सूरदास 14, Association Hindi Short Story । छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं
संत सूरदास की वाणी / 14
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संत-भजनावली सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग ,...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग । ,..." में बताया गया है कि- "व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। मानव एक समाजिक प्राणी है उसे इस समाज में जिन्दा रहने और अपनी जरूरतों को पूरा करने करने के लिए दूसरों का संगति करता है। यह कभी भी नहीं हो सकता है कि मनुष्य कुसंगति के प्रभाव से बच सकता है? संगति का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| अतः हरि भक्तों को हरि विमुखों का संघ नहीं करना चाहिए। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान बताया गया है। जैसे कि- सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे,व्यक्ति योगियों के साथ, कुसंगति का प्रभाव, संगत का प्रभाव, जीवन में अच्छे मित्रों की संगति का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है, सत्संगति पर निबंध इन हिंदी,कुसंगति का प्रभाव पर कहानी, संगति पर दोहे, सत्संगति का महत्व, सत्संगति के लाभ, सत्संगति क्या है, सत्संगति सब विधि हितकारी, संगति का अर्थ, संगति का असर in हिंदी, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "तुम मेरी राखो लाज हरी," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Association Hindi Short Story
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "ऐ मेरे मन ! तुम ईश्वर की भक्ति से विमुख ( दूर ) रहनेवाले लोगों की संगति छोड़ दो । ईश्वर की भक्ति से विमुख रहनेवाले लोगों की संगति में रहने से बुरी बुद्धि ( तामसी बुद्धि ) उत्पन्न होती है और भजन - ध्यान में बाधा पहुँचती है ।..." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी
।। मूल पद्य।।
छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग ।
जिनके संग कुबुधि उपजत है , परत भजन में भंग ॥१ ॥ कहा होत पय पान कराये, विष नहिं तजत भुजंग । कागहि कहा कपूर चुगाये , स्वान न्हवाये गंग ॥२ ॥
खर को कहा अरगजा लेपन , मरकट भूषन अंग ।
गज को कहा न्हवाये सरिता , बहुरि धरै खहि छंग ॥३ ॥ पाहन पतित बान नहिं बेधत , रीतो करत निषंग ।
सूरदास खल कारी कामरि , चढ़त न दूजो रंग ॥४ ॥
शब्दार्थ - बिमुखन = विमुख रहनेवाले , दूर रहनेवाले , उदासीन रहनेवाले । हरि - विमुखन = परमात्मा की भक्ति से दूर रहनेवाले । भंग = बाधा । पय = दूध । भुजंग साँप । काग = कौआ । हि = को । कपूर = कर्पूर , उजले रंग का एक सुगंधित द्रव्य जो बाहर रखने पर कुछ दिनों में उड़ जाता है । स्वान = श्वान , कुत्ता । न्हवाये नहवाने से । अरगजा = एक सुगंधित द्रव्य जो केसर , चन्दन , कपूर आदि मिलाकर बनाया जाता है । लेपन = लेप , लेपने - पोतने की क्रिया , उबटन । मरकट मर्कट , बन्दर । भूषण = गहना , शोभा बढ़ानेवाली कोई चीज । अंग = शरीर । गज हाथी । सरिता = नदी । बहुरि = फिर । खहि = खेह , खाक , धूल , मिट्टी । छंग उछंग , गोद , हृदय , छाती ; यहाँ अर्थ है- मस्तक या शरीर । पाहन = पाषाण , पत्थर । पतित = जो नीचे गिरा हुआ हो , दुष्ट , पापी , अधम । बेधत = भेदता है , छेदता है । रीतो = रीता , रिक्त , खाली । निषंग = तरकश , तीर रखने का चोगा । खल दुष्ट । कारी = काली । कामरि = कामरी , कंबल । दूजो = दूसरा ।
भावार्थ- ऐ मेरे मन ! तुम ईश्वर की भक्ति से विमुख ( दूर ) रहनेवाले लोगों की संगति छोड़ दो । ईश्वर की भक्ति से विमुख रहनेवाले लोगों की संगति में रहने से बुरी बुद्धि ( तामसी बुद्धि ) उत्पन्न होती है और भजन - ध्यान में बाधा पहुँचती है ॥१ ॥ साँप को दूध पिलाने से क्या लाभ , वह दूध पिलाये जाने पर भी विष का त्याग नहीं करता अर्थात् दूध पिलाये जाने पर भी दूध पिलानेवाले को डंसना नहीं छोड़ता । कौए को कपूर खिलाकर उसका मुख सुगंधित करने से क्या लाभ , वह फिर विष्ठा खाकर अपने मुख को दुर्गधित करेगा ही । कुत्ते को गंगा - स्नान कराने से क्या लाभ , गंगा - स्नान कराने पर भी उसके शरीर की दुर्गंध जानेवाली नहीं।।२ ।। गदहे के शरीर में अरगजा का लेपन करके उसके शरीर को सुगंधित करने से क्या लाभ , वह तो फिर धूल में लोट - पोट करेगा ही । बन्दर के शरीर में वस्त्र और गहने पहनाने से क्या लाभ , पीछे वह वस्त्रों को चीर - फाड़कर और गहनों को तोड़ - फोड़कर फेंकेगा ही । इसी प्रकार हाथी को किसी नदी में स्नान कराकर पवित्र करने से क्या लाभ , वह तो पीछे अपनी सूंड से मस्तक या शरीर पर धूल डालेगा ही ॥३ ॥ पत्थर पर वाण चलाते - चलाते कोई चाहे अपना तरकश खाली क्यों न कर डाले , पत्थर में छेद नहीं हो सकता । इसी प्रकार कोई दुष्ट को सुधारने के लिए उसे चाहे लाख उपदेश करे , उस उपदेश का उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । अन्त में संत सूरदासजी कहते हैं कि दुष्ट काले कंबल की तरह होता है । जिस प्रकार काले कंबल पर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ पाता , उसी प्रकार दुष्ट पर अच्छी शिक्षा का कभी प्रभाव नहीं पड़ता ॥४ ॥ इति।
इस भजन के बाद वाले पद्य " मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै" को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 14, Association Hindi Short Story । छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग । भजन भावार्थ सहित । -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/03/2020
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