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सूरदास 01 Relationships of birth and death । जग में जीवत ही को नातो । भजन भावार्थ सहित

संत सूरदास की वाणी / 01

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां शांति-संदेश में प्रकाशित भक्त  सूरदास जी महाराज  की वाणी "जग में जीवत ही को नातो'... और झूठेही लग जन्म गंवायो,... '  का भावार्थ पढेंगे। 

इस निर्गुण Bhajan (भजन, कविता, पद्य, वाणी, छंद) "जग में जीवत ही को नातो और..." में बताया गया है कि-  जीवन का सार रहस्य क्या है? ईश्वर-भक्ति का महत्व क्या है? जीवन में माता-पता, भाई-बंधु, स्त्री-पुत्रादि का क्या महत्व है? और इसमें कितना समय देना चाहिए? इसे स्पष्ट करते हुए यह भी कहा है कि बहुत से अच्छे लोगों को जो काम अच्छा लगे, वही काम करते हुए जीवन बिताना चाहिए और भजन करना चाहिए। यह पद सूरदास जी के हिंदी रचनाओं में है। इस छोटे से कविता में संत सूरदास जी महाराज ने जीवन के महत्वपूर्ण कामों के बारे में चर्चा की है ।तो आइए ! पहले सूरदास जी महाराज और टीकाकार का दर्शन करें।

भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी के पहले गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का भजन "संतवाणी सटीक" में संग्रहित है। उसे भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दवाएं ।


जन्म और मृत्यु सगे-संबंधियों, रिश्ते-नातों पर चर्चा करते भक्त सूरदास और टीकाकार
जीवन और मृत्यु के संबंध पर चर्चा

Relationships of birth and death,

संत सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "व्यक्ति जब तक जीवित रहता है, तब तक ही उसके अपने-पराए  के नाते रहते हैं। शरीर छूट जाने पर कोई किसी को याद नहीं करता है। अतः संसार में जो बहुत लोगों को अच्छा लगे वही काम करना चाहिए।..Surdas ji ke Bhajan,"जग में जीवत ही को नातो,.." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का भावार्थ  किया गया है। उसे पढ़ें-

भक्त सूरदासजी की वाणी

 जग मैं जीवत ही को नातौ ।
 मन बिछुरौ तन छार होइगो , कोउ न बात पुछातो ।।
 मैं - मेरी कबहूँ नहिं कीजै , कीजै पंच - सुहातो ।।
 विषयासक्त रहत निसि-बासर, सुख सियरो, दुख तातौ ॥   साँच - झूठ करि माया जोरी , आपुन रूखो खातौ ।
 सूरदास कछु थिर न रहेगी , जो आयौ सो जातौ ॥

 भावार्थ- जगत् के ( सारे ) संबंध जीवित रहने तक ही हैं । मन ( मृक्ष्म शरीर ) में वियुक्त होने पर शरीर ( जलकर ) भस्म हो जाएगा ; तब कोई चर्चा भी नहीं करेगा । यह मैं हूँ , यह मेरा है - इस प्रकार का गर्व कभी नहीं करना चाहिए । करना वही काम चाहिए , जो पञ्चों ( सब लोगों ) को भला लगे । ( मनुष्य ) रात - दिन विषय - भोगों में रचा - पचा रहता है , ( उसे ) सुख शीतल ( प्रिय ) और दुःख उष्ण ( अप्रिय ) लगता है । स्वयं तो रूखा ( बहुत साधारण ) भोजन करता है , परन्तु झूठ - सच बोलकर सम्पत्ति एकत्र करता है । सूरदासजी कहते हैं- ( इस संसार में ) कुछ स्थिर नहीं रहेगा ! जो आया है ( जिसने जन्म लिया है ) , वह जायेगा ( मरेगा ) ही । 

।। मूल पद्य ।।

 झूठेही लगि जनम गँवायौ ।
 भूल्यौ कहा स्वप्न के सुख मैं , हरि सौं चित न लगायौ ।।   कबहुँक बैठ्यौ रहसि - रहसि के , ढोटा गोद खिलायौ ।
 कबहुँक फूलि सभा मैं बैठ्यौ , मूंछनि ताव दिखायौ ।।
 टेढ़ी चाल , पाग सिर टेढ़ी , टेढ़े - टेढ़ धायौ ।
 सूरदास प्रभु क्यौं नहिं चेतत , जब लगि काल न आयौ ॥
 
भावार्थ- ( संसार के ) झूठे ही सुखों के लिए मैंने जन्म खो दिया । स्वप्न के समान ( संसार के ) सुखों में था क्या ; पर इन्हीं में भूल गया और श्रीहरि से अनुराग नहीं किया । कभी मौज में बैठकर बड़े चाव से पुत्र को गोद में लेकर खेलाता रहा और कभी अहंकारपूर्वक सभा में बैठकर मूंछों पर ताव देता रहा । सिर पर टेढ़ी पगड़ी लगाकर टेढी ( गर्व - भरी ) गति से टेढ़े रास्ते ( कुमार्ग पर ) दौड़ता रहा । सूरदासजी कहते हैं - जबतक मृत्यु का समय नहीं आया , ( उससे पूर्व ही ) चेतकर प्रभु का भजन क्यों नहीं कर लेता।

इस भजन के  बाद वाले पद्य को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती प्रत्रिका "शांति-संदेश" के इस भजन का भावार्थ के द्वारा आपने जाना कि बहुत से अच्छे लोगों को जो काम अच्छा लगे, वही काम करते हुए जीवन बिताना चाहिए और भजन करना चाहिए? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




संतवाणी सटीक, संतों की वाणी में एकता है प्रमाणित करने वाली पुस्तक।
संतवाणी सटीक
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 01 Relationships of birth and death । जग में जीवत ही को नातो । भजन भावार्थ सहित सूरदास 01  Relationships of birth and death ।  जग में जीवत ही को नातो । भजन भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/22/2020 Rating: 5

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