स्थित, सीमा, नीति का बंधन, निश्चित प्रथा आदि। मर्यादा में रहने और नम्र होने के बीच क्या नाता है? । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 13, Importance of dignity । तुम मेरी राखो लाज हरी । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं सूरदास 13, Importance of dignity । तुम मेरी राखो लाज हरी  । भजन भावार्थ सहित ।  -महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/02/2020 Rating: 5

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