महर्षि मेंहीं पदावली / 65
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 65वें पद्य "गंग जमुन जुग धार....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद संतसेवी जी महाराज नेे किया है।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि-गंगा, जमुना और सरस्वती संगम का बड़ा महत्व है। इस संगम तीर्थ में आतंरिक साधन करने का अपार महत्व है ।जिसका वर्णन इस पद में किया गया है।सूर्य नाड़ी एंड चन्द्र नाड़ी इन हिंदी । इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- Maharshi mehi padawali bhajan mp3, maharshi mehi bhajan, maharshi mehi ka bhajan mp3, maharshi mehi bhajan padavali, maharshi baba ka bhajan, messi mehi bhajan,maharshi mehi, सुषुम्ना नाड़ी जाग्रत,सुषुम्ना का अर्थ, सुषुम्ना स्वर, सुषुम्ना नाड़ी एक्टिवेशन, सुषुम्ना चलने का प्रभाव, सुषुम्ना जागरण, सूर्य नाड़ी एंड चन्द्र नाड़ी इन हिंदी, गंगा यमुना सरस्वती संगम, गंगा जमुना सरस्वती इलाहाबाद, गंगा यमुना सरस्वती संगम वीडियो, गंगा यमुना सरस्वती संगम घाट, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पूज्यपाद श्री छोटेलाल दास जी महाराज द्वारा भी किया गया है, उसे पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
त्रिवेणी संगम पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
The importance of Sangam Tirtha संगम तीर्थ का महत्व
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- कि
सुषुम्ना ध्यान योग का (The importance of Sangam Tirtha )अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इसे बिंदुध्यान के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। जो 'संत समागम तीरथ राजू' को चरितार्थ करता है। गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम अर्थात इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का संगम का यथार्थ में यही मतलब है। इसे कैसे करना चाहिए और इसकी सही युक्ति क्या है?... इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस पद का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है । उसे पढ़ें-
महर्षि मेंहीं पदावली भजन
( ६५ )
गंग जमुन जुग1 धार मधहि2 सरस्वति बही । फुटल मनुषवा के भाग3 गुरु गम4 नाहिं लही ॥१ ॥ सतगुरु सन्त कबीर नानक गुरु आदि कही । जोइ ब्रह्माण्ड सोइ पिण्ड अन्तर कछु अहई5 नहीं ॥२ ॥ पिंगल6 दहिन गंग7 सूर्य इंगल8 चन्द जमुन9 बाईं । सरस्वति सुषमन बीच चेतन जलधार नाईं10 ॥३ ॥ सतगुरु को धरि ध्यान सहज स्रुति11 शुद्ध करी । सनमुख बिन्दु निहारि सरस्वति न्हाय12 चली ॥४ ॥ होति जगामगि जोति सहसदल पीलि13 चली । अद्भुत त्रिकुटी की जोति लखत स्रुति सुन्न रली14 ॥५ ॥ सुन मद्धेे15 धुन सार सुरत मिलि चलति भई । महा सुन्य गुफा भँवर होइ सतलोक गई ॥६ ॥ अलख अगम्म16 अनाम सो सत पद सूर्त17 रली । पाएउ पद निर्वाण सन्तन सब कहत अली18 ॥७ ॥ छूटेउ दुख को देश गुरु गम पाय कही । सतगुरु देवी साहब दया ' में हीं' गाइ दई ॥८ ॥
शब्दार्थ : १. युगल , दोनों , २. मध्य , बीच , ३. भाग्य , ४. गुरु से प्राप्त होने योग्य , ५. हैं , ६. पिंगला नाड़ी , ७. गंगा , ८. इड़ा नाड़ी , ९ . यमुना , १०.की तरह , ११. सुरत , १२. नहाकर , स्नान कर , १३ . प्रवेश कर , पारकर , १४. मिली , मिल जाती है , १५.मध्य में , बीच में , १६. अगम , जहाँ इन्द्रियाँ न पहुँचे , १७ . सुरत , १८. सखी ।
पद्यार्थ :
महर्षि संतसेवी |
शरीर के अंदर गंगा और यमुना की युगल धाराओं के बीच सरस्वती बहती है । उस मनुष्य का भाग्य फूटा हुआ है ( अर्थात् उसका दुर्भाग्य है ) , जिसने गुरु से प्राप्त होने योग्य इस ज्ञान को ग्रहण नहीं किया ॥१ ॥ संत सद्गुरु कबीर साहब और गुरु नानकदेव आदि सद्गुरुओं ने कहा है कि जो ब्रह्माण्ड ( बाह्य जगत ) में है , वही पिंड ( शरीर ) में है । दोनों में ( तत्वतः ) कुछ भी अंतर नहीं है ॥२ ॥ दायीं ओर की पिंगला नाड़ी गंगा या सूर्य नाड़ी भी कहलाती है और बायीं ओर की इड़ा नाड़ी यमुना या चन्द्र नाड़ी । इन दोनों के बीच सुषुम्ना नाड़ी या सरस्वती चेतन जलधारा की तरह बहती के स्थूल रूप का ध्यान करके सुरत स्वाभाविक रूप से अपने को पवित्र करती है और सामने के ज्योतिर्मय विन्दु में दृष्टिधारें स्थिर करती है , मानो सरस्वती में स्नान करके आगे बढ़ती है ॥४ ॥ फिर सहस्रदल कमल , जहाँ जगमग ज्योति होती रहती है , उसे पारकर सुरत आगे चलती है और त्रिकुटी की आश्चर्यमयी ज्योति को देखती हुई शून्य में मिल जाती है ॥५ ॥ शून्य मंडल के मध्य में सुरत सारध्वनि से मिलकर आगे चलती है और महाशून्य , भँवर गुफा को पार करके सतलोक ( परमात्मधाम ) पहुँच जाती है ॥६ ॥ अलख , अगम , अनाम और सतपद कहलाने वाले इस लोक में सुरत समा जाती है । हे सखी ! सभी संत कहते हैं कि इसतरह जीवात्मा निर्वाण पद ( मोक्ष ) को प्राप्त करती है ॥७ ॥ इसप्रकार दुःख का देश ( माया मंडल ) छूट जाता है । महर्षि में ही परमहंसजी महाराज कहते हैं कि सद्गुरु बाबा देवी साहब की कृपा से मैंने उनसे ( गुरुदेव से ) प्राप्त ज्ञान को गाकर कह दिया ॥८ ॥ इति।।
प्रभु प्रेमियों ! "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा जाना कि सुषुम्ना का रहस्य क्या हैै? उसका जीवन में कितना महत्व है। इस संगम पर किसी भी समय कैसे स्नान कर सकते हैं, इत्यादि।इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
महर्षि मेंहीं पदावली भावार्थ सहित
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महर्षि मेंहीं पदावली सटीक |
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P65, (ख) The importance of Sangam Tirtha । गंग जमुन जुग धार । महर्षि मेंहीं भजन व्याख्या सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/24/2019
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