संत-वचनावली सटीक
॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
टीकाकार के शब्द ( द्वितीय संस्करण )
भागलपुर विश्वविद्यालय * , भागलपुर के अन्तर्गत दुमका महाविद्यालय स्थित स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के आचार्य - सह विभागाध्यक्ष तथा संत साहित्य के मर्मज्ञ डॉ ० रामेश्वर प्रसाद सिंहजी महोदय ( पी - एच ० डी ० , डी ० लिट् ० ) द्वारा संपादित एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का नाम है ' संत - वचनावली ' । इस ग्रंथ में हिन्दी के मध्यकालीन संत नामदेवजी से लेकर आधुनिक काल के संत महर्षि मँहीँ परमहंसजी महाराज तक के ३५ संतों की पद्यात्मक वाणियाँ संकलित की गयी हैं । ग्रंथ की भूमिका में संपादक महोदय ने आखर थोड़े ' शीर्षक के अन्तर्गत १७ पृष्ठों का अपना एक महत्त्वपूर्ण निबंध प्रस्तुत किया है , जिसमें संत - साहित्य और संत - परम्परा की चर्चा की गयी है । इस ग्रंथ का पहला संस्करण सन् १९८६ ई ० में अनुपम प्रकाशन , पटना के द्वारा प्रकाशित हुआ है ।
सन् १९९२ ई ० की बात है । भागलपुर विश्वविद्यालय , भागलपुर के हिन्दी - विभाग के विद्वान् प्राध्यापक आदरणीय डॉ ० बहादुर मिश्रजी महोदय और एम ० ए ० हिन्दी कक्षा के कुछ छात्रों ने मुझसे कहा कि एम ० ए ० हिन्दी कक्षा के पाठ्यक्रम में ' संत - वचनावली ' नामक एक ग्रंथ पाठ्य पुस्तक के रूप में निर्धारित है । इसके कुछ निश्चित मूल पाठ छात्रों को पढ़ाये जाते हैं । यदि आप शब्दार्थ , भावार्थ और टिप्पणी सहित इन मूल पाठों की व्याख्या करके एक टीका - ग्रंथ छपवा दें , तो यह कार्य छात्रों के लिए बड़ा उपयोगी होगा । मैंने आदरणीय डॉ ० बहादुर मिश्रजी महोदय तथा छात्रों के विचार को सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस कार्य में लग गया । पाँच - छह महीने की अवधि में मैंने यह कार्य पूरा कर लिया । इस टीका - ग्रंथ का नाम रखा ' संत - वचनावली सटीक ' । लेखन कार्य समाप्त होने के लगभग दो महीने के बाद इस टीका - ग्रंथ का प्रकाशन सन् १९९३ ई ० में मेरे पूज्य अग्रज आदरणीय श्री उमेश प्र ० मंडल जी के द्वारा किया गया ।
यह टीका - ग्रंथ एम ० ए ० हिन्दी कक्षा के छात्रों और संतमत के सत्संगियों द्वारा बड़ी श्रद्धा और रुचि से खरीदा जाता था । स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के जिस वर्ग के छात्रों के पाठ्यक्रम में ' संत - वचनावली ' पुस्तक निर्धारित थी , उस वर्ग के छात्रों के बीच ' संत - वचनावली सटीक ' की अनुशंसा करने में साधु स्वभाव के दो विद्वानों आदरणीय डॉ ० राजेन्द्र पंजियारजी महोदय और आदरणीय डॉ ० बहादुर मिश्रजी महोदय का सहयोग भुलाया नहीं जा सकता । इस आत्मीयता के लिए मैं इन मनीषी विद्वानों का हृदय से आभारी हूँ ।
' संत - वचनावली सटीक ' के पहले संस्करण की सारी प्रतियाँ डेढ़ - दो साल में ही बिक गयी थीं । दूसरा संस्करण प्रकाशित कराने का अवसर हाथ नहीं लग रहा था ; अनुकूल परिस्थिति नहीं मिल रही थी । इस प्रकार सन् २,०१८ ई ० के पूर्व इस ग्रंथ का दूसरा संस्करण प्रकाशित नहीं कराया जा सका ।
इस टीका - ग्रंथ का दूसरा संस्करण इस वर्ष ( २,०१८ ई ० में ) आदरणीय श्रीप्रशान्त कुमार भगतजी , शिक्षक , पचगछिया ( नौगछिया अनुमंडल ) के द्वारा प्रकाशित किया गया , जिसके लिए मैं प्रकाशक का आभारी हूँ । यह संस्करण पुनः संपादित और परिवर्धित किया गया है । इसमें ३५ संतों की लगभग २१७ वाणियों की टीका प्रस्तुत की गयी है ।
तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय , भागलपुर के कुलगीतकार विद्या वाचस्पति आदरणीय श्रीआमोद कुमार मिश्रजी महोदय का भी मैं बड़ा ऋणी हूँ , जिनका बहुमूल्य मार्गदर्शन मुझे लेखन कार्य के लिए समय - समय पर मिला करता है ।
मैं अपने स्नेह - पात्र श्रीराजेन्द्र साहजी एवं ब्रजेश दासजी के कार्य की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता , जो मेरी पाण्डुलिपियों का अक्षर - समायोजन बड़ी सुन्दरता के साथ किया करते हैं ।
