गुरु नानक साहब की वाणी / 09
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत सदगुरु बाबा श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''मोहु कुटंबु मोहु सभकार,...'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। उसी के बारे मेंं यहां जानकारी दी जाएगी।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- मोह का त्याग कैसे करे? मोह माया से दूर कैसे रहे? मोह और माया क्या है? पुत्र मोह क्या है? इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- मोह माया से मुक्ति कैसे पाए? मोह माया से बचने के उपाय, मोह क्या है? मोह माया का अर्थ, मोह ममता, मोह माया शायरी, मोह माया क्या है, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त बाबा सदगुरु नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''सुनि मन भूले बावरे.'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Ways to avoid temptation
भक्त सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " कुटुम्ब और सांसारिक सब कार्यों की ममता निरर्थक है , इनको तुम छोड़ दो ।..... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
गुरु नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
मोहु कुटंबु मोहु सभकार । मोहु तुम तजहु सगल बेकार ॥१ ॥ मोह अरु भरमु तजहु तुम बीर । सचु नामु रिदे
रवै शरीर ॥२।। रहाउ ।।
सचु नामु जा नवनिधि पाई । रोवै पूत न कलपै माई ॥३ ॥
एतु मोहि डूबा संसारु । गुरुमुखि कोई उतरै पार ॥४ ॥
एतु मोहि फिरि जूनि पाहि । मोहे लागा जमपुरी जाहि।।५ ।। गुरु दीखिआ जपु तपु कमाहि।न मोहु तूटै ना थाई पाहि ॥६॥ नदरि करै ता एहु मोहु जाइ । नानक हरि सिउ रहै समाइ ।७ ॥
शब्दार्थ - सगल - सकल , बिल्कुल , समस्त । रिंदे - हृदय । रवै व्यापक है । जा - जिससे । नव - नौ । निधि - धन । एतु इस । थाई - जगह । ता - ते ।
पद्यार्थ -
कुटुम्ब और सांसारिक सब कार्यों की ममता निरर्थक है , इनको तुम छोड़ दो ॥१ ॥ तुम वीर पुरुष ! मोह और भ्रम को त्याग दो और सत्यनाम , जो शरीर में व्यापक है , उससे अपने हृदय को अर्थात् सुरत को लगाओ ॥२ ॥ सत्यनाम , जिसने नवो निधियाँ ( कुबेर के नौ प्रकार के रत्न -१ . पद्म , २. महापा , ३. शंख , ४. मकर , ५. कच्छप , ६. मुकुन्द , ७. कुन्द , ८. नील और ९ . वर्च ) पायी जाती हैं , को प्राप्त करने से पुत्र और माता नहीं रोवेंगे ॥३ ॥ सांसारिक पदार्थों के मोह में सांसारिक लोग डूबे हुए हैं । बिरला गुरुमुख इससे पार उतर जाता है।॥४ ॥ इस मोह से फिर जन्म मिलता है और मोह में लगा हुआ यमपुर को जाता है।।५ ।। गुरु से दीक्षा लेकर जप - तप कमाते हैं ; परन्तु न मोह टूटता है , न मोह - रहित ( मोक्ष ) पद प्राप्त होता है ॥६ ॥ गुरु नानक साहब कहते हैं कि परमात्मस्वरूप के दर्शन से यह मोह दूर होता है और परमात्मा - हरि में समाकर रहता है।।७ ।। इति।।
टीकाकार -महर्षि मेंहीं |
टिप्पणी- भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः । श्रीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे परावरे । -महोपनिषद्
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि मोह माया से मुक्ति कैसे पाए? मोह माया से बचने के उपाय, मोह क्या है? मोह माया का अर्थ, मोह ममता, मोह माया शायरी, मोह माया क्या है, इत्यादि बातें । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।🙏
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 09, Ways to avoid temptation । मोहु कुटंबु मोहु सभकार । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/17/2020
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