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Surdas 05, Glory of true nature । जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत । भजन भावार्थ सहित

संत सूरदास की वाणी  / 05

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीकअनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत सूरदास जी महाराज  की वाणी "जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत।..." का  भावार्थ सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने   किया है। 
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत।,..." में बताया गया है कि- जबतक आत्म दर्शन नहीं होता है , तबतक जैसे कोई मणि - माला को अपने कण्ठ में भूलकर उसे समस्त जंगल में ढूँढ़ता है , उसी तरह मनुष्य अपने अंदर की ढूंढ़ छोड़कर आत्मा ( ब्रह्म ) को बाहर - बाहर ढूँढ़ता है।सत्य का मतलब क्या होता है,सच और सत्य में क्या अंतर है,सत्य कहा था,सत्य के लक्षण, स्वरूप और महिमा का वर्णन,सत्य किसे कहते है,अपने सत्य स्वरूप को पाना है,सत्य स्वरूप,सत्य की महिमा, सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं का अर्थ,सत्य व्रतं सत्य परम त्रि सत्यम,सत्य की परिभाषा बताइए,सत्य स्तुति,आध्यात्मिक सत्य क्या है, इत्यादि बातें। इन बातों को पढ़ने के पहले आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज और टीकाकार के दर्शन करें।

इस भजन के पहले वाले पद्य "गुरु बिन ऐसी कौन करें" को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


सूरदास जी भजन गाते हुए साथ में वाणी टीकाकार
भक्त सूरदास जी महाराज भजन गाते हुए और टीकाकार

Glory of true nature सत्य स्वरूप की महिमा

संत सूरदास जी महाराज कहते हैं कि "जबतक आत्म दर्शन नहीं होता है , तबतक जैसे कोई मणि - माला को अपने कण्ठ में भूलकर उसे समस्त जंगल में ढूँढ़ता है , उसी तरह मनुष्य अपने अंदर की ढूंढ़ छोड़कर आत्मा ( ब्रह्म ) को बाहर - बाहर ढूँढ़ता है।...." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

।। मूल पद्य ।।

जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत । तौं लौं मनु मणि कण्ठ बिसारे , फिरत सकल बन बृात ।। अपनो ही मुख मलिन मन्द मति , देखत दर्पण मांह । ता कालिमा मेटिबे कारण , पचत पखारत छाँह ।। तेल तूल पावक पूट भरि धरि , बनै न दिया प्रकासत । कहत बनाय दीप की बातें , कैसे हो तम नासत ।। सूरदास जब यह मति आई , वे दिन गये अलेखे । कह जाने दिनकर की महिमा , अन्ध नयन बिनु देखे ।।

 भावार्थ - जबतक आत्म दर्शन नहीं होता है , तबतक जैसे कोई मणि - माला को अपने कण्ठ में भूलकर उसे समस्त जंगल में ढूँढ़ता है , उसी तरह मनुष्य अपने अंदर की ढूंढ़ छोड़कर आत्मा ( ब्रह्म ) को बाहर - बाहर ढूँढ़ता है ।। भद्दी बुद्धिवाले किसी व्यक्ति के निज मुख पर मैल लगी है और वह दर्पण में मुख देखता है , तो उस मैल को मिटाने के लिए ऐने में के अपने प्रतिबिम्ब को अधिकाधिक प्रयास से धोता है । तात्पर्य यह कि शरीरस्थ चेतन - आत्मा के ऊपर स्थूल सूक्ष्मादि - भेद से शरीर और अन्त : करण आदि मैल लगी हुई है ; जब श्रवण - मनन ज्ञान - रूप दर्पण में यह मैल जानने में आती है , केवल शरीर को धो - नहलाकर साफ करके वा तप व्रत आदि द्वारा उसे साध और कष्ट पहुँचाकर वा केवल विचार - द्वारा ही अन्तःकरण को शुद्ध करने के प्रयास से ही वह मैल दूर नहीं होती । दीपक में तेल भर और उसमें रूई की बत्ती देकर तो बिना जलाने से नहीं बलता है अर्थात् अंधकार में प्रकाश नहीं होता है और ( अंधकार में बैठकर ) दीपक की बातें बना - बनाकर कहता रहता है , तो भला वह अंधकार कैसे दूर हो सकता है ? इन पद्यों से भाव यह निकलता है कि जब ईश - भजन की उस विधि से , जिस विधि से कि सुरत या चेतन - आत्मा प्रभु से मिलने को अन्त :स्थ अंधकार से पार हो ब्रह्म - ज्योति में पहुँच अंतर के सब मायिक आवरणों को पार करे , तब वह अंधकार को दूर कर सकेगी , और अपने ऊपर चढ़ी कथित मैल को भी मिटा सकेगी । इसके अतिरिक्त कथित छाँह धोने से और केवल दीपक की बातें अंधकार में करने से न वह मैल मिटेगी , न वह अंधकार मिटेगा । सूरदासजी कहते हैं कि जब इस विचार का बोध हुआ , तब वे दिन अर्थात् इसके पहले के दिन बिना लेखे के बीत गए अर्थात् उन सब दिन के परिश्रम व्यर्थ हुए ; परंतु आत्म - सत्स्वरूप - रूप सूर्य की महिमा को आत्म - दृष्टि से नहीं देख सकनेवाला अंधा क्या जाने ? ॥ इति


इस भजन के  बाद वाले पद्य "जो मन कबहुँक हरि को जाँचे" को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि जबतक आत्म दर्शन नहीं होता है , तबतक जैसे कोई मणि - माला को अपने कण्ठ में भूलकर उसे समस्त जंगल में ढूँढ़ता है , उसी तरह मनुष्य अपने अंदर की ढूंढ़ छोड़कर आत्मा ( ब्रह्म ) को बाहर - बाहर ढूँढ़ता है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




संतवाणी सटीक, संतों की वाणी में एकता है प्रमाणित करने वाली पुस्तक।
संतवाणी सटीक
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
अगर आप 'संतवाणी सटीक' पुस्तक से संत सूरदास जी महाराज  के अन्य पद्यों के अर्थों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो  यहां दबाएं। 


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Surdas 05, Glory of true nature । जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत । भजन भावार्थ सहित Surdas 05, Glory of true nature । जौं लौं सत्य स्वरूप न सूझत । भजन भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/17/2020 Rating: 5

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