सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 50
बाबा नानक के शब्दों में ईश्वर की महिमा
प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक इस वाणी के द्वारा परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनकी भक्ति कर अपने को सुखी करने का उपदेश करते हैं . वे कहते हैं कि परमात्मा की आज्ञा अटल है; उनके आदेश के खिलाफ कोई कुछ नहीं कर सकता; वह जैसे रखें उसी तरह रहने में अपनी भलाई है, अपने को ईश्वर को समर्पित करके उनकी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए.
तू दरीआउ दाना बीना मै मछुली कैसे अन्तु लहा । जह जह देखा तह तह तू है , तुझते निकसी फूटि मरा ॥१ ॥ न जाणा मेउ न जाणा जाली । जा दुख लागै ता तुझे समाली ॥ रहाउ ।। तू भरपूरि जानिआ मै दूरि । जो कछु करी सु तेरै हदूरि । तू देखहि हउ मुकरि पाउ । तेरै कंमि न तेरै नाउ ॥ २ ॥ जेता देहि तेता हउ खाउ । बिआ दरु नाही कै दरि जाउ ।। नानक एक कहै अरदासि । जीउ पिण्डु सभु तेरै पासि ॥३ ॥ आपे नेड़ै दूरि आपे ही आपे मंझि मिआनो । आपे वेखै सुणै आपे ही कुदरति करे जहानो ॥ जो तिसु भावै नानका हुकमु सोई परवानो ॥४ ॥
भावार्थ- हे परमात्मा ! तू सब कुछ जाननेवाला , देखनेवाला और वार - पार - रहित अथाह समुद्र - रूप है ; मछली - रूप मैं तेरा अंत कैसे पा सकता हूँ अर्थात् तेरा अन्त नहीं पा सकता हूँ । जहाँ - जहाँ देखता हूँ , वहाँ - वहाँ तू ही तू है । तुझसे निकलकर अलग होने पर मैं मर जाऊँगा ॥ १ ॥
न तो मैं मछुए ( यम ) को देख पाता हूँ और न उसके जाल ( फाँस ) को । जब यमरूप मछुआ मुझे मृत्यु का दुःख देने लगता है , तब मैं तुझे याद करता हूँ ॥ १ ॥ रहाउ ॥
तू शरीर में और शरीर के बाहर भी सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है ; परन्तु मैं अज्ञानतावश तुझे अपने से दूर मान रहा हूँ । मैं जो कुछ भी अच्छा या बुरा कर्म करता हूँ , वह तेरे सामने ही । तू मेरे सारे कर्मों को देखता है ; परन्तु इनकार कर जाता हूँ कि मैंने बुरे कर्म किये हैं । न मैं तेरी कोई सेवा करता हूँ , न तेरा नाम लेता हूँ ॥ २ ॥
तू जितना देता है , उतना ही खाता हूँ अर्थात् उतने से ही गुजर - बसर करता हूँ ; और तुझपर ही आशा - भरोसा रखता हूँ । कोई दूसरा दरवाजा नहीं है , जहाँ मैं चला जाऊँ । गुरु नानक देवजी विनती करते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा ! मैं अपने प्राण , तन , धन आदि सबको तेरे प्रति निछावर करता हूँ ॥३ ॥
तू स्वयं नजदीक है , स्वयं दूर भी और स्वयं दोनों के बीच भी । तू स्वयं अपनी शक्ति से सारी सृष्टि की रचना करता है । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि उस परमात्मा को जैसा अच्छा लगता है , वैसा वह आदेश करता है और उसका वह आदेश अटल होता है अर्थात् परमात्मा जैसा चाहता है , वैसा ही अनिवार्य रूप से कुछ घटित होता है ॥ ४ ॥
टिप्पणी-- परमात्मा ज्ञानियों के लिए निकट और अज्ञानियों के लिए दूर है ।∆
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/19/2022
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