सूरदास 06 || जो मन कबहुँक हरि को जाँचे || भजन भावार्थ सहित || True worship of godईख उग

संत सूरदास महाराज की वाणी  / 06

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीकअनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति से संत सूरदास जी महाराज  की वाणी "जो मन कबहुँक हरि को जाँचे ।..." का  भावार्थ सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने   किया है। उसी के बारे में यहाँ चर्चा करेंगे. चर्चा के पहले आइए भक्त सूरदास जी महाराज के दर्शन करें.
इस भजन के पहले वाले पद्य "जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत।..." को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।
भक्त सूरदास जी महाराज

भगवान की सच्ची पूजा True worship of god

    प्रभु प्रेमियों ! ईश्वरोपासना ही मोक्ष के असली साधन है । अतः ईश्वर भक्ति के संबंध में विविध तरह के विचार प्रचलित हैं। उनमें आत्म संतुष्टि दायक, सर्व सिद्धि प्रदाता, सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला, सभी दुखों से छुड़ाने वाला ईश्वर का असली भक्ति क्या है? इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "जो मन कबहुँक हरि को जाँचे।,..." में सूरदास जी महाराज ने बताया है। प्रायः लोग निम्नलिखित बातों में उलझ कर रह जाते हैं और असली भक्ति नहीं कर पाते हैं जैसे कि-  ईश्वर पूजा में जप, ध्यान, प्राणायाम का साधन आदि। हिन्दू धर्म के ग्रंथ वेद में ईश्वर को 'ब्रह्म' कहा गया है। ब्रह्म को प्रणव, सच्चिदानंद, परब्रह्म भी कहा जाता है।  गुरु को ईश्वर का तारक रूप माना जाता है।  इसलिए इन दोनों रूपों की उपासना आज तक लोग करते आए हैं। ईश्वर-उपासना करते हुए, विषय, धन, जन अथवा मान-यश की कामना करने पर से मुक्ति की सिद्धि नहीं होती है। आपत्त, रोग, शोक, ताप, मान और अपमान इत्यादि ईश्वर भक्ति में बाधक होते हैं। अगर सबकुछ नियतिबद्ध है तो ईश्वर का चमत्कार का क्या मतलब है। मात्र एक ईश्वर ही सबसे महान है और उपासना परमात्मा की असली पहचान कराने वाला। आदि बातें। इन बातों को समझने के लिए पढिए भक्त सूरदास जी महाराज के भजन और भावार्थ को.

।। मूल पद्य ॥

जो मन कबहुँक हरि को जाँचे | 

आन प्रसंग उपासना छाड़े मन बच क्रम अपने उर साँचै ।। निशदिन श्याम सुमिरि यश गावै कल्पन मेटि प्रेम रस पाचै । यह व्रत धरै लोक में विचरै सम करि गनै महामणि काचै ॥ शीत उष्ण सुख दुख नहिं मानै हानि भये कुछ सोच न राचै । जाइ समाइ सूर वा निधि में बहुरि न उलटि जगत में नाचै |


सदगुरु महर्षि मेंहीं

भावार्थ - हे मन ! यदि तुम कभी हरि की याचना करो , तोल दूसरे प्रसंग और उपासनाओं को छोड़ दो तथा मन , वचन , कर्म से अपने हृदय में सच्चे बने रहो । दिन - रात श्रीश्याम का सुमिरण करो , उनका यश गाओ और कल्पों से पंच विषय - रस में लीनता को उन श्रीश्याम के प्रेम में लगाकर मिटा डालो । इस व्रत को धारण करके संसार में विचरो और महामणि तथा काँच को एक तुल्य समझो ।। सर्दी - गर्मी , सुख - दुःख को सहन करो और हानि होने पर दुःखी मत बनो । जाकर इस परमात्म - रूप समुद्र में समा जाओ कि फिर लौटकर तुमको इस संसार में नहीं नाचना पड़े । इति।

इस भजन के  बाद वाले पद्य जो जन ऊधो मोहि न बिसरै ,   को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि ईश्वरोपासना ही मोक्ष के असली साधन है । अतः ईश्वर भक्ति के संबंध में विविध तरह के विचार प्रचलित हैं। उनमें आत्म संतुष्टि दायक, सर्व सिद्धि प्रदाता, सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला, सभी दुखों से छुड़ाने वाला ईश्वर का असली भक्ति क्या है?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।



संतवाणी सटीक

संतवाणी सटीक, संतों की वाणी में एकता है प्रमाणित करने वाली पुस्तक।
संतवाणी सटीक
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 06 || जो मन कबहुँक हरि को जाँचे || भजन भावार्थ सहित || True worship of godईख उग सूरदास 06 || जो मन कबहुँक हरि को जाँचे || भजन भावार्थ सहित || True worship of godईख उग Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/30/2020 Rating: 5

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