गुरु नानक साहब की वाणी / 47
ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है
प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहब (गरु गोविन्द सिंह जी महाराज) जी महाराज इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) द्वारा कहते हैं कि- योग का अभ्यास कैसे करना चाहिए? भजन करने के लिए सिंगी और कंठला किस चीज का बनाना चाहिए? भस्म किस चीज का लगाना चाहिए? किस को बस में करना चाहिए? भिक्षान्न क्या होना चाहिए? सबसे मीठा मधुर राग कौन सा है? परमात्मा का ज्ञान किन शब्दों से होता है? उन ध्वनियों को सुनकर कौन-कौन चकित होते हैं? ध्वनि के सहारे ब्रह्मांड में कैसे स्थिर होते हैं? उपदेश किसे करना है? भेष क्या चीज का धारण करना चाहिए? काल किस पर अपना प्रभाव नहीं डालता है? आदि बातें। अगर आपको इन सारी बातों को अच्छी तरह समझना है तो इस पोस्ट को पूरी अच्छी तरह समझते हुए पढ़ें-
शब्दार्थ-
अपने मन को वश करके परम तत्त्व ( परमात्मा ) को ग्रहण करो । नाम के अवलम्ब ( सहारे ) को हाथ का भिक्षान्न बनाओ । अंदर में हरि तत्त्व ( परमात्म - तत्त्व ) का परम तार ( अनाहत नाद ) बजता है , उससे मधुर राग उपजता है ॥ १ ॥
ज्ञान - गीत से बँधी हुई बहुत प्रकार की शब्द - लहरें प्रकट होती हैं अर्थात् साधना में अनेक प्रकार की मीठी अनहद ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं , जिनसे साधक को परमात्मा संबंधी ज्ञान होता है । अभ्यासी देव , दानव और मुनि उन ध्वनियों की मिठास पर बारंबार चकित होते हैं । उन ध्वनियों की मिठास से अत्यन्त तृप्त हो - होकर वे आंतरिक आकाश - रूप चॅदोवे - मण्डप ( ब्रह्माण्ड ) में स्थित रहते हैं ॥ २ ॥
अपने आपको उपदेश करे ; संयम का वेश ( पोशाक ) धारण करे और श्रेष्ठ अजपा जप ( अनाहत नाद ) का जप ( ध्यान ) करे , तो वह आत्मस्वरूप प्राप्त होता है , जो सदा विकार - रहित - शुद्ध - निर्मल रहता है और जिसपर का कभी अपना प्रभाव नहीं डाल पाता ॥३ ॥
आगे है-
॥ अथ बीजमंत्र श्रीगुरु नानकजी का लिख्यते ॥
ओअंकार सबदि ओअंकार बानी । ओअंकार ने गति ओअंकार की जानी ॥ सबदे धरती सबदे आकास । सबदे सबदि भया प्रकास ॥ नीचे धरती ऊपर आकास । ...
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संतवाणी-सुधा सटीक |
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