नानक वाणी 07 । Certification of inter-light by yoga । भजन- तारा चड़िया लंमा । भावार्थ सहित -महर्षिमेंहीं
गुरु नानक साहब की वाणी / 07
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''तारा चड़िया लंमा,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज नेे किया हैै। उसी के बारे में यहांं चर्चा किया जा रहा है।
संत सद्गुरु नानक साहब जी महाराज की इस मेडिटेशन भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "तारा चड़िया लंमा,..." में बताया गया है कि- आंख बंद करने पर जो अंधकार दिखाई पड़ता हैै। उसमें योग युक्ति से देखने पर प्रकाश का भी दर्शन होता हैै। इस बात की साक्षी गुरु नानक साहिब भी हैं। इसके साथ ही निम्न प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ उत्तर आपको मिलेगा। जैसे कि गुरु नानक की वाणी, नानक शब्द, गुरु नानक की वाणी हिंदी में, गुरु नानक के उपदेश,गुरु नानक देव के अनमोल विचार, गुरु नानक देव शब्द, गुरु नानक दे शब्द,गुरु नानक दी गुरबाणी, गुरु नानक देव जी के भजन, गुरु नानक की योग-साधना,गुरु नानक देव जी की वाणी, गुरु नानक के दोहे, गुरु नानक जी के भजन, शब्द कीर्तन, पंजाबी शब्द, गुरबाणी बाबे नानक दी, आदि बातें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''काइआ नगरु नगर गड़ अंदरि,।..'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Certification of inter-light by yoga
महान ज्ञानी संत श्री गुरु नानक देव जी महाराज कहते है कि '"मैं फाँदकर तारे पर चढ़ा । ( यह साधना - अनुभूति की बात है । साधक अन्धकार - मण्डल को टपकर अन्तराकाश के तारक ब्रह्मलोक में पहुंचता है । ) दर्शन किया और राम ने मेरे मनोरथ को पूर्ण किया । सेवकाई के कर्मों से पूर्ण सेवक ने सद्गुरु राम के शब्द को पहचाना है । अपने गुरु के शब्द को पहचाना , सत्य को सँभाला और दिन - रात देख - देखकर सत्य - असत्य का निर्णय किया । ....." इस संबंध में विशेष जानकारी के लिए इस पद्य का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
गुरु नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
तारा चड़िया लंमा किउ नदरि निहालिआ राम ।।
सेवक पूर करंमा सतिगुर सबदि दिखालिआ राम ।।
गुर सबदि दिखालिआ सचु समालिआ
अहिनिसि देखि विचारिआ ।।
धावतु पंच रहे घरु जाणिआ कामु क्रोध विषु मारिआ । अन्तरि जोति भई गुरु साखी चीने राम करंमा ।
नानक हउमै मारि पतीणे तारा चड़िआ लंमा ।। १ ।।
गुरमुखि जागि रहे चूकी अभिमानी राम ।
साचि समानी गुरमुखि मनि भानी गुरमुखि साबुत जागे ।
साचु नामु अंम्रितु गुरि दीआ हरि चरनी लिव लागे ।
प्रगटी जोति जोति महि जाता मनमुखि भरमि भुलाणी । नानक भोर भइआ मनु मानिआ जागत रैणि
विहाणी।। २ ।।
अउगुण वीसरिआ गुणी कीआ राम ।
एको रवि रहिआ अवरु न बीआ राम ।
रवि रहिआ सोइ अवरु न कोई मन ही ते मनु मानिआ । जिनि जल - थल त्रिभवण घटु - घटु थापिआ
सो प्रभु गुरमुखि जानिआ ।
करण कारण समरथ अपारा त्रिविध मेटि समाई ।
नानक अउगुण गुणह समाणे यैसी गुरमति पाई ॥३ ॥ आवण जाण रहे चूका भोला राम ।
हउमै मारि मिलै साचा चोला राम ।
हउमैं गुरि खोई परगटु होई चूके सोग संतापै ।
जोति अंदरि जोत समाणी आपु पछाता आपै ।
पेईअडै घरि सबदि पतीणी साहुरडै पिर भाणी ।
नानक सतिगुरि मेलि मिलाई चूकी काणी लोकाणी ।।४ ।।
