P02 (घ) || संत महिमा || सद्गुरु महर्षि मेँहीँ की दृष्टि में संत- स्तुति || संध्या कालीन स्तुति विनती अर्थ सहित
महर्षि मेँहीँ पदावली / 02 (ग)
प्रभु प्रेमियों ! 'सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी' पोस्ट के पहले, दूसरे और तीसरे भाग को हमलोग पढ़ चुके हैं। जिसमें सन्त-स्तुति में आए शब्दों के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी को हमलोग ने पड़ा है . इस पोस्ट में पुस्तक में प्रकाशित रूप में इसी पद का शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी को पढेंगे. जो पोस्ट में दिए गए लेख से कुछ-न-कुछ विशेषता लिए होगा क्योंकि यह संशोधित संस्करण का चित्र है. पूज्य पाद लालदास जी महाराज की पुस्तक शुद्धि की दृष्टि से बहुत ही उन्नत माना जाता है.. लेख में कई तरह के अशुद्धियां आपको मिल सकती है पर पुस्तक में नहीं के बराबर मिलेगी. इसलिए इन चित्र लेखों को अवश्य पढ़ें-
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पूज्यपाद बाबा श्री लालदास जी महाराज द्वारा किया गया टीका का चित्र जो इन सभी से विलक्षण है. उसे अवश्य पढ़ें--
आगे है--
मंगल मूरति सतगुरू , मिलवैं सर्वाधार ।
मंगलमय मंगल करण, विनवौं बारम्बार ॥१ ॥....
पदावली भजन नं.3क स्तुति-प्रार्थना का तीसरे पद्य , 'मंगल मूरति सतगुरू.." को शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित पुस्तक में प्रकाशित रूप में पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि संतों की महिमा क्या है?इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. |
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P02 (घ) || संत महिमा || सद्गुरु महर्षि मेँहीँ की दृष्टि में संत- स्तुति || संध्या कालीन स्तुति विनती अर्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
10/29/2022
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