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नानक वाणी 50 || तू दरीआउ दाना.. अर्थ सहित || Glory to God in the words of Baba Nanak

सद्गुरु बाबा नानक साहब की वाणी / 50

     प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी  सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज एवं अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संत-वचनावली सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी "तू दरीआउ दाना बीना मै मछुली कैसे अन्तु लहा"  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे   पूज्यपाद लालदास जी महाराज  ने लिखा है। 

इस भजन के पहले वाले भजन '' मोती त मन्दर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए    👉 यहाँ दवाएँ.

ईश्वर की महिमा

बाबा नानक के शब्दों में ईश्वर की महिमा

     प्रभु प्रेमियों  !  सतगुरु बाबा नानक इस वाणी  के द्वारा परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनकी भक्ति कर अपने को सुखी करने का उपदेश करते हैं . वे कहते हैं कि परमात्मा की आज्ञा अटल है;  उनके आदेश के खिलाफ कोई कुछ नहीं कर सकता;  वह जैसे रखें उसी तरह रहने में अपनी भलाई है, अपने को ईश्वर को समर्पित करके उनकी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए. 


गुरु नानकदेवजी  महाराज की वाणी

( 50


तू दरीआउ दाना बीना मै मछुली कैसे अन्तु लहा । जह जह देखा तह तह तू है , तुझते निकसी फूटि मरा ॥१ ॥ न जाणा मेउ न जाणा जाली । जा दुख लागै ता तुझे समाली ॥ रहाउ ।। तू भरपूरि जानिआ मै दूरि । जो कछु करी सु तेरै हदूरि । तू देखहि हउ मुकरि पाउ । तेरै कंमि न तेरै नाउ ॥ २ ॥ जेता देहि तेता हउ खाउ । बिआ दरु नाही कै दरि जाउ ।। नानक एक कहै अरदासि । जीउ पिण्डु सभु तेरै पासि ॥३ ॥ आपे नेड़ै दूरि आपे ही आपे मंझि मिआनो । आपे वेखै सुणै आपे ही कुदरति करे जहानो ॥ जो तिसु भावै नानका हुकमु सोई परवानो ॥४ ॥

     शब्दार्थ - दरीआउ = दरिया , समुद्र । दाना = जाननेवाला । बीना = देखने वाला । लहा = प्राप्त करूँ , पाऊँ । मेउ = मल्लाह , मछुआ । जाली = जाल । समाली = याद करता हूँ । हदूरि = हुजूर , निकट , सामने । मुकरि पाउ = मुकर जाता हूँ , इनकार कर जाता हूँ , अस्वीकार कर जाता हूँ । कंमि = काम । नाउ = नाम । बिआ = दूसरा । अरदासि = विनती के साथ भेंट ( नजर , उपहार ) । जीउ = जीव , प्राण । पिंड = शरीर । नेड़ै- नजदीक । मंझि मिआनो = दोनों के बीच । वेखै = देखता है । कुदरति = कुदरत , प्रकृति , शक्ति , रचना । जहानो = जहान , संसार । हुकमु = हुक्म , आदेश , आज्ञा । परवानो = प्रमाण , सत्य , अटल । 

     भावार्थ- हे परमात्मा ! तू सब कुछ जाननेवाला , देखनेवाला और वार - पार - रहित अथाह समुद्र - रूप है ; मछली - रूप मैं तेरा अंत कैसे पा सकता हूँ अर्थात् तेरा अन्त नहीं पा सकता हूँ । जहाँ - जहाँ देखता हूँ , वहाँ - वहाँ तू ही तू है । तुझसे निकलकर अलग होने पर मैं मर जाऊँगा ॥ १ ॥ 

     न तो मैं मछुए ( यम ) को देख पाता हूँ और न उसके जाल ( फाँस ) को । जब यमरूप मछुआ मुझे मृत्यु का दुःख देने लगता है , तब मैं तुझे याद करता हूँ ॥ १ ॥ रहाउ ॥ 


     तू शरीर में और शरीर के बाहर भी सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है ; परन्तु मैं अज्ञानतावश तुझे अपने से दूर मान रहा हूँ । मैं जो कुछ भी अच्छा या बुरा कर्म करता हूँ , वह तेरे सामने ही । तू मेरे सारे कर्मों को देखता है ; परन्तु इनकार कर जाता हूँ कि मैंने बुरे कर्म किये हैं । न मैं तेरी कोई सेवा करता हूँ , न तेरा नाम लेता हूँ ॥ २ ॥

      तू जितना देता है , उतना ही खाता हूँ अर्थात् उतने से ही गुजर - बसर करता हूँ ; और तुझपर ही आशा - भरोसा रखता हूँ । कोई दूसरा दरवाजा नहीं है , जहाँ मैं चला जाऊँ । गुरु नानक देवजी विनती करते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा ! मैं अपने प्राण , तन , धन आदि सबको तेरे प्रति निछावर करता हूँ ॥३ ॥

     तू स्वयं नजदीक है , स्वयं दूर भी और स्वयं दोनों के बीच भी । तू स्वयं अपनी शक्ति से सारी सृष्टि की रचना करता है । गुरु नानक देवजी कहते हैं कि उस परमात्मा को जैसा अच्छा लगता है , वैसा वह आदेश करता है और उसका वह आदेश अटल होता है अर्थात् परमात्मा जैसा चाहता है , वैसा ही अनिवार्य रूप से कुछ घटित होता है ॥ ४ ॥

     टिप्पणी-- परमात्मा ज्ञानियों के लिए निकट और अज्ञानियों के लिए दूर है ।∆


इस भजन के बाद वाले भजन  ''कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु...''   को अर्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-वचनावली सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  परमात्मा की महिमाईश्वर की महिमा, Ishwar Ki Mahima, Akash Mandal Ishwar Ki Mahima, ईश्वर, ईश्वर की परिभाषा क्या है? ईश्वर भक्ति, ईश्वर है या नहीं, ईश्वर का स्वरुप, ईश्वर के नाम, ईश्वर एक है, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। 


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नानक वाणी 50 || तू दरीआउ दाना.. अर्थ सहित || Glory to God in the words of Baba Nanak नानक वाणी 50 || तू दरीआउ दाना.. अर्थ सहित || Glory to God in the words of Baba Nanak Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/19/2022 Rating: 5

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