यदि इस टीका - ग्रंथ से सत्संग - प्रेमियों , विद्वानों और छात्रों को कुछ भी लाभ पहुँच सका , तो मैं अपना श्रम सार्थक हुआ समझँगा । जय गुरुदेव ! Seman • छोटेलाल दास संतनगर , बरारी , भागलपुर -३ ( बिहार ) 000 ८.९ .२,०१८ ई ०
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* पहले भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम ' तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय ' नहीं था । - टीकाकार ।
॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
प्रकाशकीय ( प्रथम संस्करण का )
' संत - वचनावली ' नामक एक ग्रन्थ कई वर्षों से भागलपुर विश्वविद्यालय , भागलपुर की एम ० ए ० ( हिन्दी ) कक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित है । इस ग्रन्थ में सन्त नामदेव से लेकर सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज तक के ३५ प्रमुख सन्तों की पद्यात्मक वाणियों से सामग्री ली गयी है । इसके सम्पादक हैं सन्त - साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् आदरणीय डॉ ० श्रीरामेश्वर प्रसाद सिंहजी महोदय , पी - एच ० डी ० डी ० लिट् ० , आचार्य एवं अध्यक्ष , स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग , दुमका केन्द्र , भागलपुर विश्वविद्यालय , भागलपुर । ग्रन्थ में प्रत्येक संत की इस प्रकार की वाणियों का संकलन किया गया है , जिनसे उन सन्त की पूरी विचारधारा की स्पष्ट झाँकी मिल सके । जहाँ तक हमारी जानकारी है , इस संकलन और ' संत - सुधा - सार ' ( सं ० वियोगी हरिजी ) के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा संकलन अभी तक नहीं निकल पाया है , जिसमें प्रायः सभी प्रमुख सन्तों की इस प्रकार पर्याप्त वाणियाँ दी गयी हों । इसके आरंभ में यशस्वी सम्पादक ने ' आखर थोड़े ' में संतों के विस्तृत तथा कालव्यापी साहित्य का जो संक्षिप्त संकेत दिया है , वह बड़ा ही समीचीन जान पड़ता है ।
प्रस्तुत पुस्तक ' संत - वचनावली सटीक ' में उसी ' सन्त - वचनावली ' ग्रन्थ की कुछ महत्त्वपूर्ण सन्तवाणियों को संकलित करके उनकी टीकाएँ लिखी गयी हैं । इन वाणियों में पैंतीसो सन्तों में से प्रत्येक की अनेक अथवा एक वाणी अवश्य आ गयी है । आरम्भ में संत कबीर साहब , संत दादू दयालजी , संत सुन्दर दासजी ( छोटे ) , संत चरण दासजी और संत तुलसी साहब ( हाथरसवाले ) की जो वाणियाँ आयी हैं , वे चालू सत्र के सिलेबस में पाठ्यांश के रूप में हैं ।
पुस्तक में टीकाकार ने किसी भी सन्तवाणी के अर्थ को पूरी तरह समझाने का प्रयत्न किया है । उन्होंने मूल पद्य के नीचे शब्दार्थ और शब्द के नीचे पद्यार्थ या भावार्थ दिया है । किसी - किसी पद्यार्थ या भावार्थ के बीच - बीच में ही और कहीं - कहीं उसके नीचे आवश्यक टिप्पणी भी उन्होंने दी है । यह पुस्तक सन्त - साहित्य के प्रेमी विद्वानों , छात्रों और सत्संग - प्रेमी सज्जनों के लिए भी बड़ी उपयोगी है ।
' सन्त - वचनावली सटीक ' ' सन्त - वचनावली ' ग्रन्थ पर लिखी गयी टीका सम्बन्धी पहली पुस्तक है । इसे पहली बार प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है और यदि पाठकों ने इसे अपनाकर हमारा उत्साह बढ़ाया , तो हम आगे इसका परिवर्धित संस्करण निकालने का विचार करेंगे ।
अन्त में , हम उन सज्जनों के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं , जिन्होंने हमें इसके प्रकाशन में किसी - न - किसी प्रकार की सहायता पहुँचायी है | जय गुरु !
- उमेश प्रसाद मण्डल फरवरी , सन् १९९३ ई ०
ग्राम राघोपुर , थाना परवत्ता , अनुमंडल नौगछिया , जिला - भागलपुर ( बिहार )
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पदावली.. |
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