गुरु नानक साहब की वाणी / 28
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- ज्ञान से ही अज्ञान-अंधकार का नाश होता है? गुरु ज्ञान की महिमा, गुरुवाणी की महिमा, गुरु दीक्षा का महत्व, गुरुकृपा का महत्व, गुरु दीक्षा गुरु ही दे सकते हैं? मन का द्वार (ताक) क्या है? ब्रह्मांड क्या है? इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- अज्ञान रूपी अंधकार को मिटा सकता है गुरु इसकी विस्तृत व्याख्या कीजिए, अंधकार अज्ञान का पर्यायवाची, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है, अज्ञान रूपी अंधकार meaning, गुरु दीक्षा कब लेनी चाहिए, गुरु दीक्षा क्यों जरूरी है, गुरु नाम कैसे लेते हैं, दीक्षा कितने प्रकार की होती है, गुरु दीक्षा कैसे दी जाती है, गुरु दीक्षा कैसे देते हैं, गुरु दीक्षा मुहूर्त 2021,शिव गुरु दीक्षा, गुरु बनाने के फायदे, गुरु किसे बनाना चाहिए, गुरु कितने प्रकार के होते है, दीक्षा का अर्थ, आदि बातें। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले भजन ''पंच मिलै अस्थिर मनु पावै......'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Darkness and ignorance as ignorance
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि- " Ignorance-darkness is destroyed only by knowledge? Glory of Guru Gyan, Glory of Guruvani, Importance of Guru Diksha, Importance of Gurukripa, Only Guru can give Guru Diksha? What is the doorway of the mind? What is the universe?.... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए गुरु वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
॥ आसा दी वार , महला २॥ ( शब्द २ )
जे सउ चंदा उगवहि, सूरज चड़हि हजार ।
एतै चानण होदिआ , गुर बिनु घोर अंधार ॥
शब्दार्थ - जे - जो , यदि । सउ - सौ । चड़हि - चढ़ जाएँ , उदित हो जाएँ । एतै इतना । चानण - प्रकाश । होदिआ - होते हुए ।
भावार्थ - यदि पूर्णिमा के सैकड़ों चन्द्रमा उग आएँ और हजारों सूर्य भी आकाश में ऊपर उठ आएँ , तो इन सबके इतने तेज प्रकाश के होते .भी गुरु के बिना हृदय में घोर अंधकार छाया ही रहेगा ।
टिप्पणी - गुरु के बिना गहन अज्ञान - अंधकार किसी भी प्रकार नहीं मिट सकता । बाहरी चन्द्र - सूर्य के प्रकाश - पुंज से वास्तविक ज्ञान नहीं होता ।
॥ सारंग की वार, महला २॥ (शब्द ३)
गुरु कुंजी पाहू निबल , मनु कोठा तनु छति । नानक गुर बिनु मन का ताकु न उखहै , अवर न कुंजी हथि ॥१ ॥
शब्दार्थ - कुंजी चाबी । पाहू प्राप्त करो , पास । निबल = निर्बल । कोठा - बड़ी कोठरी । छति - छत । ताकु - ताक , ताखा , कोई चीज रखने के लिए दीवार में बनाया गया गड्ढा , द्वार । उखडै - उघड़ता है , खुलता है । अवर - और , दूसरा ।
भावार्थ - हे निर्बल लोगो ( इच्छाओं में फंसकर अपने को दीन - हीन और कमजोर माननेवाले लोगो ) ! गुरु से कुंजी प्राप्त करो । तुम्हारा मन कोठा है और शरीर छत । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि बिना गुरु के मन का द्वार खुल नहीं सकता ; क्योंकि गुरु के अतिरिक्त और किसी के हाथ ( पास ) कुंजी नहीं है ।
टिप्पणी - पिण्डी मन कोठा है , जिसमें या जिसके साथ जीव रहता है । दोनों आँखों से ऊपर का शरीर का भाग मस्तक ( ब्रह्माण्ड ) छत है । जाग्रत् काल में मन का निज वास - स्थान आज्ञाचक्र का केन्द्र - विन्दु है , जहाँ से उसकी धाराएँ पिण्ड में बिखरी हुई हैं । आज्ञाचक्र का केन्द्र - विन्दु ( दशम द्वार ) ही मन का द्वार ( ताक ) माना जाएगा । नयनाकाश का अंधकार उस द्वार पर लगा हुआ कपाट है । दृष्टि को समेटने की क्रिया का अभ्यास ( दृष्टियोग का अभ्यास ) कुंजी है । सिमटी हुई दृष्टि को गुरु - निर्दिष्ट स्थान पर स्थिर करने से अंधकार - रूप कपाट खुल जाता है ।
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संतवाणी-सुधा सटीक |
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