शब्दार्थ - लंमा फांदकर । नदरि - नजर । किउ - किया । करंमा - कर्म । अहिनिसि - दिन - रात । धावतु - चलायमान । पंच - पाँच । साखी गवाह । करमा - दया । हउमैं अहंकार । पतीणे - विश्वास किया । भानी - भाया , अच्छा लगा । साबुत - सोने से या सूतने से । लिव - लौ , लव । महि - में , अन्दर । जाता - जाना , ज्ञान प्राप्त किया । रैणि रात । विहाणी - भोर हुआ , सबेरा हुआ । गुणी - गुण । रवि - व्यापक हो रहा है । बीआ - दूसरा । निहालिआ - मनोरथ पूर्ण किया । रहे - रुक गये ।
भावार्थ -
मैं फाँदकर तारे पर चढ़ा । ( यह साधना - अनुभूति की बात है । साधक अन्धकार - मण्डल को टपकर अन्तराकाश के तारक ब्रह्मलोक में पहुंचता है । ) दर्शन किया और राम ने मेरे मनोरथ को पूर्ण किया । सेवकाई के कर्मों से पूर्ण सेवक ने सद्गुरु राम के शब्द को पहचाना है । अपने गुरु के शब्द को पहचाना , सत्य को सँभाला और दिन - रात देख - देखकर सत्य - असत्य का निर्णय किया । पाँचो चंचल ज्ञान - इन्द्रियाँ रुक गईं । घर को पहचाना और काम - क्रोध विष को मार डाला । अन्तर की ज्योति गुरु की साक्षी हुई और राम का दया - दान पहचान में आ गया । गुरु नानक कहते हैं , जिसने अहंकार का दमन करके विश्वास किया , वह फांदकर तारे पर चढ़ गया ॥१ ॥ गुरुमुख जगते हैं , चेतते हैं और अभिमानी या घमण्डी चूक जाते हैं । सत्य में समाने में गुरुमुख के मन को पसन्द आता है । गुरुमुख सोते या जग जात हैं , उनको सत्यनाम - अमृत गुरु देते हैं और हरि - चरणों में उनकी ली लगती है । उनके अन्तर में ज्योति प्रकट हो जाती है , ज्योति में उनको ज्ञान प्राप्त हो जाता है और मन - मुख भ्रम में भूले रहते हैं । गुरु नानक कहते हैं कि उनके लिए भोर या बिहान या दिन आरम्भ हो जाता है अर्थात् ज्ञान का उदय हो जाता है । उनका मन संतुष्ट हो जाता है , वे रात जागते हैं , उनको बिहान हो गया है ॥२ ॥ वे गुरुमुख अवगुण को भूल जाते हैं और अपने अन्दर गुणों को रखते हैं । एक ही ( प्रभु परमात्मा ) सर्वव्यापक है और दूसरा व्यापक नहीं है । केवल वही व्यापक हो रहा है , दूसरा व्यापक नहीं है । इस विषय में मन ही से मन संतुष्ट हो गया है । ( गुरु के मन की जानकारी की बातों को श्रद्धालु गुरुमुख का मन जानकर संतुष्ट हुआ है । ) जिन प्रभु ने जल , थल , त्रिभुवन और सब घटों को रचा है , उनको गुरुमुख ने पहचाना । जो करनेवाला तथा बीज - रूप ( निमित्त और उपादान - रूप ) समर्थ प्रभु अपार है , गुरुमुख त्रय गुणों को पार कर उसमें समाता है । गुरु नानक साहब कहते हैं कि उनका अवगुण गुण में लीन हो जाता है ॥३ ॥ वह ऐसा गुरु - ज्ञान प्राप्त करता है कि उसका आवागमन रुक जाता है । परन्तु बुद्धिहीन चूक जाता है । अहंकार का दमन करने से सच्चा चोला ( सच्चिदानन्दमय देह ) मिलता है । गुरु अहंकार को दूर करते हैं , यह प्रकट होता है और शोक - सन्ताप दूर होते हैं । ज्योति के अन्दर ज्योति समाती है और साधक अपने को आप पहचानता है । जो नैहर ( इहलोक ) में शब्द का विश्वास ( नादानुसन्धान , सुरत - शब्द - योग ) करता है , वह सासुर ( परमात्म - पद ) में प्रभु को पसन्द आता है । गुरु नानक साहब कहते हैं कि सद्गुरु ने यह मेल मिलाया है , लोक - लज्जा दूर हो गई है ॥४ ॥
इस भजन के बाद वाले भजन ''सुनि मन भूले बावरे,...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
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नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 07 । Certification of inter-light by yoga । भजन- तारा चड़िया लंमा । भावार्थ सहित -महर्षिमेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/27/2020
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