महर्षि मेंहीं पदावली / 89
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 89वें पद्य "भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ऐ,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।
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How do guru "भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ऐ,..'
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- हे भाइयो ! साधु गुरु (उत्तम गुरु--सद्गुरु) की भक्ति करो। गुरु बड़े दानसील और दयालु होते हैं; वे यम-फांस को काट डालनेवाले और पल भर में भक्तों को पूर्ण काम कर देने की शक्ति रखने वाले होते हैं।.How do guru "भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ऐ,..'.. इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस पद का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है । उसे पढ़ें-( ८ ९ )
भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ए ॥१ ॥
गुरु दाता दयाल , वह काटें यमजाल ,
पल में कर दें निहाल ॥भजो ० ॥२ ॥
गुरु कहते सतज्ञान , सुनके मिटता अज्ञान ,
सुख होता महान ॥भजो ० ॥३ ॥
गुरु ज्ञान सूर्य रूप , उनकी जोती अनूप ,
उर के नासै तम कूप ॥भजो ० ॥४ ॥
गुरु खोलैं तिल द्वार, हो ब्रह्माण्ड में पैसार,
लखिये जोती अपार ॥भजो ० ॥५ ॥
देइ सुरत शब्द भेद , मिटा देत भव खेद ,
करिये गुरु की उमेद ॥भजो ० ॥६ ॥
शब्दार्थ - साध गुरु - साधु गुरु , उत्तम गुरु , सद्गुरु । ( साध - साधु , उत्तम , अच्छा ) ए - ऐ , हे , हे भाई ! यमजाल यम का फंदा । निहाल ( फारसी ) -पूर्णकाम , जिसकी सब इच्छाएँ पूरी हो गई हों , जो सब तरह से खुशहाल हो गया हो । अनूप - अनुपम , उपमा - रहित , न्यारा , विलक्षण , भिन्न । उर - हृदय । तिल द्वार - दशम द्वार । पैसार - पदसरण , प्रवेश , पैठ । खेद - दुःख । उमेद ( फारसी उम्मेद , उम्मीद ) -आशा - भरोसा , आसरा ।
भावार्थ - हे भाइयो ! साधु गुरु ( उत्तम गुरु - सद्गुरु ) की भक्ति करो ॥१ ॥ गुरु बड़े दानशील और दयालु होते हैं ; वे यम - फाँस को काट डालनेवाले और पल भर में भक्तों को पूर्णकाम कर देने की शक्ति रखनेवाले होते हैं ॥२ ॥ गुरु सत्य ज्ञान का उपदेश करते हैं , उसे सुनकर अज्ञानता मिट जाती है और महान् सुख ( आत्मसुख ) होता है ॥३ ॥ त्रिकुटी - दर्शित ज्ञानसूर्य गुरु का ही रूप है , जिसकी विलक्षण ज्योति हृदय घने अंधकार - मंडल को विनष्ट कर देती है ॥४ ॥ गुरु दृष्टियोग की युक्ति बतलाकर बन्द तिल - द्वार ( बन्द दशम द्वार ) को खोल देते हैं , जिससे पिंड से ब्रह्मांड में साधक शिष्य की पैठ हो जाती है , जहाँ वह ज्योति के विशाल मंडल को अथवा जहाँ वह ज्योति के विविध प्रकार के अनेक रंग - रूपों को देखता है ॥५ ॥ गुरु सुरत - शब्द - योग की युक्ति बतलाकर शिष्य के जन्म - मरण के दुःखों को सदा के लिए मिटा डालते हैं । इसलिए ऐसे ही सद्गुरु का आशा - भरोसा रखना चाहिये ॥६ ॥
टीकाकार लाल दास जी |
टिप्पणी -१ . १४ वें पद्य में भी कहा गया है कि महामोहरूपी भयानक रात्रि के सघन अंधकार को विनष्ट करने के लिए सद्गुरु का वचन अलौकिक सूर्य की किरणों के समान है- “ महामोह घनघोर रजनी निविड़ तम । हैं सद्गुरु वचन दिव्य सूरज किरण सम ॥ " २. सूर्यब्रह्म की ज्योति अत्यन्त तीव्र होने पर भी अत्यन्त शीतल होती है , इसीलिए वह अनुपम कही गई है । ३. त्रिकुटी - महल में अलौकिक सूर्य के दर्शन होते हैं और संत कबीर साहब की एक वाणी के अनुसार , वहाँ पहुँचने पर सारी विद्याओं का ज्ञान हो जाता है ( " त्रिकुटी महल में विद्या सारा , घनहर गरजै बजै नगाड़ा । " ) , इसलिए त्रिकुटी के सूर्य को यदि ज्ञानसूर्य कहा जाए , तो अनुचित नहीं होगा । ४. ८ ९ वाँ पद्य वर्णिक छन्द में है , जिसके प्रथम चरण में १५ अक्षर हैं , नीचे के प्रत्येक चरण में २४ अक्षर , ८-८-८ पर यति और अन्त में गुरु - लघु । ७ वाँ -८ वाँ और १५ वाँ -१६ वाँ वर्ण भी गुरु - लघु हैं ।
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प्रभु प्रेमियों ! "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि गुरु कैसे होते हैं? गुरु क्या-क्या कर सकते हैं? गुरु कौन हो सकते हैं?। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. |
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P89-How do guru-भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ऐ- महर्षि मेंहीं पदावली - God Bhajan अर्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/25/2020
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