Ad1

Ad2

P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित।

महर्षि मेंहीं पदावली / 95

      प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 95वां पद्य  "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल।,...'  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के  बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।

इस Santmat meditations भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." में बताया गया है कि- गुरु और शिष्य का पारस्परिक संबंध कैसा होता है? गुरु अपने शिष्य के लिए क्या-क्या करते हैं ? शिष्य को क्या-क्या करना चाहिए? इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नें भी विचारनीय हैं- गुरु का शिष्य के प्रति कर्तव्य, गुरु और शिष्य का कर्तव्य, गुरु-शिष्य कर्तव्य,गुरु शिष्य संबंध निबंध,गुरु और शिष्य का रिश्ता, गुरु शिष्य सम्बन्ध पर निबंध, गुरु और शिष्य का पारस्परिक संबंध,गुरु शिष्य जोडी, गुरु शिष्य परंपरा पर निबंध, गुरु शिष्य की कहानियाँ, गुरु शिष्य संबंध आज और कल निबंध, गुरु शिष्य परंपरा पर कविता,शिष्य के गुण, गुरु शिष्य परंपरा, गुरु शिष्य जोड्या।

इस पद्य के  पहले वाले पद्य को पढ़ने के लिए  
यहां दबाएं।

P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। गुरु-शिष्य कर्तव्य पर बातचीत करते गुरुदेव।
गुरु शिष्य कर्तव्य पर बातचीत करते गुरुदेव।



Master disciple relationship

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "दानशील और दयालु गुरु सदा ही गुणगान करने के योग्य हैं। वे शिष्यों पर दया करते हैं, उनके अवगुणों को हर लेते हैं और संसार के बंधनों को काट डालते हैं। गुरु शिष्य का प्राचीन परंपरा क्या है?....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-

P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन 95 और शब्दार्थ।
पदावली भजन 95 और शब्दार्थ।

P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन पंचानवे का भावार्थ और टिप्पणी।
पदावली भजन पंचानवे का भावार्थ और टिप्पणी।

इस भजन के  बाद वाले पद्य को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 95 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि गुरु और शिष्य का पारस्परिक संबंध कैसा होता है? गुरु अपने शिष्य के लिए क्या-क्या करते हैं ? शिष्य को क्या-क्या करना चाहिए? गुरु भक्ति कैसे करना चाहिए? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।



महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. 
अगर आप 'महर्षि मेँहीँ पदावली' पुस्तक के अन्य पद्यों के अर्थों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से समझना चाहते हैं तो 

सत्संग ध्यान संतवाणी ब्लॉग की अन्य संतवाणीयों के अर्थ सहित उपलब्धता के बारे में अधिक जानकारी के लिए 👉यहाँ दवाएँ.

सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए   👉  यहां दवाए
---×---
P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। P95, Master disciple relationship "गुरु धन्य हैं गुरु धन्य हैं गुरु धन्य दाता दयाल,..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। Reviewed by सत्संग ध्यान on 2/21/2020 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।

Ads 5

Blogger द्वारा संचालित.