सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 49
आदिनाम, रामनम, सारशब्द, ओंकार की महिमा
प्रभु प्रेमियों ! "मोती त मन्दर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ..." पद्य में सद्गुरु बाबा नानक साहेब जी महाराज आदिनाम, रामनम, सारशब्द, ओंकार की महिमा सांसारिक जीवन में उपयोगी बस्तुओं से तुलनात्मक दृष्टि से किया है और बताया है कि संसार के ऐश्वर्यशाली मकान, परिवार, यौगिक सिद्धयां, राजसी ठाठ सभी सुखदायक लगनेवाली है, लेकिन इसका महत्व थोड़े समय के लिए होता है जो भगवान के नाम सिमरन और उस सिमरन से होने वाले सुख के सामने बहुत तुच्छ हैं. आइए इन्हीं के शब्दों में पढ़ते हैं--
गुरु नानकदेवजी महाराज की वाणी
( 49 )
शब्दार्थ - त = ते , से । ऊसरहि = बनाकर खड़ा किया गया हो । कुंगू = कुंकुम , रोली । चाउ = चाव , प्रेम , उमंग , शौक , आनंद । भूला , बीसरै = आनंदित होवे । नाउ = नाम । जलि बलि जाउ = जल - बल जाए । अवरु = अपर , दूसरा । धरती = फर्श , गच , पक्की बनी हुई जमीन । पलघि = पलँग । मोहणी = मोहित करनेवाली पत्नी । रंगि = रंग - बिरंग के , अनेक प्रकार के । पसाउ = खुश करने के लिए किया जानेवाला नखरा , हावभाव , नाज । सिधु = सिद्ध । रिधि = ऋद्धि , सफलता , समृद्धि । आखा = चाहा हुआ , मनचाहा । बैसा = बैठा हुआ । भाउ = भाव , प्रेम , महत्त्व , प्रतिष्ठा । सुलतानु = सुल्तान , राजा । मेलि = रखकर । लसकर = लशकर , सेना । तखति = तख्त , राजसिंहासन । पाउ = पाँव । हुकमु = शासन , अधिकार , राज्य । वाउ = वायु , व्यर्थ ।
भावार्थ- यदि तेरा भवन मोतियों को जोड़कर बनाया गया हो ; उसमें विविध प्रकार के रत्न जड़े हुए हों और उसमें कस्तूरी , कुंकुम , अगर , चंदन आदि का इस प्रकार लेप किया गया हो , जिससे मन प्रसन्न हो जाए , तोभी तू उसे देखकर मत आनंदित होवे ; क्योंकि इससे तेरे हृदय में प्रभु का नाम नहीं आएगा ॥ १ ॥
हरिनाम के बिना तेरा हृदय जल - बल जाए । अपने गुरु के उपदेशों के अनुसार चलकर मैंने यह प्रत्यक्ष रूप से जाना है कि हरिनाम से बढ़कर दूसरा कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है ॥ १ ॥ रहाउ ।
यदि तेरे भवन का फर्श हीरे - लालों से जड़ा हुआ हो ; पलँग में भी लाल जड़े हुए हों ; पत्नी का मुख आभायुक्त तथा अत्यन्त सुंदर हो और वह तेरे सामने तुझे प्रसन्न करने के लिए तरह - तरह के नाज - नखरे दिखाती हो , तोभी तू मत आनंदित होवे ; क्योंकि इससे तेरे हृदय में प्रभु का नाम नहीं आएगा ॥२ ॥
यदि तूने सिद्ध होकर समस्त सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं ; मनचाही ऋद्धियाँ तुझे प्राप्त हैं ; अदृश्य होकर फिर प्रकट होने की शक्ति प्राप्त कर बैठा है और संसार में तेरी बहुत अधिक प्रतिष्ठा भी है , तोभी तू इनसे आनंदित मत होवे ; क्योंकि इससे तेरे हृदय में प्रभु का नाम नहीं आएगा ॥३ ॥
गुरु नानक देवजी कहते हैं कि यदि तू राजा होकर विशाल सेना रखे हुए है ; बड़ा राज्य प्राप्त करके सिंहासन पर पैर रखकर बैठा हुआ है , तोभी तू अभिमान मत कर ; क्योंकि ये सब वायु की तरह चंचल हैं । इन सब बातों में तू आनंदित मत होवे ; क्योंकि इससे तेरे हृदय में प्रभु का नाम नहीं आएगा ।॥ ४ ॥∆
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