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नानक वाणी 46 रे मन ऐसो करि संनिआसा भावार्थ सहित || सन्यासी की जीवन और दिनचर्या

गुरु नानक साहब की वाणी / 46

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने लिखा है। 

इस भजन के पहले वाले भजन '' काहू लै पाहन पूज धरो सिर । ,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   👉 यहाँ दवाएँ.


नानक वाणी 46   रे मन ऐसो करि संनिआसा
भक्तों के कर्तव्य बताते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज

सन्यासी की जीवन और दिनचर्या

प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  द्वारा कहते हैं कि-  सन्यासी का मन कैसा रहना चाहिए? सन्यास कौन ले सकता है? सन्यासी के घटा का क्या मतलब है? सन्यासी का नख कैसा होना चाहिए? सन्यासी स्नान किस तरह करता है? सन्यासी शिक्षा किसको दे? सन्यासी का गुरु कैसा होना चाहिए? सन्यासी का खाना-पीना, सोना और जगत व्यवहार कैसा होना चाहिए? सन्यासी कैसे दूरविकारों से बचें और ईश्वर भजन करें? आत्म-दर्शन का लाभ कौन उठा सकता है?    आदि बातें। अगर आपको इन सारी बातों को अच्छी तरह समझना है तो इस पोस्ट को पूरी अच्छी तरह समझते हुए पढ़ें-


नानक वाणी 46

 ॥ रामकली , पातशाही १० ॥


रे मन ऐसो करि संनिआसा  
वन से सदन सभै करि समझहु , मन ही माहिं उदासा ॥ रहाउ ॥ जत की जटा जोग को मज्जन , नेम के नखन बढ़ाउ ।। गिआन गुरू आतम उपदेसहु , नाम विभूत लगाउ । अलप अहार सुलप सी निद्रा , दया छिमा तन प्रीति ॥ सील संतोष सदा निरवाहबो , हैवो त्रिगुन अतीत ॥ काम क्रोध हंकार लोभ हठ , मोह न मन सिऊ लयावै ॥ ए तबही आतम तत को दरसै , परम पुरुष कह पावै ॥ 


शब्दार्थ

संनिआसा- संन्यास , त्याग । वन = जंगल। सदन = घर । सभै करि - समै करि, बराबर करके , एक समान । उदासा - उदास , विरक्त , उदासीन । जत - यतिपन , त्याग , वैराग्य | मज्जन = स्नान । नेम = नियम , संयम , यम - नियम ( सत्य , अहिंसा , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को यम कहते हैं । शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान ये नियम कहलाते हैं । ) आतम= अपने को। विभूत = विभूति , भभूत , भस्म। सुलप सी - स्वल्प - सी , बहुत थोड़ी , बहुत कम । तन - से निरवाहबो = निर्वाह करो । हैवो- हो जाओ । सिऊ = से । लयावे = लय लावे, ख्याल करें । कह = को ।  ( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए "संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें ) 



भावार्थ

अरे मन ! तुम इस तरह का संन्यास धारण करो । जंगल से लेकर घर तक को एक जैसा समझो और मन में संसार से विरक्त रहो ॥ रहाउ 

 त्याग या वैराग्य को जटा बनाओ ; ध्यानयोग में स्नान करो ; नियम ( संयम , यम नियम ) के नख बढ़ाओ । ज्ञान को अर्थात् ज्ञानवान् को अपना गुरु बनाओ ; अपने आपको उपदेश ( शिक्षा ) दो और नाम का भस्म लगाओ ॥१ ॥ 

थोड़ा भोजन करो ; बहुत कम सोओ और दया - क्षमा से प्रेम करो । शीलता ( नम्र तथा उत्तम व्यवहार ) और संतोष से सदा निर्वाह करो ; इस तरह त्रय गुणों ( त्रिगुणात्मिका मूल प्रकृति ) से बाहर हो जाओ || २ || 

काम , क्रोध , अहंकार , लोभ , हठ ( दुराग्रह ) और मोह के भाव मन ( ख्याल ) में नहीं लाओ , तभी आत्मतत्त्व के दर्शन करोगे और तभी परम पुरुष परमात्मा को पाओगे ॥३ ॥ ∆


आगे है-

॥ रामकली , पातशाही १० ।। 

रे मन इहि विधि जोग कमाउ । सिंगी साँच अकपट कंठला , धिआन विभूत चढ़ाउ || रहाट ॥ ताती गहु आतम बसि कर की , भिंछा नाम अधारं । आज बाजे परम तार तत हरि को , उपजै राग रसारं ॥ १ ॥ उघटै तान तरंग रंगि अति , गिआन गीत बंधानं । चकि चकि रहे देव दानव मुनि , छकि छकि व्योम विवानं ॥२ ॥ आतम उपदेश भेष संयम को , जाप सु अजपा जापै । सदा रहै कंचन सी काया , काल न कबहूँ व्यापै ॥३॥४ ॥ .... 


इस भजन के बाद वाले भजन  ''रे मन इहि विधि जोग कमाउ....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न  चित्र की भांति प्रकाशित है-


नानक वाणी 46   रे मन ऐसो करि संनिआसा


नानक वाणी 46   रे मन ऐसो करि संनिआसा  भावार्थ सहित


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि   संन्यासी का अर्थ क्या है, संन्यास में कौनसी संधि है, सन्यासी को संस्कृत में क्या कहते हैं, संन्यास का लिंग क्या है, सन्यासी के लक्षण, संन्यास का अर्थ हिंदी में, संन्यासी का जीवन, संन्यास आश्रम इन इंडिया, संन्यासी का पर्यायवाची, सन्यासी की दिनचर्या, संन्यासी का जीवन, संन्यास का अर्थ in English, संन्यास और गृहस्थ जीवन की तुलना कर के लिखिए, संन्यास लेने के नियम, सन्यासी शुद्ध शब्द, संन्यास मंत्र, सन्यासी बनने के फायदे, संन्यास के प्रकार, संन्यास आश्रम कहाँ है, संन्यास.   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है। 





संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
संतवाणी-सुधा सटीक
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नानक वाणी 46 रे मन ऐसो करि संनिआसा भावार्थ सहित || सन्यासी की जीवन और दिनचर्या नानक वाणी 46   रे मन ऐसो करि संनिआसा  भावार्थ सहित ||  सन्यासी की जीवन और दिनचर्या Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/09/2021 Rating: 5

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