सूरदास 02, Glimpse of god । अपने जान मैं बहुत करी । भजन भावार्थ सहित

संत सूरदास की वाणी  / 02 

प्रभुप्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीकअनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत सूरदास जी महाराज  की वाणी 'अपने जान मैं बहुत करी'...' का भावार्थ किया गया है ।जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है।

यह पद्य ( poems,  rachna, bhajan, kavya, pad, waani )  सूरदास जी महाराज के हिंदी रचनाओं में है। इसमें कृष्ण भगवान के दर्शन, हरि दर्शन,प्रभु दर्शन, ईश्वर दर्शन, भगवान् के दर्शन के बारे में चर्चा किया गया है कि prabhu darshan se sukh sampada kase aati hai. prabhu darshan kase milega, क्या केवल  darshan de do,aja prabhu इस तरह कहना काफी है या tumhare darshan ki Bela में ही ईश्वर का दर्शन होगा।... आदि बातों पर प्रकाश डालता है। तो आइए इन बातों को जानने के पहले भक्त सूरदास जी महाराज और टीकाकार जी के दर्शन करें।

इस भजन के  पहले वाले पद्य को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।

ईश्वर दर्शन के लिए भजन गाते भक्त सूरदास जी महाराज और भजन सुनते हुए टीकाकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ।
ईश्वर दर्शन के लिए भजन गाते भक्त सूरदास

Glimpse of god, "अपने जान मैं बहुत करी,..

संत सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "मैं भगवान के दर्शन के लिए बहुत जगह गया, पर वह अविनाशी, सब घट व्यापी परमात्मा का दर्शन मुझे नहीं मिला। मैं ईश्वर-दर्शन के बारे में बहुत नहीं जानता था । जब जाना तब हम को समझ में आया कि हमने बहुत बड़ी गलती की है। Glimpse of god, "अपने जान मैं बहुत करी..." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का भावार्थ  किया गया है; उसे पढ़ें-

सन्त सूरदासजी का वाणी

 ॥ मूल पद्य ॥

 अपने जान मैं बहुत करी ।
 कौन भाँति हरि कृपा तुम्हारी , सो स्वामी समुझी न परी ॥
 दूरि गयो दरसन के ताईं , व्यापक प्रभुता सब बिसरी ।
 मनसा वाचा कर्म अगोचर , सो    मूरति नहिं नैन धरी ।।
 गुण बिनु गुणी स्वरूप रूप बिनु , नाम लेत श्री श्याम हरी । कृपासिन्धु अपराध अपरमित , क्षमो ' सूर ' तें सब बिगड़ी ।

 भावार्थ
मैंने अपने जानकर बहुत कुछ किया ; परन्तु आपकी कृपा किस तरह होती है , हे प्रभु - परमात्मा ! यह बात मेरी समझ में नहीं आयी । मैं आपकी सर्वव्यापकता की प्रभुता को भूलकर आपके दर्शन के वास्ते दूर - दूर गया । आपकी जो मूर्ति मन, (  पिण्डी मन , वचन और कर्म का परमात्मा का अणोरणीयाम् वा विन्दु - रूप अप्रत्यक्ष है । दृष्टियोग के अभ्यास से नयनाकाश में यह धारण करने योग्य है । ) वचन और कर्म को अप्रत्ययक्ष है , उसको मैंने अपनी आँख में नहीं पकड़ा । आप त्रयगुण होते हुए गुणवान हैं और आपका आत्म - स्वरूप बिना रूप का है ; परन्तु हे हरि ! मैं श्याम कहकर आपका नाम लेता हूँ । हे कृपा - सिन्धु ! मुुझसे असंख्य अपराध हुए , आप क्षमा कीजिये , सूरदास से तो सब विगड़ ही गया । इति।

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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस भजन का भावार्थ  के द्वारा आपने जाना कि मनुष्य को ईश्वर दर्शन कठिन साधना के द्वारा या प्रेमा भक्ति से ही मिल सकता है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है। उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




संतवाणी सटीक, संतों की वाणी में एकता है प्रमाणित करने वाली पुस्तक।
संतवाणी सटीक
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 02, Glimpse of god । अपने जान मैं बहुत करी । भजन भावार्थ सहित सूरदास 02, Glimpse of god । अपने जान मैं बहुत करी । भजन भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/30/2020 Rating: 5

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