संत सूरदास की वाणी / 12
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "सब दिन होत न एक समान,...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "सब दिन होत न एक समान ,..." में बताया गया है कि- "वह व्यक्ति जो समय के महत्व को समझता है, वही इसका सही उपयोग कर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है । समय को व्यर्थ मत गवाओ और समय के महत्व को समझो । क्योंकि जीवन इसी से बना है । "समय चूकि पुनि का पछिताने? ” प्रतिस्पर्धा के आधुनिक युग में तो समय की महत्ता और भी बढ़ गई है । मनुष्य का जीवन तभी सफल होता है, जब वह अपने समय के हर क्षण का उपयोग करता है । समय के सदुपयोग की सबसे अच्छी विधि है। प्रत्येक कार्य को को करने के लिए उसके अनुकूल समय तय करना तथा समय के अनुकूल कार्य को निर्धारित करना। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान बताया गया है। जैसे कि- सूरदास जी, सूरदास की भक्ति भावना, सूरदास तस्वीरें, सूरदास का काव्य सौन्दर्य, सूरदास - कविता कोश, सूरदास की भाषा शैली, आशा एक राम जी से,एकनिष्ठ भक्ति के उदाहरण, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "तुम तजि और कौन पै जाऊँ," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Good use of time
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "सब दिन किसी की भी एक - जैसी स्थिति नहीं रहती।टेक । एक समय राजा हरिश्चन्द्र के पास सुमेरु पर्वत के समान अपार संपत्ति थी । एक समय उनके जीवन में ऐसी स्थिति आयी कि उन्हें काशी के एक डोम के घर सेवक बनना पड़ा और गंगा के किनारे श्मशान घाट में मुर्दे जलानेवालों से कफन माँगने का काम करना पड़ा ।...." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी के भजन
।। मूल पद्य ।।
सब दिन होत न एक समान ।टेक ॥
एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह , सम्पति मेरु समान ।
एक दिन जाय श्वपच गृह सेवक, अम्बर हरत मसान ॥१ ॥
एक दिन दूलह बनत बराती , चहु दिसि गड़त निसान ।
एक दिन डेरा होत जंगल में , कर सूधे पग तान ॥२ ॥
एक दिन सीता रुदन करत है , महा विपिन उद्यान ।
एक दिन रामचन्द्र मिलि दोऊ , विचरत पुष्य विमान ॥३ ॥
एक दिन राजा राज युधिष्ठिर , अनुचर श्री भगवान ।
एक दिन द्रौपदि नगन होत है , चीर दुशासन तान ॥४ ॥
प्रगटत है पूरब की करनी , तज मन सोच अजान ।
सूरदास गुन कहँ लगि बरनौं , विधि का अंक प्रमान ॥५ ॥
शब्दार्थ - मेरु - सुमेरु पर्वत जो बहुत विस्तृत , ऊँचा और सोने का बना हुआ बताया जाता है । संपति मेरु समान = सुमेरु पर्वत के समान संपत्ति , अपार संपत्ति । श्वपच - डोमा अंबर = वस्त्र , कफन । मसान = श्मशान - भूमि । निसान - निशान , डंका , नगाड़ा ; देखें- “ पंच सबद धुनकार धुन , बाजत गगन निसाना " ( संत कबीर साहब ) । कर हाथ । सूधे = सीधा । पग = पाँव , पैर । तान = तानकर , फैलाकर , फैला हुआ । रुदन = रोदन , रोना , विलाप , क्रंदन । महाविपिन = बड़ा जंगला उद्यान = बगीचा , वाटिका । पुष्प विमान = पुष्पक विमान , कुबेर का विमान जिसे रावण ने छीन लिया था । रामचन्द्रजी ने रावण से छीनकर कुबेर को लौटा दिया था । अनुचर = पीछे - पीछे चलनेवाला , सेवक , साथी । चीर = वस्त्र , कपड़ा । तान = ताना , खींचा । पूरब की = पहले अजान = अज्ञानी । विधि = विधाता , ब्रह्मा । अंक = लेख , भाग्यलेख । प्रमान - प्रमाण , सच्चा , अमिट ।
भावार्थ- सब दिन किसी की भी एक - जैसी स्थिति नहीं रहती।टेक । एक समय राजा हरिश्चन्द्र के पास सुमेरु पर्वत के समान अपार संपत्ति थी । एक समय उनके जीवन में ऐसी स्थिति आयी कि उन्हें काशी के एक डोम के घर सेवक बनना पड़ा और गंगा के किनारे श्मशान घाट में मुर्दे जलानेवालों से कफन माँगने का काम करना पड़ा ॥१ ॥ युवावस्था में एक दिन मनुष्य सज - सजकर दूल्हे का वेश बनाता है और बरातियों के साथ विवाह के लिए प्रस्थान करता है ; उस समय विवाह होने की प्रसन्नता मे ं नगाड़ा , शहनाई आदि वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं , जिनकी ध्वनियों से चारो दिशाएँ गुंजायमान हो उठती हैं । जीवन के अन्तिम समय में एक दिन उसी दूल्हे का निवास जंगल में हो जाता है , जहाँ उसे दोनों हाथों को सीधा करके और दोनों पैरों को फैलाकर जमीन पर पड़ा रहना होता है ॥२ ॥ एक दिन सीताजी रावण के द्वारा हरी जाकर लंका की बड़ी अशोक वाटिका में रखी जाती हैं , जहाँ वे श्रीराम के वियोग में बहुत अधिक विलाप करती हैं । एक दिन वे ही सीताजी रावण की अधीनता से छुड़ायी जाती हैं और श्रीराम के साथ पुष्पक विमान पर बैठकर तथा आकाश - मार्ग से विचरण करती हुई अयोध्या आती हैं ॥३ ॥ एक दिन युधिष्ठिरजी हस्तिनापुर के राजा थे , जो अपने भाइयों सहित भगवान् श्रीकृष्ण की बातों पर चलनेवाले थे । एक दिन युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन आदि पाँचो पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी को भरी सभा में दुर्योग्धन के भाई दुःशासन के द्वारा वस्त्र खींचकर नग्न करने का प्रयास किया जाता है ॥४ ॥ संत सूरदासजी कहते हैं कि पहले का किया हुआ कर्म ही उसके फल के रूप में प्रकट होता है । इसलिए अरे अज्ञानी मन ! तुम शोक ( चिन्ता ) करना छोड़ दो । फिर संत सूरदासजी कहते हैं कि मैं समय का स्वभाव कहाँ तक वर्णन करके कहूँ ! ब्रह्माजी के द्वारा लिखा गया किसी का भी भाग्य - लेख अमिट होता है ॥५ ॥
इस भजन के बाद वाले पद्य "तुम मेरी राखो लाज हरी" को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि समय को व्यर्थ मत गवाओ और समय के महत्व को समझो । क्योंकि जीवन इसी से बना है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 12, good use of time । सब दिन होत न एक समान । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/02/2020
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